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राजनीति में आने का शॉर्टकट नहीं होता

राजनीति कई तरह के उपक्रम करती है कि युवा उसके विचारों के साथ आयें. इसीलिए हर पार्टी का अपना यूथ आर्गनाइजेशन होता है. चाहे वामपंथी दल हो या कांग्रेस. बाद में संघ ने भी युवाओं के लिए संगठन बनाया. पर राजनीति में युवाओं को आने से पहले अपना नजरिया साफ कर लेना चाहिए कि उन्हें […]

राजनीति कई तरह के उपक्रम करती है कि युवा उसके विचारों के साथ आयें. इसीलिए हर पार्टी का अपना यूथ आर्गनाइजेशन होता है. चाहे वामपंथी दल हो या कांग्रेस. बाद में संघ ने भी युवाओं के लिए संगठन बनाया. पर राजनीति में युवाओं को आने से पहले अपना नजरिया साफ कर लेना चाहिए कि उन्हें करना क्या है. वे किसके लिए राजनीति में आना चाहते हैं.

पहले ये संगठन ही नेता बनाने के कारखाने हुआ करते थे. आज जितने बड़े नेता दिख रहे हैं, वे इन्हीं सगठनों में से निकले हैं. किसी जमाने में बिना ऐसे संगठनों के पार्टी का चलना एक तरह से मुश्किल होता था. लेकिन समय के साथ इन सगठनों में जाति और धर्म ने अपनी जगह बनानी शुरू कर दी. इस वजह से भावी नेताओं को बनाने वाली ये फैक्टरियां कमजोर होती गयीं और हर पार्टी में भाई-भतीजावाद बढ़ता गया. हालांकि वाम पार्टयिां इस बीमारी की चपेट में अब तक नहीं आयी हैं. लेकिन वाम की तरफ आज के युवा का झुकाव पहले की तरह नहीं है. बुजरुआ पार्टियों के उदय और जाति-धर्म की सीढ़ी पर आधारित सफलता के शार्टकट रास्ते उन्हें लुभा रहे हैं. इसलिए आजकल वाम पार्टियों की तरफ वे कम ही रुख कर रहे हैं.

अन्ना के आंदोलन और अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के तरफ युवाओं का आकर्षण जरूर बढ़ा है. अन्ना और केजरीवाल दोनों ने आम जनता को छूने वाले मुद्दों की बात की. भ्रष्टाचार को खत्म करने, महांगाई कम करने बिजली बिल कम करने, रोजगार पैदा करने जैसे अनेक मुद्दों को लेकर आंदोलन किया और पार्टी बनायी. ये सभी मुद्दे आम लोगों से जुड़े हुए हैं. ये ऐसे मुद्दे है जिसे लेकर आम आदमी त्रस्त रहता है. इसलिए लोग उनके साथ जुड़ते गए. इसमें युवाओ ंकी तादाद सबसे ज्यादा है. लेकिन अन्ना और केजरीवाल दोनों के पास इस सवाल का जवाब नहीं है कि आमलोगों को परेशान करने वाली ये तकलीफें दूर कैसे होंगी? केजरीवाल ने अपने 49 दिनों के मुख्यमंत्रित्व काल में क्या किया लोगों ने देख लिया है. इसलिए आम आदमी पार्टी की ओर युवाओं का आकर्षण बहुत थोड़े समय के लिए है. गुब्बारा बहुत जल्द फूटने वाला है, क्योंकि समस्या तो सबको दिख रही है. आज जरूरत समाधान बताने वाले की है. इसलिए केजरीवाल की पार्टी से विकर्षण होना ही है.

इस समय दावा किया जा रहा है कि जो काम साठ साल में नहीं हुआ, वह साठ माह में हो जाएगा. इस दावे पर सबसे ज्यादा युवा ही आकर्षति है. लेकिन जब 61वें माह में उसे पता चलेगा कि दावा खोखला साबित हुआ तब वह क्या करेगा. इसलिए आज जो दिख रहा है वह स्थायी नहीं है, क्योंकि पॉलिटिक्स में सक्सेस का यह शार्टकट है और इस लाइन में कोई शॉर्टकट नहीं होता है. अगर युवाओं को पॉलिटिक्स में आगे आना है तो उन्हें पहले संगठन में आना चाहिए. राजनीति समझनी चाहिए. मुद्दों को समझना चाहिए. उसके समाधान को तलाशना चाहिए, उसपर चर्चा करनी चाहिए. तभी राजनीति में आगे बढ़ा जा सकता है.

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