भोपाल : मध्यप्रदेश के भोपाल संसदीय निर्वाचन क्षेत्र में करीब 30 साल बाद सत्तारुढ भाजपा और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस दोनों ने ही स्थानीय उम्मीदवारों को अपना प्रत्याशी बनाया है.कांग्रेस ने पूर्व विधायक पी सी शर्मा को पार्टी का टिकट दिया है, जबकि भाजपा ने पार्टी के प्रदेश कार्यालय मंत्री आलोक संजर को अपना आधिकारिक उम्मीदवार बनाया है. ये दोनों ही भोपाल के स्थानीय निवासी हैं.
संजर ने छात्र संघ के अलावा अभी तक 1999 में केवल पार्षद का चुनाव ही लडा है. हालांकि, संजर को 21 मार्च को टिकट देने से पहले अटकलें लगाई जा रही थी कि भाजपा इस सीट पर पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी को उतारने जा रही है, जो इस संसदीय सीट के लिए बाहरी उम्मीदवार होते.इससे पहले 1984 में हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों ने भोपाल संसदीय सीट से स्थानीय उम्मीदवारों को टिकट दिया था और उस समय कांग्रेस के प्रत्याशी के. एन. प्रधान ने भाजपा के उम्मीदवार लक्ष्मीनारायण शर्मा को एक लाख से ज्यादा मतों से पराजित किया था. भोपाल सीट से कांग्रेस प्रत्याशी और पूर्व विधायक पी सी शर्मा ने कहा, ‘‘भाजपा के उम्मीदवार उनके लिए जरुर चुनौती हैं लेकिन भोपाल की जनता मेरे लिए चुनाव लडेगी और पिछले 25 सालों से भाजपा के कब्जे में रही इस सीट पर मुङो जीत दिलाएगी और स्थानीय व्यक्ति 25 साल बाद इस सीट से सांसद बनेगा.’’
वर्ष 1983 से अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के रुप में राजनीतिक सफर शुरु करने वाले भाजपा के उम्मीदवार आलोक संजर ने कहा, ’’जब मुझे भोपाल सीट से लोकसभा का प्रत्याशी बनाया गया, तो मैं आश्चर्यचकित हो गया. पार्टी और कार्यकर्ताओं के विश्वास को मैं टूटने नहीं दूंगा.’’ संजर ने कहा, ‘‘मेरे सामने चुनौती सिर्फ एक ही है, मुझे चुनाव जीतना है. भाजपा का संगठन और कार्यकर्ता इतना मजबूत है कि इसके सामने किसी भी पार्टी का उम्मीदवार चुनौती नहीं है, क्योंकि वे :भाजपा कार्यकर्ता: चुनौतियों से लडना बखूबी जानते है. ’’ 1984 में हुए लोकसभा चुनावों के कुछ महीनों बाद भोपाल गैस कांड दिसंबर 1984 में हो गया, जिसमें अमेरिका की भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड कंपनी से जहरीले गैस के रिसाव से अब तक 15,000 से अधिक लोगों की मौत हो गई, जबकि पांच लाख से अधिक लोग इससे प्रभावित हुए थे. आम आदमी ने इसके लिए अमेरिका के अलावा कांग्रेस की गलत नीतियों को दोषी ठहराया, क्योंकि उस वक्त केंद्र एवं मध्यप्रदेश दोनों जगहों पर कांग्रेस की सरकारें थीं और यह कार्बाइड कंपनी शहर के अंदर ही बना दी गई थी.
इसका खमियाजा कांग्रेस को 1989 से 2009 तक भोपाल संसदीय सीट पर भुगतना पडा, क्योंकि भोपाल गैस त्रसदी के बाद भोपाल संसदीय सीट पर सात बार चुनाव हुए और सातों बार भाजपा प्रत्याशी इस सीट से विजयी हुए, जो बाहरी व्यक्ति थे. साल 1989, 1991, 1996 और 1998 के लोकसभा चुनावों में इस सीट को जीतकर भाजपा के सुशीलचंद्र वर्मा सांसद बने, जो इंदौर के मूल निवासी थे, जबकि 1999 में भाजपा की नेता उमा भारती सांसद बनी थी। वह बडा मलेहरा की हैं. इसी तरह 2004 और 2009 में हुए लोकसभा चुनावों में भोपाल संसदीय सीट से कैलाश जोशी सांसद बने, जो देवास जिले के बागली के निवासी हैं.
भोपाल सीट से भाजपा और कांग्रेस के बीच ही सीधी टक्कर का इतिहास रहा है, लेकिन राजनीतिक फलक पर तेजी से उभरी आम आदमी पार्टी ने अपने प्रत्याशी रचना ढींगरा को इस सीट पर उम्मीदवार उतारकर दोनों दलों के गणित को बिगाडने की तैयारी कर रखी है.रचना ढींगरा भोपाल ग्रुप फॉर इन्फॉर्मेशन एंड एक्शन की नेता है और 1984 में हुए भोपाल गैस कांड से प्रभावित लोगों के लिए लंबे समय से काम कर रही हैं. भाजपा प्रत्याशी आलोक संजर ने कहा देश में शासन और सुरक्षा के अलावा भोपाल के विकास को मुख्य मुद्दा बनाएंगे, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी पी सी शर्मा ने कहा कि वह व्यावसायिक परीक्षा मंडल :व्यापमं: में हुए घोटालों और पिछले 25 सालों में इस सीट के भाजपा सांसदों द्वारा भोपाल के लिए कुछ खास न करने को मुद्दा बनाएंगे. वहीं आप की प्रत्याशी रचना ढींगरा का कहना है कि वह केंद्र और राज्य सरकारों में व्याप्त भ्रष्टाचार को मुख्य मुद्दा बनाएंगी.
वर्ष 1989 से भाजपा के कब्जे में चली आ रही इस भोपाल संसदीय सीट को जीतने के लिए कांग्रेस ने इस बार पूरी ताकत झोंक दी है, क्योंकि पार्टी ने पी सी शर्मा को टिकट भी काफी समय पहले दे दिया, जबकि भाजपा प्रत्याशी आलोक संजर को प्रचार के लिए एक माह से भी कम समय मिला है. इस संसदीय सीट में आने वाली आठ विधानसभा सीटों में से छह सीटें भाजपा के पास हैं, जबकि कांग्रेस और निर्दलीय के पास एक-एक सीट है और पिछले विधानसभा चुनावों में इन आठों सीटों पर कुल मिलाकर भाजपा ने कांग्रेस पर 2.25 लाख से भी अधिक मतों की बढत बनाई थी.