नयी दिल्लीः आधार नंबर को अनिवार्य बनाने के पहले बुधवार को सुप्रीम कोर्ट की नौ सदस्यीय संविधान पीठ निजता के अधिकार पर सुनवार्इ शुरू करेगी, जिसकी अध्यक्षता भारत के प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर करेंगे. बुधवार को होने वाली सुनवार्इ के दौरान नौ सदस्यीय संविधान पीठ यह तय करेगी कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है या नहीं. निजता के अधिकार पर विचार करने का यह निर्देश मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर, न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर, न्यायमूर्ति एसए बोबडे, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ व न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने आधार की वैधानिकता के मामले मे सुनवाई करते हुए दिये.
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सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि मामले पर सुनवाई से पहले यह तय होना जरूरी है कि क्या निजता का अधिकार संविधान के तहत मौलिक अधिकार में आता है. पीठ ने कहा कि नौ न्यायाधीशों की पीठ विचार करेगी कि सुप्रीमकोर्ट के दो पूर्व फैसलों, एमपी शर्मा व अन्य बनाम सतीश चंद्र जिला मजिस्ट्रेट दिल्ली (यह आठ न्यायाधीशों की पीठ का फैसला था) और खड़क सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (यह छह न्यायाधीशों की पीठ का फैसला था) में निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार न माने जाने की दी गयी व्यवस्था संविधान की सही स्थिति है कि नहीं. कोर्ट ने कहा कि पक्षकार इस दौरान अपनी लिखित दलीलें दाखिल कर सकते हैं.
केंद्र सरकार की ओर से पेश अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल और दूसरी तरफ याचिकाकर्ताओं के वकील गोपाल सुब्रमण्यम व श्याम दीवान ने भी इसका इसका समर्थन किया. हालांकि, उन्होंने कहा कि गोविंद बनाम मध्य प्रदेश और राजगोपाल बनाम तमिलनाडु मामलों में सुप्रीम कोर्ट की छोटी पीठों ने माना है कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है. इसके अलावा, 1978 में मेनका गांधी बनाम भारत सरकार के मामले में भी सम्मान से जीवन जीने को जीवन के मौलिक अधिकार का हिस्सा माना है. ऐसे में निजता का अधिकार भी अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार माना जायेगा.
पीठ ने दलीलें सुनने के बाद कहा कि यह मुद्दा बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि बड़ी पीठों ने भले ही इसे मौलिक अधिकार नहीं माना है, लेकिन छोटी पीठों ने इसे मौलिक अधिकार माना है. इसलिए मुख्य मामले पर सुनवाई से पहले यह मुद्दा तय होना चाहिए.