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उमा भारती : तेज-तर्रार नेता से इस्तीफे के दबाव तक, कहां से चली थीं, कहां पहुंचीं?

नयी दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कैबिनेट में कल बदलाव होना है. नरेंद्र मोदी कई विभागों के मंत्रियों के कामकाज से खुश नहींहैं, इसलिए उन्होंने कुछ मंत्रियों से इस्तीफा मांगा है. कई मंत्रियों मसलन राजीव प्रताप रुडी, संजीव कुमार बालियान, फग्गन सिंह कुलस्ते, महेंद्र नाथ पांडे और बंडारु दत्तात्रेय इस्तीफा दे चुके हैं. इनके […]

नयी दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कैबिनेट में कल बदलाव होना है. नरेंद्र मोदी कई विभागों के मंत्रियों के कामकाज से खुश नहींहैं, इसलिए उन्होंने कुछ मंत्रियों से इस्तीफा मांगा है. कई मंत्रियों मसलन राजीव प्रताप रुडी, संजीव कुमार बालियान, फग्गन सिंह कुलस्ते, महेंद्र नाथ पांडे और बंडारु दत्तात्रेय इस्तीफा दे चुके हैं. इनके अलावा दो कैबिनेट मंत्रियों उमा भारती और कलराज मिश्रा के इस्तीफे की संभावना बनी हुई है. हालांकि उमा भारती का इस्तीफा अभी नहीं हुआ है और उन्होंने यह संकेत दिया है कि वे ऐसे दबाव से नाराज हैं. मीडिया द्वारा कल इस्तीफे पर पूछे गये सवालों से वह नाराज हो गयीं थीं और ट्‌वीट किया था कि मैंने यह सवाल सुना ही नहीं, न सुनूंगी, ना जवाब दूंगी. बाद में उन्होंने ट्वीट किया, इस बारे में या तो राष्ट्रीय अध्यक्ष या अध्यक्ष जिसे नामित करेंगे, वही बोल सकता है. मेरा इस पर बोलने का अधिकार मेरा नहीं है. लेकिन सवाल यह है कि जो भारती कभी पार्टी की बेहद प्रभावी नेता होती थीं और उनकी स्थिति इस्तीफे देने के दबाव तक कैसे बन गयी. वह पार्टी-सरकार में मौजूद तो हैं, लेकिन उनकी उपस्थिति की वो धमक नहीं सुनाई पड़ती है, जो दशक-डेढ़ दशक पहले पड़ती थी. एक दौर था जब उमा भारती नरेंद्र मोदी, राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली के बराबरी की नेता मानी जाती थीं. इनमें से जेटलीको छोड़कर बाकी चेहरे अलग-अलग समय में राज्यों के मुख्यमंत्री रहे हैं.

विजयाराजे सिंधिया की खोज हैं उमा भारती

उमा भारती की राजनीतिक गुरु विजयाराजे सिंधिया थीं, जिन्होंने उनकी प्रतिभा को पहचान कर उनका पदार्पण राजनीति में करवाया था. उमा भारती का जन्म तीन मई 1959 में मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ जिले के टुंडा में हुआ था. उन्होंने छठी तक की पढ़ाई की और फिर उनका रुझान अध्यात्म की ओर हो गया. वह बचपन से ही धार्मिक प्रवचन देती, इसी दौरान उनकी भेंट ग्वालियर राजघराने की राजमाता से हुई.

राजनीतिक कैरियर

उमा ने मात्र 20 वर्ष की आयु में राजनीति में प्रवेश किया और मध्यप्रदेश भाजपा में सक्रिय हो गयीं. 1984 में वह पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ीं लेकिन हार गयीं. लेकिन 1989 के चुनाव में उन्होंने खजुराहो से चुनाव लड़ा और जीत गयीं. इसके बाद उन्होंने 1991, 1996 और 1998 में इस सीट पर अपना कब्जा बनाये रखा. उमा भारती को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली रामजन्म भूमि आंदोलन से. उन्होंने भाजपा के इस आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई. इस आंदोलन में उन्होंने अग्रिम पंक्ति के नेताओं सरीखी भूमिका निभाई. कहा जाता है कि उनके आक्रामक भाषणों ने रामजन्मभूमि आंदोलन को सफल बनाने में अहम भूमिका तो निभाई ही, साथ ही उमा की पकड़ पार्टी में मजबूत कर दी.

बाबरी विध्वंस मामले की उन्होंने नैतिक जिम्मेदारी ली थी और यह कहा था कि उन्हें इस घटना पर कोई अफसोस नहीं है. बाबरी विध्वंस मामले में फिलहाल उमा भारती, भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी पर आपराधिक मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है. 1999 के लोकसभा चुनाव में उमा भारती ने भोपाल सीट से चुनाव लड़ा और जीतीं. वह अटल बिहारी वाजपेयी के मंत्रिमंडल में मानव संसाधन विकास विभाग में राज्यमंत्री, पर्यटन मंत्री, युवा मामले और खेल मंत्री एवं कोयला एवं खनन मंत्री भी रहीं. वर्ष 2003 में भाजपा ने उन्हें मध्यप्रदेश की जिम्मेदारी दी और उन्हें प्रदेश में पूर्ण बहुमत की सरकार का मुखिया बनाया. लेकिन एक वर्ष के अंदर ही उमा को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. हुबली दंगा मामले उनके खिलाफ अरेस्ट वारंट जारी हुआ था, जिसके बाद उनपर इस्तीफे का दबाव बना.

उमा के कैरियर का टर्निंग प्वाइंट

मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना उमा के कैरियर का टर्निंग प्वाइंट था. उन्होंने पार्टी के दबाव में इस्तीफा तो दिया लेकिन उनके अंदर एक गुस्सा था, जो नवंबर 2004 में भाजपा मुख्यालय में फूटा. उन्होंने सार्वजनिक तौर पर लाल कृष्ण आडवाणी से बहस की और बैठक छोड़कर चली गयीं थीं, जिसके बाद पहले उनका पार्टी से निलंबन हुआ, जिसे संघ ने निरस्त करवाया लेकिन उमा ने अपना मिजाज नहीं बदला जिसके कारण अंतत: उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया. उन्होंने जनशक्ति नाम की पार्टी भी बनायी, लेकिन राजनीति में उनका कद घटता गया.

हाल के सालों में जब उमा भारती दोबारा भाजपा से जुड़ी तो कहा जाता है कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उन्हें गृहप्रदेश मध्यप्रदेश में सक्रिय होने पर वीटो कर दियाथा, इसलिए उन्हें उत्तरप्रदेशकीराजनीतिमें सक्रिय किया गया.

वर्ष 2011 में उनकी पार्टी में घर वापसी हुई, लेकिन उनका कद उस तरह का नहीं बन पाया जैसा पहले था. उन्होंने उत्तर प्रदेश में गंगा बचाओ अभियान चलाया और 2014 के चुनाव में उत्तर प्रदेश के झांसी से सांसद चुनी गयीं. उन्हें मोदी मंत्रिमंडल में जल संसाधन मंत्री और नमामि गंगे प्रोजेक्ट का मंत्री बनाया गया. लेकिन उमा के नेतृत्व की जो धार रामजन्मभूमि आंदोलन में दिखी थी, वह नमामि गंगे प्रोजेक्ट में नहीं दिखी और उनकी स्थिति यह है कि कभी भी उन्हें इस्तीफा देना पड़ सकता है.

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