नयी दिल्ली : चुनाव आयोग आज शाम चार बजे गुजरात एवं हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव की तारीखों का एलान करेगा. गुजरात में जहां विजय रूपानी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है, वहीं हिमाचल प्रदेश में वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सरकार है. भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियों के लिए ये दोनों राज्य अहम हैं, क्योंकि यहां क्षेत्रीय पार्टियों का वर्चस्व नहीं है. नरेंद्र मोदी एवं अमित शाह की अगुवाई वाली भाजपाकेलिए जहां अपने कांग्रेस मुक्त भारत के नारे को और मजबूत बनाने के लिए दोनों राज्यों में चुनाव जीतने की चुनौती है, वहीं कांग्रेस के लिए हिमाचल में अपना गढ़ बचाना और गुजरात में जीत नहीं तो कम से कम सीटों की संख्या बढ़ाना चुनौती है.
गुजरात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गृहप्रदेश है, जहां भाजपा पिछले 22 सालों से शासन में है, वहीं हिमाचल प्रदेश में 1985 से कांग्रेस एवं भाजपा बारी-बारी से लगातार सरकार में आती रही हैं. वहां बीते 32 सालों में कोई भी पार्टी दोबारा सरकार नहीं बना सकी है. इस सामान्य से सिद्धांत के आधार पर भाजपा यह दावा कर सकती है कि वह वहां जीतेगी, लेकिन राजनीति में कोई स्थायी फार्मूला नहीं होता है. हिमाचल प्रदेश में विधानसभा की 68 सीटें हैं, जिसमें वर्तमान में कांग्रेस के पास 36 व भाजपा के पास 27 सीटें हैं, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने यहां शानदार जीत हासिल की.
हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस दोहरी परेशानी का सामना कर रही है. वहां मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं. उनके नेतृत्व को लेकर पार्टी के अंदर भी गहरे मतभेद हैं. प्रदेश इकाई का एक धड़ा पहले ही उन्हें हटाने की बात कर चुका है. ऐसे में हिमाचल की लड़ाई कांग्रेस के लिए बहुत आसान नहीं है.
वहीं, गुजरात में भाजपा की मजबूत पकड़ है. 182 सदस्यों वाली विधानसभा में पिछले चुनाव में भाजपा ने 116 सीटें जीती थी, जबकि कांग्रेस को 59 सीटें मिली थी. उसके पूर्व के चुनाव में इसी के आसपास सीटें भाजपा व कांग्रेस के पास थीं. वे चुनाव नरेंद्र मोदी की राज्य में मजबूत उपस्थिति में लड़े गये थे. लेकिन, अब मोदी व उनके मजबूत सहयोगी अमित शाह केंद्रीय राजनीति में हैं. मोदी के केंद्र में आने के बाद ढाई-तीन साल के अंदर ही राज्य में पार्टी को दो मुख्यमंत्री बनाने पड़े. पाटीदार आंदोलन, पिछड़ा वर्ग आंदोलन एवं दलितों की पिटाई राज्य की राजनीति में वैसे ज्वलंत मुद्दे हैं, जिसने कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को उत्साहित कर दिया है और उन्होंने एक तरह से राज्य में खुद को झोंक दिया है. ऐसे में राहुल गांधी खुद की पार्टी की जीत की भी उम्मीद पाले हैं, लेकिन भाजपा मोदी को गुजरात गौरव के रूप में पेश कर रही है. वह गुजरात के आम लोगों में यह भावना जगाने की कोशिश कर सकती है कि अगर पार्टी को राज्य में राजनीतिक नुकसान हुआ तो यह मोदी की छवि का नुकसान होगा और अंतत: यह गुजरात के गौरव का नुकसान होगा. ऐसे भी गुजरात में गरवी गुजरात एक आम शब्द है, जिसके जरिये गुजराती समाज अपनी संपन्न सांस्कृतिक विरासत पर गर्व करती है. हालांकि मोदी एक राजनीतिक शख्सीयत हैं.
कांग्रेस के लिए यह एक दिक्कत है कि उसके पास पंजाब के कैप्टन अमरिंदर सिंह की तरह गुजरात में मजबूत नेता नहीं है जो राज्य में बहुत मजबूती से उसकी चुनावी नाव को खे सके. शंकर सिंह बाघेला पार्टी में थे, लेकिन नाराजगी वश उन्होंने पार्टी छोड़ दी और अलग संगठन बनाने का एलान कर दिया है. वे सीएम उम्मीदवार घोषित नहीं किये जाने की संभावना के मद्देनजर नाराज हो गये थे. शक्ति सिंह गोहिल एक नेता हैं, जो पूरा जोर लगाये रहते हैं. वहीं, भाजपा में राज्य में मोदी-शाह का तो विकल्प कोई और है ही नहीं, लेकिन विजय रूपानी ने राज्य में स्थितियों को तेजी से संभाला है. ऐसे में यहां का चुनाव दिलचस्प होगा.यहांमोदी की नोटबंदी, जीएसटी और उसके बाद पार्टी के ही कुछबुजुर्ग नेताओं के सरकार पर सवालों की भी परीक्षा होगी. स्थानीय व राष्ट्रीय मुद्दों के सहारे कांग्रेस अपनी सीटें बढ़ा कर यहां राष्ट्रीय संदेश देने की जुगत में है.