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ब्राह्मणों को दरकिनार कर रहे मोदी

साक्षात्कारसतीश चंद्र मिश्र बहुजन समाज पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव हैं. बसपा सुप्रीमो मायावती के बाद उन्हें पार्टी का सबसे ताकतवर नेता माना जाता हैं. वह मायावती के अघोषित सलाहकार हैं. राज्यसभा से लेकर पार्टी के हर सम्मेलन और बैठकों में वह मायावती के साथ मौजूद रहते हैं. मायावती उनसे राजनीति और पार्टी के हर मसले […]

साक्षात्कार

सतीश चंद्र मिश्र बहुजन समाज पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव हैं. बसपा सुप्रीमो मायावती के बाद उन्हें पार्टी का सबसे ताकतवर नेता माना जाता हैं. वह मायावती के अघोषित सलाहकार हैं. राज्यसभा से लेकर पार्टी के हर सम्मेलन और बैठकों में वह मायावती के साथ मौजूद रहते हैं. मायावती उनसे राजनीति और पार्टी के हर मसले पर सलाह लेती हैं. देश के किस लोकसभा या विधानसभा क्षेत्र में किसको उम्मीदवार बनाया जाए इस बारे में सतीश चंद्र मिश्र की राय लेने के बाद ही मायावती कोई निर्णय लेती हैं.

बसपा के स्टार प्रचारकों में शामिल सतीश चंद्र को मायावती ने ब्राह्मण समाज को पार्टी से जोड़ने की जिम्मेदारी दी हुई है. वह पार्टी के ब्राह्मण नेता है. मौके-मौके पर मायावती भी सतीश चंद्र मिश्र के इस महत्व को पब्लिक के बीच बताती रहती है, मायावती के अनुसार मिश्रजी के प्रयासों के चलते ही वर्ष 2007 में सूबे का ब्राह्मण समाज बसपा से जुड़ा और उनकी पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आयी थी. अब फिर मायावती केंद्र की सत्ता में अपनी भूमिका को महत्वपूर्ण बनाने के लिए रोज ही उन्हें चुनावी सभाओं में लेकर जा रही हैं, ताकि दलित वर्ग के अलावा ब्राह्मण एवं सर्वसमाज का समर्थन उन्हें देश भर में मिल सके. चुनाव की ऐसी व्यस्तता के बीच सतीश चन्द्र मिश्र से देश के चुनावी माहौल को लेकर राजेंद्र कुमार की बातचीत के प्रमुख अंश

-दूसरे चरण का मतदान होने को है. तमाम चुनावी सर्वे देश में मोदी की लहर बता रहे है?

ऐसा कुछ भी नहीं है. नरेन्द्र मोदी की लहर कहीं भी नहीं है. मोदी की लहर होती तो तमाम भाजपा नेता पार्टी छोड़कर अन्य दलों में क्यों जाते. रही बात चुनावी सर्वे की तो हर चुनाव में सर्वे गलत साबित होते रहे हैं. फिर इस बार इन्हें क्यों गंभीरता से लिया जा रहा है.

-आपने तो देश भर में दौरा कर जनता के मूड को देखा है. बसपा को लेकर कैसा उत्साह देखने को मिला.

हमारी कॉडर आधारित पार्टी है. लोगों ने चंदा देकर पार्टी बनायी है. पंजाब हो या छत्तीसगढ़ या कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक बहन जी (मायावती) को सुनने के लिए लोग अपना सारा कामकाज छोड़कर पहुंचते हैं. उन्हें सुनते हैं और बहनजी के निर्देश को मानते हैं. बहनजी की सभाओं में पहुंची भीड़ के उत्साह को देख हम यह कह सकते हैं कि केंद्र में जो भी सरकार बनेगी, उसमें बसपा की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होगी.

-इन चुनावों में बसपा को सबसे कड़ी चुनौती किस पार्टी से मिल रही है?

हमें कोई चुनौती नहीं दे रहा है, बल्किबसपा ही यूपी में कांग्रेस, भाजपा और सपा को चुनौती दे रही है.

-कांग्रेस और भाजपा में बसपा किसे अपना दुश्मन नम्बर एक मानती है?

दुश्मन न कहिए. बसपा तो कांग्रेस और भाजपा दोनों का विरोध करती है. क्योंकि इन दोनों ही राजनीतिक दलों ने सत्ता में रहते हुए दलित, पिछड़ों और मुसलिम समुदाय की बदहाली को दूर करने का प्रयास नहीं किया. मेरे हिसाब से तो कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलित, पिछड़ों और मुसलिमों की बदहाली के जिम्मेदार हैं. रही बात बसपा की नम्बर एक विरोधी पार्टी भाजपा है या कांग्रेस तो इसे कभी हमने तय नहीं किया. दोनों का हम विरोध करते हैं.

-आपकी नजर में सांप्रदायिकता खतरा है या भ्रष्टाचार.

ये दोनों देश की प्रगति में बाधक हैं, पर सबसे बड़ा खतरा तो सांप्रदायिकता ही है. इसी वजह से बहनजी (मायावती) अपनी हर चुनावी रैली में नरेन्द्र मोदी सेसावधान रहने का संदेश लोगों को देती हैं. सपा और भाजपा ने मिलकर सूबे का भाईचारा बिगाड़ा है. हमारा मानता है कि नरेन्द्र मोदी के पीएम बनने से देश भर में दंगे होंगे.

-पर गुजरात में तो बारह सालों से कोई दंगा नहीं हुआ?

यूपी में तो हुए हैं. सपा तो मुजफ्फरनगर के दंगे को लेकर आरोप लगाती है कि भाजपा के नेताओं ने यह दंगा कराया. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और मुलायम सिंह ने भी भाजपा पर मुजफ्फरनगर का दंगा कराने का आरोप लगाया है.

-इस दंगे की आड़ में सभी राजनीतिक दल यूपी में मुसलिम मतदाताओं को लुभाने में लगे हैं. आप भी मौलाना राबे हसन नदवी और शिया धर्म गुरू कल्वे जव्वाद से मिलने गए थे.

मैं इन लोगों से मिला था, पर यह कहना मुसलिम वोटों को सहेजने के लिए यह मुलाकात की थी गलत है. पार्टी प्रमुख का एक संदेश देना था. यह संदेश क्या था? यह बताना जरूरी नहीं है.

-अपनी चुनावी सभाओं में आप नरेन्द्र मोदी को ब्राह्मण विरोधी बताते हैं. इसका आधार क्या है?

यह सही है. हम नरेन्द्र मोदी को ब्राह्मण विरोधी कहते हैं. रही बात आधार की तो आप गुजरात का इतिहास देखें. मोदी जब से गुजरात के मुख्यमंत्री बने हैं, उन्होंने पार्टी से ब्राह्मणों को दरकिनार कर दिया. बड़े-बड़े ब्राह्मण नेता भाजपा में ठिकाने लगा दिए गए. उनका नाम नहीं बताएंगे पर सभी जानते हैं कि मोदी ने किन-किन ब्राह्मण नेताओं को हाशिए पर ढकेला है.

-चुनावों के बाद बसपा की राजनीतिक भूमिका क्या होगी?

अभी इस बारे में कुछ भी कहना ठीक नहीं है. भाजपा नेताओं की तरह हमलोग बड़बोले नहीं हैं. अभी तो यूपी में दूसरे चरण का वोट पड़ रहा है. चार चरण का मतदान होना बाकी है. सभी चरणों का मतदान पूरा होने के बाद भी इस सवाल का जवाब दिया जा सकता है.

-इस बार भी बसपा देश की सभी सीटों पर चुनाव लड़ रही है? जबकि बसपा के आधार में गिरावट की बात कहीं जा रही है? इस बारे में क्या कहना है.

नहीं ऐसा नहीं है. दिल्ली के विधानसभा चुनावों के बाद ऐसी अफवाहें फैलायी जा रही हैं. बसपा के प्रति लोगों के रूझान में कोई कमी नहीं हुई है. लोकसभा चुनावों के परिणाम हमारे दावे की पुष्टि कर देंगे.

-बसपा देश में एक राजनीतिक ताकत है. क्या कांग्रेस और भाजपा की खिलाफत करने वाले दलों को एकजुट कर बसपा चुनाव के बाद कोई मोर्चा बनाने का प्रयास करेगी.

भविष्य में क्या होगा और क्या हो सकता है हम इस तरह की कल्पनाओं पर विचार नहीं करते. चुनाव के बाद क्या होगा क्या नहीं? बसपा कोई मोर्चा बनाने का प्रयास कर सकती है या नहीं? यह पार्टी प्रमुख मायावती ही बता सकती हैं.

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