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सरकार 66 ए वापस लाने की बना रही है योजना, सुप्रीम कोर्ट ने लगायी थी रोक

नयी दिल्ली : इंटरनेट फ्रीडम फाऊंडेशन ने 11 अक्टूबर को अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया कि सरकार सेक्शन 66 ए को वापस लाने की योजना बना रही है. 66 ए को सुप्रीम कोर्ट ने 2005 में हटा दिया था. आईटी एक्ट 2000 को 2008 में संशोधित किया गया था. 2009 में इसे राष्ट्रपति की मंजूरी […]

नयी दिल्ली : इंटरनेट फ्रीडम फाऊंडेशन ने 11 अक्टूबर को अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया कि सरकार सेक्शन 66 ए को वापस लाने की योजना बना रही है. 66 ए को सुप्रीम कोर्ट ने 2005 में हटा दिया था. आईटी एक्ट 2000 को 2008 में संशोधित किया गया था. 2009 में इसे राष्ट्रपति की मंजूरी मिली थी जिसमें 66 ए का भी जिक्र था. इस धारा में कई चीजें स्पष्ट तौर पर नहीं समझायी गयी थी. यही कारण है कि इसका विरोध हुआ, दुरुपयोग को देखते हुए इसे निरस्त कर दिया गया था.

यह धारा उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने की ताकत देती थी जो किसी को भी सरकार को ताकत देती थी तकलीफ देने वाले मैसेज भेजेते थे. हाल में ही यूपी में एक युवक को गिरफ्तार किया गया क्योंकि उसने गंगा जमुना पर टिप्पणी की और भाजपा के राम मंदिर के ऐजेंडे पर भी कमेंट कर दिया. इस मामले में उस पर एफआईआर दर्ज किया गया. एफआईआर में दर्ज किया गया कि गलत तरीके से कमेंट किया गया है.
इस मामले में उसे धारा 66 ए के तरह चार्ज किया गया. पहले उसे 66 ए के तहत गिरफ्तार किया गया क्योंकि पुलिसवालों को पता नहीं था कि यह धारा सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद निरस्त है. इसके अलावा उस पर धारा 124 ए भी लगाया गया था. माना जाता है कि इस धारा का लाभ उन्हें मिलता है जो सत्ता में होते हैं. सरकार अपने खिलाफ उठ रही आवाजों को दबाने के लिए इसका इस्तेमाल करती है. एक आंकड़े के अनुसार, 2005 में लगभग 30 हजार लोगों को गिरफ्तार किया गया जिन पर धारा 66 ए के उल्लंघन का आरोप था गौर करने वाली बात यह है कि इस धारा को पहले ही निरस्त कर दिया गया था. इस धारा में धमकी, अपमान जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया जबकि इसे पूरी तरह उदारहण देकर परिभाषित नहीं किया गया.

धारा 66A में लिखा है….

"कोई शख्स जो कंम्प्यूटर या फिर कम्युनिकेशन डिवाइस के जरिए भेजता है’

1)कोई भी ऐसी सूचना जो आपत्तिजनक हो या फिर जिसका मकसद चरित्रहनन का हो.

2)कोई भी सूचना जो झूठी है, पर इलेक्टाॅनिक डिवाइसेज के जरिए उस सूचना का इस्तेमाल किसी शख्स को परेशान करने, असुविधा पहुंचाने, खतरा पैदा करने, अपमान करने व चोट पहुंचाने के लिए किया जाए.

3)कोई भी इलेक्ट्रॉनिक मेल या इलेक्ट्रॉनिक मैसेज, जिसके जरिए किसी को व्यर्थ परेशान करने या उसके लिए समस्याएं बढ़ाने के लिए किया जाए. तो ऐसा करने वाले शख्स को जेल भेजा जाएगा. दोषी को दो-तीन साल की सजा हो सकती है साथ में जुर्माना भी लगाया जा सकता है.

यदि कोई व्यक्ति ऐसा करते हुए पाया जाता है तो पुलिस उसे 66A के तहत गिरफ्तार कर उसे कोर्ट में पेश कर सकती है. इसके साथ ही उस पर संबंधित मामले में उपयुक्त अन्य धाराएं जोड़ कर भी मुकदमा चला सकती है.

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