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जिग्नेश मेवाणी आखिर क्यों भाजपा के लिए हार्दिक-अल्पेश से बड़ी चुनौती हैं?

नयी दिल्ली : गुजरात के ऊना में कथित गौ सेवकों द्वारा दलितों का उत्पीड़न करने के बाद चर्चा में आये युवा दलित नेता जिग्नेश मेवाणी विरोध-प्रदर्शन करने संसद भवन जाने वाली पार्लियामेंट स्ट्रीट पहुंच गये हैं. जिग्नेश मेवाणी इससे पहले महाराष्ट्र गये थे. जिग्नेश मेवाणी व जेएनयू छात्र उमर खालिद पर आरोप लगा था कि […]

नयी दिल्ली : गुजरात के ऊना में कथित गौ सेवकों द्वारा दलितों का उत्पीड़न करने के बाद चर्चा में आये युवा दलित नेता जिग्नेश मेवाणी विरोध-प्रदर्शन करने संसद भवन जाने वाली पार्लियामेंट स्ट्रीट पहुंच गये हैं. जिग्नेश मेवाणी इससे पहले महाराष्ट्र गये थे. जिग्नेश मेवाणी व जेएनयू छात्र उमर खालिद पर आरोप लगा था कि उनके कारण पुणे के भीमा कोरेगांव में हिंसा फैली थी और हिंसा की वह आग महाराष्ट्र के कई जिलों में पहुंच गयी थी. जिग्नेश मेवाणी आज दिल्ली में हुंकार रैली कर रहे हैं और चंद्रशेखर व रोहित वेमुला के लिए न्याय की मांग कर रहे हैं. हालांकि दिल्ली पुलिस ने उन्हें इसकी इजाजत नहीं दी थी, फिर भी जिग्नेश मेवाणी और उनके समर्थक वहां पहुंचे. मौके पर दिल्ली पुलिस भारी संख्या में तैनात है.

जिग्नेश मेवाणी ने इस रैली को लेकर ट्वीट कर भाजपा को चुनौती दी कि बांध ले बिस्तर बीजेपी, राज अब जाने को है, जुल्म काफी कर चुके पब्लिक बिगड़ जाने को है. जिग्नेश मेवाणी ने जिस तरह से अपने गृह प्रदेश गुजरात से बाहर महाराष्ट्र और फिर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भाजपा को चुनौती देनी की कोशिश की है, उससे यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि क्या वे एक-सवा साल बाद होने जा रहे आम चुनाव में भाजपा के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं?

कांग्रेस से संतुलित नाता

गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान जिग्नेश मेवाणी चर्चा मेंअपनीचुनावी रणनीति के कारण आये थे.पाटीदारनेताहार्दिक पटेल ने जहां कांग्रेस को खुले तौर पर समर्थन का एलान किया और पिछड़ा वर्ग के नेता अल्पेशठाकोर कांग्रेस में शामिल हो गये, वहीं जिग्नेश ने कांग्रेस से अपने रिश्तों में संतुलनसाधे रखा. उन्होंने कांग्रेसकेसाथ अप्रत्यक्ष तौर पर सहयाेगबनाये रखा और गुजरात के वडगाम विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव जीत कर विधानसभा पहुंचे.

35 वर्षीय जिग्नेश पत्रकारिता व लॉ के डिग्रीधारी है और आरंभ से ही उन्हें कुछ विश्लेषकहार्दिक पटेल व अल्पेश ठाकोर से अधिक संतुलित शख्सियत मानते रहे हैं. अल्पेश ठाकोर जहां पीएम मोदी पर 80 हजार का एक मशरूम खाने का व्यंग कर चर्चा में आये, वहीं हार्दिक पटेल अपने रणनीतिक फैसलों,कथित सीडी व साथियों के छोड़ जाने के कारण हमेशा चर्चा में रहे.

गुजरात का शोर खत्म, लड़ाई 2019 की

अब गुजरात चुनाव का शोर खत्म हो गया है. लड़ाई 2019 के आम चुनाव की लड़ी जानी है और उससे पहले आठ विधानसभा चुनाव की चुनावी जंग होनी है, जिसमें कर्नाटक, मध्यप्रदेश, राजस्थान जैसे बड़े प्रदेश शामिल हैं. ऐसे में अगर जिग्नेश मेवाणी भाजपा के खिलाफ दलित मुद्दे पर कोई माहौल बनाने में कामयाब होते हैं तो यह पूरे विपक्ष के साथ कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए भी राहत की बात होगी.

मुकम्मल दलित पहचान

गुजरातके सामाजिक आंदोलन से उभरेतीन नेताओं मेंजिग्नेश मेवाणी की राष्ट्रीय पहचान इसलिए अधिक मजबूतहो सकती है, क्याेंकिवे दलित समुदायसे आते हैं. हार्दिक पटेल पाटीदार समुदाय से आते हैं, जिनकी गुजरात व कुछ राज्यों में बहुलत है, पर वहदूसरेराज्यों में उनकी पहचान कुर्मी के रूप में है. अल्पेश ठाकोर कोली समुदाय से आते हैं और इस समुदाय कोभी हर जगह मजबूत उपस्थितिनहीं है. वहीं, दलित समुदाय की पूरे देश में मजबूत उपस्थितिहैऔरजिग्नेश कीपहचानदलित की किसी जाति के रूप में नहीं दलित के रूप में है.

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