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हरिवंश का प्रत्युत्तर: माफिया संस्कृति की जड़ें गहरी हैं

-हरिवंश- कोयलांचल में जड़ जमाये माफिया संस्कृति के उद्भव-प्रसार के संबंध में पूर्व सांसद एके राय ने कहा था कि कोयलांचल ‘माफिया संस्कृति’ से आक्रांत है. इसी क्रम में इस संवाददाता ने पाया कि कोयलांचल में इस संस्कृति के उद्गम स्रोत तीन हैं :- खूंख्वार माफिया सरदार, बीसीसीएल और बिहार सरकार के भ्रष्ट अधिकारी. यह […]

-हरिवंश-

कोयलांचल में जड़ जमाये माफिया संस्कृति के उद्भव-प्रसार के संबंध में पूर्व सांसद एके राय ने कहा था कि कोयलांचल ‘माफिया संस्कृति’ से आक्रांत है. इसी क्रम में इस संवाददाता ने पाया कि कोयलांचल में इस संस्कृति के उद्गम स्रोत तीन हैं :- खूंख्वार माफिया सरदार, बीसीसीएल और बिहार सरकार के भ्रष्ट अधिकारी. यह त्रिगुट ही इस माफिया संस्कृति का जन्मदाता है. 1977 से ही यह संवाददाता खूंख्वार माफिया सरदारों और बीसीसीएल के भ्रष्टाचार के संबंध में लिखता रहा है.

पर इसके तीसरे, लेकिन महत्वपूर्ण पक्ष कि राज्य सरकार के भ्रष्ट अधिकारी कैसे इस संस्कृति के पोषक हैं, उजागर नहीं हो पाया था. ‘कोयलांचल का अफसर माफिया’ लेख इसी क्रम में लिखा गया. मैं स्पष्ट करना चाहूंगा कि कोयलांचल की बेलगाम नौकरशाही से मेरा तात्पर्य किसी व्यक्ति विशेष से नहीं, बल्कि इस क्षेत्र (धनबाद, बोकारो और गिरिडीह) में मौजूद प्रशासनिक धारा से है.

इस लेख के अनुसार के प्रत्युत्तर में धनबाद के उपायुक्त ने धनबाद समाहरणालय (गोपनीय शाखा) द्वारा अर्द्ध सरकारी पत्रांक 2219/डी सी भेजा है. जो प्रतिक्रिया सार्वजनिक रूप से छपने के लिए भेजी गयी है, उस पर गोपनीय शब्द का अर्थ समझ के परे है. उन्होंने साथ में एक नोट भी भेजा है. पता नहीं इन चीजों को उन्होंने व्यक्तिगत हैसियत से भेजा है या उपायुक्त होने के कारण. ‘ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट’ के अंतर्गत उन्होंने इन चीजों को भेजने की शायद अनुमति भी ली होगी. इस संवाददाता ने अपनी रिपोर्ट में धनबाद के उपायुक्त पर सिर्फ यह आरोप लगाया है कि उन्होंने सारी परंपराओं-नियमों को ताक पर रख कर अपने एक पूर्व परिचित को ठेका दिलाया. लेख में एक कांग्रेसी सांसद द्वारा उन पर लगाये गये आरोपों को मात्र उद्धृत किया गया है. यह आरोप 1986 में ही लगाया गया. सत्ता दल का एक सांसद, एक सरकारी नौकर के खिलाफ लिखित आरोप लगाता है, तो वह निश्चित रूप से खबर है. श्री झा पर आरोप एक सांसद ने लगाया है, उसे हमने छापा है.

बहरहाल, उक्त सांसद ने यह भी आरोप लगाया है कि उन्होंने 6000 रुपये प्रतिमाह किराये पर बिहार सरकार के एक उपक्रम को अपना घर दे दिया. इसका खंडन उन्होंने नहीं किया है. आयकर संपत्ति में इसका उल्लेख है या नहीं. मकान कितने स्क्वायर फुट का है, और उसे किस दर से किराया मिला, इसका भी खुलासा नहीं है.

श्री झा ने जो विवरण दिया है, उसके अनुसार महज 13 हजार पूंजी लगा कर उन्होंने 3.48 लाख (इस भवन में निवेश की गयी पूंजी का सही मूल्यांकन कोई भी आम आदमी उसे देख कर कर सकता है, फिर भी झा जी की बात मान ली जाये) रुपये की लागत से पटना के किदवईपुरी में अपना मकान बना लिया. श्री झा ने मकान बनवाने के क्रम में 50 हजार रुपये ‘ओवरड्राफ्ट’ भी लिया है. यह ओवरड्राफ्ट किस आधार पर किस वित्तीय संस्था ने दिया, इसके एवज में क्या गिरवी रखा गया, यह भी स्पष्ट नहीं किया गया है.

एक बड़े परिप्रेक्ष्य में कही गयी ‘बेनामी संपत्ति’ की बात को पकड़ कर श्री झा जिस तरह अपनी दाढ़ी में तिनका तलाशने लग गये हैं, वह आश्चर्यजनक है. कोयलांचल की नौकरशाही का एक व्यापक चित्र पाठकों के समक्ष रखने के लिए यह बात बड़े संदर्भ में कही गयी है. नौकरशाही या अफसर का अर्थ एकमात्र ‘धनबाद का उपायुक्त’ नहीं होता. पूरे लेख में ‘बेनामी संपत्ति’ शब्द का प्रयोग दो बार हुआ है. दोनों बार व्यापक संदर्भ में. श्री झा यह स्वीकार करेंगे कि कोयलांचल में वह अकेले नौकरशाह नहीं हैं. हां! उन्हें यह चुनौती उन सांसदों और अनेक राजनेताओं को देनी चाहिए, जिन्होंने खास कर उनकी नामी-बेनामी संपत्ति का ब्योरा प्रधानमंत्री कार्यालय को जांच के लिए दिया है. राजनेताओं-नौकरशाहों के चरित्र में बुनियादी फर्क नहीं रह गया है, पर किसी एक जगह इतना धुआं क्यों उठ रहा है? इस सिलसिले में हाल में दिये डॉ जगन्नाथ मिश्र का बयान यह संवाददाता उद्धृत करना चाहेगा : ‘धनबाद के उपायुक्त मदनमोहन झा के संरक्षण में नये माफिया गिरोह पैदा हो गये हैं, जिन्हें बालू और कोयला ढोने की जिम्मेदारी दी गयी है. यह अलग जांच का विषय है.’ (जनसत्ता 29 नवंबर ’88). मैं, श्री झा से जानना चाहूंगा कि क्या उन्होंने इस वक्तव्य का विरोध किया है?

मूर्ति प्रकरण के संबंध में पुन: श्री झा ने तथ्यों का खुलासा नहीं किया है. उक्त रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि मूर्ति पर कुल व्यय करीब आठ लाख रुपये हुए. मूर्ति के निर्माण-स्थापना में सही-सही 7.33 लाख रुपये खर्च हुए. बीसीसीएल की 101वीं बोर्ड मीटिंग (30.1.87) में आरंभिक खर्च को बढ़ा कर पांच लाख किया गया. पुन: उसकी 102वीं बैठक में (22.3.87) इसे बढ़ा कर 7.33 लाख किया गया. उपायुक्त का यह कहना कि सोनावाडेकर कोटेशन नहीं देते, झूठ है. उपायुक्त को 10-12.86 को भेजे गये अपने पत्र में उन्होंने कोटेशन दिया है, हालांकि उन्हें सीधे यह कोटेशन बीसीसीएल को भेजना चाहिए था.

कलाकृति और ठेकेदारी के बीच अंतर की सूक्ष्म समझ रखनेवाले श्री झा जरा इसका अनुमान लगाने का कष्ट करें कि अगर एक मुख्यमंत्री ने अपने मनपसंद व्यक्ति को बगैर टेंडर कोटेशन के ठेका दिला दिया होता, तो आज उसके विरुद्ध क्या माहौल होता?मगर नौकशाहों के हाथ लंबे हैं और नेपथ्य में सक्रिय रहते हैं. श्री झा ने श्री प्रसाद को, सोनावाडेकर के लिए मूर्ति निर्माण से संबंधित पत्र उनकी शर्तों पर (पत्रांक 256/ डी सी/ 5.2.87) ले जाने के लिए कहा. साथ ही 1.05 लाख का बगैर बैंक गारंटी के ड्राफ्ट भी. जनवरी ’87 में श्री झा ने (पत्रांक 42/25 डी सी 13 जनवरी ’87) सोनावाडेकर को लिखा कि आप प्रस्तावित मूर्ति का स्केच 24/25 जनवरी को धनबाद लायें. आपकी यात्रा आदि का भुगतान किया जायेगा. ये तथ्य स्वत: स्पष्ट है.

सोनावाडेकर को पैसा भेजने की सूचना भी तार द्वारा (दिनांक 2.12.87) श्री झा ने दी. श्री झा की दलीलों से यह भी लगता है कि वह स्थापत्य कला में पारंगत हैं, जो कार्य बीसीसीएल या उसके सीएमडी को करना चाहिए, वह खुद श्री झा ने संभाल लिया. ‘बिचौलिया’ की परिभाषा क्या होती है? अगर कोटेशन/ टेंडर की मान्य प्रक्रिया अपनायी गयी होती, तो संभव है स्थानीय प्रतिभाओं/आदिवासी कलाकारों की प्रतिभा मुखरित होती. उनके इस निर्णय के खिलाफ रांची स्थित पटना उच्च न्यायालय की पीठ में जो रिट दर्ज हुआ, वह रिट, दायर करेनवाले की आकस्मिक मौत के कारण (संदर्भ सी डब्ल्यू ने जे सी नं 1516-1987, आर) खारिज हुआ. इस तथ्य को उन्होंने छुपाया है.

रिपोर्ट का एक बड़ा हिस्सा कोयलांचल और खास कर धनबाद पुलिस की करतूतों से संबद्ध है, लेकिन उन्होंने किसी एक का जवाब नहीं दिया. पुलिस अधिकारी अपने अधिकार का अतिक्रमण/दुरुपयोग कर बीसीसीएल के आवासों पर कैसे अवैध कब्जा जमाये हैं? हाल ही में धनबाद न्यायालय के अंदर पुलिस की अशोभनीय हरकत से नाराज हो कर एक न्यायाधीश ने गंभीर टिप्पणी की. कुछ दिनों पूर्व धनबाद के एक प्रतिष्ठित हिंदी दैनिक के एक संवाददाता की पुलिस ने सरेआम पिटाई की. धनबाद में टुंडी में पुलिस ने खलील मियां को इस कदर मारा कि वह अस्पताल में आ कर मर गया. माफिया सरदारों द्वारा किये गये दशकों पुराने जघन्य अपराधों के मामले इसलिए नहीं खुल सके थे, क्योंकि धनबाद प्रशासन यह लिखता था कि ये लोग फरार हैं. हालांकि इनमें से अनेक अपराधी, मजदूर नेता का चोंगा पहन कर सरकार के अधिकारियों से बैठ कर बातचीत-समझौता करते थे.

बीसीसीएल प्रबंधन पर कब्जा जमाने के संदर्भ में उपायुक्त का आरोप है कि ऐसा सूर्यदेव सिंह ने कहा था. अगर कोयलांचल की घटनाओं पर उनकी नजर रहती होगी, तो उन्होंने देखा होगा कि कोल इंडिया के पूर्व अध्यक्ष जीएल टंडन और कोल इंडिया (कलकत्ता) के वरिष्ठ अधिकारियों ने अगस्त ’88 में बीसीसीएल के मामले में धनबाद प्रशासन द्वारा निरंकुश हस्तक्षेप की तीव्र भर्त्सना की थी. कोल इंडिया के वरिष्ठ अधिकारियों ने भी इसे अपमानजक बताया था. अगर कोल इंडिया के चेयरमैन और वरिष्ठ अधिकारियों तथा सूर्यदेव सिंह के बीच श्रीमान उपायुक्त फर्क नहीं कर पाते, तो यह उनके सोच का परिचायक है.

अपना शौर्य प्रदर्शन करते हुए जहां के पुलिस जवान नर्स हॉस्टल में आधी रात में जबरन घुसते हों, सरेआम चौथ वसूलते हों, ऐसे लोगों के लिए खिलाफ धनबाद प्रशासन ने क्या कार्रवाई की? क्या उपायुक्त होने के नाते इसकी जिम्मेदारी से श्री झा अपने को मुक्त कर सकते हैं? इसके लिए धनबाद प्रशासन को रांची प्रशासन से सीखना चाहिए, जहां अपराधी उन्मूलन के क्रम में प्रशासन ने अपने भ्रष्ट सात-आठ पुलिस अधिकारियों को मुअत्तल कर उनके खिलाफ मामला दर्ज किया है.

के कुमार प्रकरण में मार्च ’87 में सात लोगों के नाम अधिक विस्फोटक रखने के कारण वारंट जारी किये गये, लेकिन अचानक मार्च ’88 में अकेले उन्हें पकड़ा गया. क्योंकि उन्होंने एक पुलिस अधिकारी को बेहतर आवास और डोजर उपलब्ध नहीं कराया. अगर ऐसा नहीं था, तो सात लोगों के नाम एक ही अपराध के लिए वारंट जारी किये गये और गिरफ्तारी एक आदमी की क्यों हुई?

उपायुक्त महोदय ने यह रहस्योदघाटन किया है कि वर्ष ’86 में दो कमजोर महिलाओं की नौकरी हड़प प्रकरण का लेखक पता करते, तो बहुत-सी चीजें मालूम पड़तीं. श्री झा को अगर पत्र-पत्रिकाएं पढ़ने की आदत होती, तो उन्हें शायद पता होता कि पत्रिकाओं में रविवार ही पहली पत्रिका थी, जिसने 7-13 दिसंबर ’86 के अंक में ‘धनबाद माफिया का अर्थतंत्र’ लेख में इस प्रकरण का भंडाफोड़ किया. न सिर्फ इस घटना की, बल्कि सूर्य देव सिंह सहित अनेक माफिया सरदारों के अर्थतंत्र की गहराई से लंबे लेख में पड़ताल की गयी थी. इसी क्रम में बाद में बेरमो में तत्कालीन मुख्यमंत्री (अब केंद्रीय मंत्री) के समर्थकों ने आदिवासियों-हरिजनों की नौकरी कैसे हड़प ली है, यह खबर भी सचित्र छपी. ये दोनों चीजें इसी संवाददाता ने रिपोर्ट की थी.

कोयला खदानों में कार्यरत किस श्रेणी के अधिक लोगों से माफिया गिरोहों का ताल्लुक है, इस बारे में उल्लेख किये गये तथ्यों पर उन्होंने आपत्ति की है. श्री झा को यह भी याद होगा कि धनबाद की माफिया संस्कृति पर सबसे विश्वसनीय रिपोर्ट 1979 में पी राजगोपालन ने दी थी. जनता राज में चौधरी चरण सिंह के निर्देश पर यह हुआ. इस रिपोर्ट और के.बी. सक्सेना की रिपोर्ट में स्पष्ट उल्लेख है कि कोयला खदानों में अधिकांश ‘नाइट गार्ड’, ‘वाच एड वार्ड स्टाफ’, ‘माइनिंग सरदार’ और क्लर्क आदि माफिया सरदारों से जुड़े हैं. ऐसे लोगों पर प्रहार करने से उपायुक्त महोदय को लगा है कि आदिवासियों और हरिजनों के खिलाफ ‘बेलगाम’ शब्द का प्रयोग किया गया है. हकीकत तो यह है कि इन पदों पर आदिवासियों या हरिजनों की संख्या नगण्य है. उपायुक्त को अपनी नाक के नीचे भी देखना चाहिए कि बिहार सरकार में आदिवासियों के लिए आरक्षित स्थानों को कौन हड़प रहा है.

लेख में एक महत्वपूर्ण प्रसंग उठाया गया है, जिस पर उपायुक्त मौन हैं. बीसीसीएल के जो अधिकारी हाल में हड़ताल पर गये, इससे 10 करोड़ का नुकसान हुआ. जाहिर है कोयला और उसके बाद दूसरी चीजों की भाव वृद्धि के पीछे ऐसे कारण भी होते हैं. इस हड़ताल के ठीक बाद सरकार ने कोयले के भाव में 13 फीसदी वृद्धि की है. प्रतिटन 30 रुपये, अब इस भाव वृद्धि से वाहन-ढुलाई और खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि होगी. इस हड़ताल के लिए या तो बीसीसीएल के अधिकारी दोषी हैं या धनबाद प्रशासन? लेकिन सजा कौन भुगत रहा है.

जिला प्रशासन के अनुरोध पर वृक्षारोपण के लिए बीसीसीएल ने दो किस्तों में (चेक नंबर 06961120/978569) नौ लाख रुपये दिये. लेकिन इस मद में राशि खर्च हुई कुल 6,42, 894.27 पैसे. यह राशि किन-किन चीजों पर व्यय हुई, कितने पेड़ लगे. यह अलग माजरा है. लेकिन बार-बार लिखने के बावजूद जिला प्रशासन, बीसीसीएल को पक्का हिसाब नहीं दे रहा. बीसीसीएल ने यह पैसा अभी भी अपने अग्रिम खाते में डाल रखा है. कानून ऑडिट के दौरान जिस अधिकारी ने इसे अग्रिम खाते में डाल रखा है, उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए. इस संबंध में उपायुक्त महोदय मौन हैं.

हां पहले की रिपोर्टं में विस्तार से और उक्त रिपोर्ट में भी, इस संवाददाता ने लिखा है कि बीसीसीएल के अधिकारी दूध के धुले नहीं हैं. बीसीसीएल अलग भ्रष्टाचार का अड्डा है.उपायुक्त ने रविवार को अपनी उपलब्धियों का ब्योरा देते हुए एक नोट भी भेजा है. हालांकि यह संवाददाता स्वयं उनके इन कार्यों के संबंध में लिखता रहा है. उस रिपोर्ट में उन्होंने जो लिखा है (इस पर तिथि, किसे प्रेषित किया गया है आदि कुछ उल्लेख नहीं है.) उसका आशय है कि प्रशासन के विभिन्न कार्यों के फलस्वरूप ‘पिछले कुछ महीनों में इंटक की सदस्यता में बेशुमार वृद्धि हुई है.’ उपायुक्त की भूमिका एक निष्पक्ष ‘न्यायाधीश’ की भी है. क्या उन्हें धनबाद में इंटक की सदस्य संख्या बढ़ाने के लिए भेजा गया है?

बिंदेश्वरी दुबे और भागवत झा आजाद द्वारा शुरू किये गये माफिया उन्मूलन में यही मौलिक अंतर है. दुबे जी और उनके सिपहसालारों की नजर में सत्ता पोषित अपराधी, अपराधी नहीं है. लेकिन भागवत झा आजाद ने सहकारिता माफिया पर हमला कर और रांची के कांग्रेस सांसद द्वारा आदिवासियों की हड़पी जमीन (रविवार 12-18 जून ’88) वापस ले कर यह स्पष्ट कर दिया है कि उनकी नजर में सभी अपराधी एक समान हैं. सत्ता व्याकरण के खिलाफ साहस कर एक समान न्याय करने के कारण ही बिहार में लोग के.बी. सक्सेना, आभास चटर्जी, डी.एन. गौतम और मनोज श्रीवास्तव जैसे नौकरशाहों को याद करते हैं. आरंभ में धनबाद के उपायुक्त ने भी ऐसा प्रयास किया, उन्हें आंशिक सफलता भी मिली. उनकी इस सफलता का उल्लेख यह संवाददाता अपनी उस अंचल से संबंधित प्राय: हर रिपोर्ट में करता रहा है, यहां तक कि जिस रिपोर्ट पर उन्होंने लंबा प्रतिवाद भेजा है, उसमें भी उल्लेख है, ‘यह हकीकत है कि बीसीसीएल के करोड़ों के ठेके पहले माफिया गिरोह हथिया लेते थे. जिला प्रशासन ने इस बार सख्ती से उन्हें इस घेरे से बाहर रखा. यह प्रशंसनीय प्रयास था. साथ ही जिला प्रशासन ने रुचि ले कर कुछ पुराने और गंभीर मामले खुलवाये, और अपराधियों को दंडित कराया.’ इससे क्या यह स्पष्ट होता है कि यह लेख बीसीसीएल ऑफिसर्स एसोसिएशन द्वारा धनबाद प्रशासन के खिलाफ जो आरोपपत्र प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, कोयला राज्यमंत्री, अनेक केंद्रीय मंत्रियों और मुख्य सचिव को सार्वजनिक जांच के लिए दिया गया है. उन आरोपों को उद्धृत करना क्या प्लांट है? इस उपलब्धि के लिए प्रशासन के साथ-साथ द्वारिका प्रसाद शर्मा जैसे लोगों को भी श्रेय मिलना चाहिए.

रिपोर्ट में श्री झा और धनबाद प्रशासन पर लगाये जा रहे आरोपों की जांच की मांग की गयी है. आखिरकार केंद्र सरकार के महत्वपूर्ण उपक्रम का अधिकारी संघ जब उपायुक्त और धनबाद प्रशासन पर खुलेआम गंभीर आरोप लगाये और केंद्र सरकार से जांच की मांग करे, तो प्रशासन की विश्वसनीयता बचाये रखने के लिए क्या विकल्प है?

लेकिन अपराध नियंत्रण की कोशिशों के बावजूद कोयलांचल अपराधमुक्त क्यों नहीं हो सका है? यह लेख कोयलांचल में हो रहे अपराधों की गहराई से छानबीन और माफिया संस्कृति के उत्स पता करने की कोशिश में लिखा गया. आखिर बोकारो, बेरमो और धनबाद में सत्ता दल द्वारा पोषित अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं हो रही? एक केंद्रीय मंत्री के दामाद ने बोकारो स्थित एक बैंक को चूना लगाया है? कथारा में एक बैंक और बीसीसीएल के लोगों ने मिल कर करोड़ों का घपला किया है, उनके खिलाफ आज तक आरोपपत्र दाखिल नहीं हो सका, इस कारण अपराधी खुलेआम घूम रहे हैं. इंटक की सदस्यता बढ़ानेवाले लोगों के शासन में इंटक के कितने अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई हुई? वस्तुत: जब तक उस व्यवस्था की जड़ पर चोट नहीं होती, जिसके ‘आदर्श’ सकलदेव सिंह या रघुनाथ सिंह जैसे लोग हैं, तब तक धनबाद में इसका स्थान पाने के लिए अपराधियों में होड़ कायम रहेगी.

के कुमार/अरोड़ा आदि के प्रसंग में बीसीसीएल अधिकारियों और धनबाद प्रशासन के अलग-अलग पक्ष हैं. इसका निबटारा तो निष्पक्ष जांच आयोग ही कर सकता है. लेकिन हाल में ऐसे कुछ मामलों की जांच का काम बिहार के पुलिस महानिदेशक (पर्सोनल) ने धनबाद पुलिस से ले कर कोलफील्ड के डीआइजी को सौंप दिया है. इससे तो यही पता लगता है कि पुलिस महानिदेशक को अपने धनबाद प्रशासन की निष्पक्षता पर संदेह है.

इस वर्ष बालू के ठेके धनबाद प्रशासन ने जिन लोगों को दिलाये हैं, अगर वे धरतीपुत्र, बेरोजगार और आदिवासी हैं, तो इसके लिए उपायुक्त का अभिनंदन होना चाहिए, लेकिन दिल्ली में धनबाद के कानून-व्यवस्था से संबंधित केंद्र सरकार के आधिकारियों की 13वीं बैठक, जिसमें कोयला विभाग के संयुक्त सचिव वीएस दुबे और 6 अति वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे, के कार्यवृत्त में उल्लेख है कि इनमें से एक व्यक्ति का अतीत राष्ट्र विरोधी रहा है और दूसरे संतोख सिंह अपराधी पृष्ठभूमि के हैं. उसमें उल्लेख है कि संतोख सिंह के चरित्र को उपायुक्त द्वारा सत्यापित किया गया है. हालांकि यह सवाल अपनी जगह ज्यों का त्यों है कि बीसीसीएल किन लोगों को ठेके दे, इसमें धनबाद प्रशासन की रुचि का रहस्य क्या है?

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