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रामजन्मभूमि विवाद की फैक्ट्स फाइलः देवराहा बाबा की सलाह पर राजीव गांधी ने दिलायी थी शिलान्यास की अनुमति?

मनोज सिन्हा, मिथिलेश झा, राजीव चौबे अयोध्या का राम मंदिर आैर बाबरी मस्जिद जितना अधिक विवादों में रहा, उससे कहीं अधिक इसका राजनीतिक इस्तेमाल भी किया गया. वर्ष 1989 का आम चुनाव एक नया मोड़ लेकर आया. तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने राम राज्य के नारे के साथ फैजाबाद से अपना चुनाव अभियान शुरू किया. […]

मनोज सिन्हा, मिथिलेश झा, राजीव चौबे

अयोध्या का राम मंदिर आैर बाबरी मस्जिद जितना अधिक विवादों में रहा, उससे कहीं अधिक इसका राजनीतिक इस्तेमाल भी किया गया. वर्ष 1989 का आम चुनाव एक नया मोड़ लेकर आया. तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने राम राज्य के नारे के साथ फैजाबाद से अपना चुनाव अभियान शुरू किया. इसके साथ ही, मीडिया की खबरों में यह भी कहा जाता है कि राजीव गांधी ने रामजन्मभूमि पर मंदिर निर्माण के लिए शिलान्यास की अनुमति देवराहा बाबा की सलाह पर दिलवायी थी.

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मीडिया में आ रही खबरों के अनुसार, पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल तक सरकार की पहल पर विवादित स्थल के मालिकाना हक के मामले को हाईकोर्ट ने अपने पास मंगाकर मौके पर यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया था, लेकिन विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के दबाव पर कांग्रेस सरकार ने चुनाव से ठीक पहले नवंबर, 1989 में मस्जिद से करीब पौने दो सौ फुट की दूरी पर मंदिर का शिलान्यास करा दिया.माना जाता है कि राजीव गांधी ने संत देवराहा बाबा की सलाह पर शिलान्यास की अनुमति दिलवायी थी. उम्मीद यह थी कि इससे काशी और मथुरा की तरह मंदिर और मस्जिद अगल-बगल बनने का रास्ता खुल जायेगा, लेकिन ऐसा हो नहीं सका.

लाठी चला रहे पुलिस वालों के पैर छूकर क्या कहते थे कारसेवक

उत्तर प्रदेश के अयोध्या स्थित विवादित राम मंदिर आैर बाबरी मस्जिद का मामला बीते 490 सालों से दिन-ब-दिन इतिहास के पन्नों में दर्ज होता जा रहा है. इस मामले पर ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन (बीबीसी) के एक पत्रकार लिखा है कि 30 अक्तूबर, 1990 के वह दृश्य अब भी आंखों में घूम जाते हैं, जब सरयू पुल पर तैनात पुलिस बल इस पार गोंडा बस्ती की तरफ से आने वाले कारसेवकों को रोकने के लिए लाठियां चला रहे थे.

बीबीसी के पत्रकार ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि कारसेवक उन सिपाहियों के पैर छूकर कहते थे कि हम तो जन्मभूमि तक कारसेवा करने जायेंगे. उस समय मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे. विश्वनाथ प्रताप सिंह भारत के प्रधानमंत्री थे. दोनों नेताओं में अपने को अल्पसंख्यक हितैषी साबित करने की होड़ थी. ऐसे में इनके बयानों से उभरी नाराजगी का विश्व हिंदू परिषद ने फायदा उठाया.

रिपोर्ट में कहा गया है कि कानून तोड़ने वाली भीड़ अगर निहत्थी हो और उस पर धार्मिक जूनून सवार हो, तो पुलिस और मजिस्ट्रेट का काम कितना मुश्किल हो जाता है, यह बात 30 अक्तूबर, 1990 को समझ आयी. पत्रकार ने लिखा है कि तमाम पुलिस बल और मजिस्ट्रेटों को पीछे धकेल कुछ कारसेवकों ने उस दिन विवादित मस्जिद पर चढ़कर झंडा फहरा दिया था. हालांकि, पुलिस ने मस्जिद को क्षतिग्रस्त होने से बचा लिया था.

रिश्ते हों, तो रामचंद्र और हाशिम जैसी

रामजन्मभूमि मामले के पक्षकार महंथ रामचंद्र दास परमहंस वर्ष 1949 में विवादित स्थल पर मूर्तियां रखने वाले लोगों में थे. वह राम जन्मभूमि मंदिर आंदोलन के मुख्य चेहरा थे. इसके बावजूद अयोध्या फैजाबाद के मुसलमानों से उनकी गहरी दोस्ती थी, जो छह दिसंबर को भी नहीं टूटी. परमहंस और बाबरी मस्जिद के मुख्य पैरोकार हाशिम अंसारी न केवल एक-दूसरे के घर आते-जाते थे, बल्कि मुकदमे की पैरवी के लिए एक ही कार से अदालत जाते थे. बड़ी साफगोई से दोनों कहते थे कि जैसे दो वकील अदालत में एक-दूसरे के खिलाफ बहस करने के बाद बाहर एक साथ चाय पीते हैं, वैसे ही वे दोनों अपने-अपने धर्म के अनुसार मंदिर और मस्जिद के लिए मुकदमा लड़ने के बावजूद आपस में दोस्त हैं.

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