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रूस में ब्रेजनेव युग से मुक्ति की छटपटाहट

-हरिवंश- रूस में एक नयी व्यवस्था का उदय हो रहा है. इस अभिनव क्रांति के सूत्रधार मिखाइल गोर्बाचौफ अब रूस के नये राष्ट्रपति हैं. 30 सितंबर को कम्युनिस्ट पार्टी की विशेष केंद्रीय समिति की बैठक ने रूस में सत्ता हस्तांतरण का एक नया अध्याय आरंभ किया. मिखाइल गोर्बाचौफ अब राष्ट्रपति के साथ-साथ कम्युनिस्ट पार्टी के […]

-हरिवंश-

रूस में एक नयी व्यवस्था का उदय हो रहा है. इस अभिनव क्रांति के सूत्रधार मिखाइल गोर्बाचौफ अब रूस के नये राष्ट्रपति हैं. 30 सितंबर को कम्युनिस्ट पार्टी की विशेष केंद्रीय समिति की बैठक ने रूस में सत्ता हस्तांतरण का एक नया अध्याय आरंभ किया. मिखाइल गोर्बाचौफ अब राष्ट्रपति के साथ-साथ कम्युनिस्ट पार्टी के महामंत्री भी हैं.
79 वर्षीय आंद्रेइ ग्रोमिको को अभिनंदन के साथ राष्ट्रपति पद से विदा किया गया. इसके पूर्व रूस में स्तालिन शैली में लोगों को पदमुक्त किया जाता था. अचानक, कब किस पर सत्ता की गाज गिरेगी, स्तालिन और ब्रेजनेव के रूस में लोग यह नहीं जानते थे. संदेह, अविश्वास षडयंत्र के साये में ही सत्ताधारी कुरसियों पर आसीन रहते थे. ख्रुश्चेव जैसे व्यक्ति के विरुद्ध ‘महल क्रांति’ हुई और अचानक उन्हें अलविदा कह दिया गया. साम्यवादी रूस से फूहड़ दरबारी संस्कृति हावी हो गयी थी. ग्रोमिको की विदाई, इस तथ्य का संकेत है कि गोर्बाचौफ के रूस में अब गुपचुप और षडयंत्र के द्वारा अचानक सत्तापलट नहीं होगा. 300 सदस्योंवाली कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति ने मास्को के सत्ता गलियारे में प्रभावी परिवर्तन के निर्णय जिस तौर-तरीके से किये, उससे स्पष्ट है कि गोर्बाचौफ व्यवस्था को अंधेरे से रोशनी में लाना चाहते हैं.
खुश्चेव अचानक सत्ता से पदमुक्त कर दिये गये, तो उनके आसपास केजीबी के खूंख्वार लोग मंडराने लगे थे. बदले की भावना के तहत उनकी सारी सुविधाओं में कटौती कर दी गयी. उनका निंदा अभियान आरंभ हुआ. उनकी खामियों की सूची सरकारी अखबारों में छपने लगी. हालांकि यह कार्य खुद खुश्चेव ने स्तालिन के विरुद्ध किया था. हाल ही में यह रहस्योद्घाटन हुआ कि ब्रेजनेव और के जी बी के तत्कालीन मुखिया और कुछ बड़े अफसरों ने साजिश कर खुश्चेव को अचानक अपदस्थ कर दिया था. इस षडयंत्र के संबंध में एक पूर्व सुरक्षा कर्मचारी ने खुश्चेव को टेलीफोन पर इत्तला दी, तो उन्हें यकीन नहीं हुआ.

जिन दिनों खुश्चेव को हटाया गया, वह रूस के लिए नया संविधान बना रहे थे. उन्हें तरह-तरह से मानसिक यातनाएं दी गयीं, लेकिन गोर्बाचौफ के रूस में पूर्व राष्ट्रपति आंद्रेइ ग्रोमिको को ससम्मान विदा किया गया, न उन पर कोई आरोप लगाया गया और न ही चरत्रिहनन की कोशिश हुई. ग्रोमिको ने अपने विदाई भाषण में गोर्बाचौफ के कार्यों का समर्थन किया. खुश्चेव और ग्रोमिको की विदाई में अंतर ही रूस की दो व्यवस्थाओं की अंतर्कहानी है. ग्रोमिको स्तालिन, खुश्चेव और ब्रेजेनेव युग की कड़ी थे. इस संदर्भ में वह एकमात्र सफल राजनेता रहे, जिसका इन पर सबके साथ गहरा ताल्लुक रहा. उनके साथ रूस के सत्ता गलियारे से एक युग का अंत हो गया.

30 सितंबर को बुलायी गयी केंद्रीय समिति की बैठक में रूस के नंबर दो नेता येगोर लिगाचेव का कद भी छोटा कर दिया गया. पेरेस्त्रोइका को ले कर उन्होंने पिछले एक वर्ष से निंदा अभियान चला रखा था. व्यवस्था की सीमा में यह संभव भी नहीं है कि पेरेस्त्रोइका के सूत्रधार गोर्बाचौफ और उसके विरोधी लिगाचेव साथ-साथ लंबे दिनों तक चल पाते. लिगाचेव अब खेतीबारी और अनाज की आपूर्ति विभाग संभालेंगे. रूस में आरंभ से ही कृषि एक गंभीर चुनौती रही है. इस कठिन महकमे का दारोमदार लिगाचेव को सौंप कर गोर्बाचौफ ने चालाकी की है. अब लिगाचेव की योग्यता-कार्यशैली कसौटी पर है.
सोवियत खुफिया (केजीबी) के प्रधान वक्तिोर चेब्रिकौफ की भी छुट्टी कर दी गयी है. स्तालिन युग से ही रूस में के जी बी का नाम दहशत, षडयंत्र और आतंक का पर्याय बन गया था. दरअसल स्तालिन ने राजकाज चलाने के दूसरे सभी कारगर अस्त्रों को निष्प्रभावी कर दिया था. वह के जी बी के आतंक के बल सत्ता में टिके रहे. इस प्रक्रिया में के जी बी को सत्ता स्वाद मिल चुका था. के जी बी के खूंख्वार अधिकारी सत्ता को अपनी चेरी समझने लगे थे. खास कर स्तालिन-ब्रेजनेव युग अफसर इसी कार्यशैली में दीक्षित थे. ब्रेजनेव के निधन के बाद आंद्रोपौफ कम्युनस्टि पार्टी के महामंत्री बने. वह के जी बी के पूर्व अध्यक्ष रह चुके थे. इस तरह रूस में के जी बी के प्रमुख गद्दी के दावेदार बन जाते थे. इस कारण गोर्बाचौफ ने चेब्रिकौफ का पत्ता साफ किया. ब्रेजनेव युग के चेब्रिकौफ का भविष्य में उनके लिए चुनौती बन सकते थे. न्यायिक नीति की समीक्षा के लिए गठित एक आयोग का अध्यक्ष पद सौंप कर उन्हें मुख्यधारा से काट दिया गया है.
इस फेरबदल के शिकार 68 वर्षीय दोब्रीनिन भी हुए. वह बीस वर्षों तक रूस में अमेरिका के राजदूत रहे. अमेरिका से बातचीत और रिश्ते सुधारने के क्रम में वह गोर्बाचौफ के विश्वस्त बन गये थे. लेकिन ब्रेजनेव के विदेश नीति निर्माताओं से गौर्बाचौफ मुक्ति चाहते थे. रूस के विदेश मंत्रालय में अब ब्रेजनेव युग की छाया नहीं मंडरायेगी. ब्रेजनेव युग के प्रमुख राजनेता की उन्होंने सफलतापूर्वक विदाई कर दी है. अब वह ब्रेजनेव युग के नौकरशाहों के खिलाफ सक्रिय होंगे. इस फेरबदल के क्रम में ही रूस के विदेश विभाग ने चीन से बातचीत की संभावना के अंकुर फूटे हैं. ब्रेजनेव युग से मुक्त होकर गोर्बाचौफ रूस को किधर ले जाना चाहते हैं, यह जाहिर है.
संभावना है कि अगले वर्ष चीन और रूस के बीच एक शिखर सम्मेलन हो. रूस में हुए फेरबदल के प्रति चीन ने अनुकूल प्रतिक्रिया प्रकट की है. इससे दोनों के बीच बातचीत की भूमि प्रशस्त हुई है. दरअसल भू-राजनीति की यह विवशता है कि रूस और चीन के बीच संबंध सुधरे. इससे पूरे एशिया और यूरोप के सत्ता समीकरण पलट जायेंगे. इससे महाशक्तियों की राजनीति नयी करवट लेगी. लेकिन इस पड़ाव पर पहुंचने के पूर्व गोर्बाचौफ रूस में अपने सपने साकार करने के लिए प्रतिबद्ध हैं.
वस्तुत: 20वीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध जड़ मार्क्सवाद की विदाई के लिए याद किया जायेगा. रूस, चीन और पूर्वी यूरोप के साम्यवादी देशों के राजतंत्र-अर्थतंत्र में नित नये प्रयोग हो रहे हैं. राजकीय पूंजीवाद की बुराइयां-सीमा दिनोंदिन स्पष्ट होती जा रही हैं. केंद्रीकृत सत्ता और बंद व्यवस्था के दुर्गुण अंदर से व्यवस्था को खोखला कर चुके हैं. इस कारण साम्यवादी देशों की मजबूरी भी है कि वे सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक जीवन में कायापलट करें. इसी कारण गोर्बाचौफ पेरेस्त्रोइका (पुनर्रचना) और ग्लासनोस्त (खुलापन) को इस जड़ता से मुक्ति की दवा मानते हैं.

रूस की अर्थव्यवस्था में एक अघोषित ठहराव आ गया था. सत्ता में निर्मम प्रयोग के बल स्तालिन ने रूस में आर्थिक क्रांति का स्वांग किया. लगभग एक करोड़ किसान इस क्रम में तबाह हो गये. छोटे और गरीब खेतिहर भी स्तालिन की निरंकुशताओं से नहीं बचे. लोगों की बुनियादी जरूरतें क्या हैं? जीवनयापन के लिए उन्हें क्या-क्या मुहैया कराया जाये, यह कार्य सरकारी योजना विभाग को सौंप दिया गया. उपभोक्ता ‘मूक दर्शक’ और सरकारी दुकानों के मोहताज बन गये. वस्तुत: यह एक किस्म का अतिवाद था. पश्चिमी देशों में उपभोगवाद की लहर से समाज त्रस्त है, यह दूसरी अति है.

एक व्यवस्था के तहत लोग अपनी हर बुनियादी आवश्यकता के लिए सरकार पर निर्भर हैं, तो दूसरी ओर उपभोक्तावाद का राज है. इन दोनों ध्रुवों के बीच समन्वय से ही संतुलन कायम होगा. मानवीय इच्छा को निरंकुश कानून नहीं दबा सकते. मनुष्य स्वैच्छिक परिवर्तन ही स्वीकार करता है. इसी कारण समाजवादी देशों में उपभोक्तावाद की लहर दिख रही है. यही कारण है कि रूस, चीन या दूसरे साम्यवादी देशों में पश्चिमी उत्पादों की लगातार मांग-खपत बढ़ रही है.

स्तालिन के नेतृत्व में जो उत्पादन पद्धति अपनायी गयी, उसमें अधिशेष उगाहने के लिए आतंक का रास्ता अख्तियार किया गया. लाखों किसान बलात कृषि फार्मों पर मजदूर बना दिये गये. लोगों के अधिक उत्पादन-कमाई का उत्साह नहीं रहा. इस कारण सोवियत रूस में कृषि क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति नहीं हुई. उसे हमेशा कृषि उत्पादों का आयात करना पड़ा. व्यक्तिगत प्रोत्साहन के अभाव में लोगों ने तटस्थ भाव से काम आरंभ किया. इससे उद्योग और कृषि दोनों में संकट पैदा हुआ. इसी कारण अब साम्यवादी देशों में पट्टेदारी और ठेका देने की चर्चा हो रही है. मानवीय उदासीनता-तटस्थता खत्म करने के लिए ही रूस में सीमित तौर पर निजी उद्योगों को बढ़ावा देने का कार्यक्रम तय किया गया. लघु स्तर पर उपभोक्ता सामग्री के उत्पादन के साथ-साथ भवनों के रंगरोगन-सजावट के काम निजी उद्यमियों को सौंपे जायेंगे.
असलियत तो यह है कि सोवियत रूस में निजी उद्यमियों का समानांतर सेवा-उद्योग अरसे से कार्यरत है. इन्हें वैधता का जामा अब पहनाया गया है. राज्य या सहकारी संस्थाओं के भरोसे लोग अपने घरों की चीजें महीनों तक मरम्मत नहीं करा पाते थे. इसी कारण फ्रिज ठीक करने, बिजली के औजार बनाने जैसे मामूली कार्यों के लिए लोग उन कुशल कारीगर की मदद लेते थे, जो निजी स्तर पर कार्य करते हैं. राज्य द्वारा प्रायोजित संस्थाओं में कार्यक्षमता के अभाव के कारण ऐसा हो रहा था. डॉक्टर अस्पताल से बाहर मरीजों की चिकत्सिा करते थे. कार बनानेवाले कारीगर घर-घर घूम कर काम करते थे.

सरकार को इन चीजों की सूचना थी, लेकिन उसके पास कोई कारगर विकल्प नहीं था. इस कारण अब ऐसे कार्यों को भी सरकारी मान्यता देने की चर्चा हो रही है. उपभोक्ता चीजों की लगातार कमी, कारखानों में समन्वय का अभाव और चीजों की आपूर्ति की केंद्रीकृत व्यवस्था से रूस की अर्थव्यवस्था जड़ता के दौर में पहुंच गयी थी. खुश्चेव भी इस जकड़न से निकलने के लिए पंख फड़फड़ा रहे थे, लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिली, गोर्बाचौफ ने रूस का चेहरा बदलने के लिए काफी दूरी तय कर ली है. उनके संकल्प-कार्यशैली से लोग परिवर्तन के प्रति आश्वस्त भी होने लगे हैं. पिछले पंद्रह वर्षों के दौरान रूस की राष्ट्रीय आय में 150 फीसदी की कमी हुई थी. इसका स्पष्ट प्रभाव वहां के जन-जीवन पर परिलक्षित था.

गोर्बाचौफ रूस की अर्थव्यवस्था में आये ठहराव से वाकिफ थे. लेकिन यह जड़ता महज आर्थिक सुधारों से खत्म नहीं होनेवाली थी. इसके लिए रूस की अति केंद्रीकृत व्यवस्था, राजनीतिक स्वरूप और भीमकाय नौकरशाही में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता थी. बगैर सर्वांगीण परिवर्तन के रूस में चमत्कारी परिणाम नहीं निलकते, इसी कारण गोर्बाचौफ ने हर मोरचे पर एक साथ कारगर कदम उठाये.
रूस के बंद समाज में वह उदारता और खुलेपन के बीज बो चुके हैं. अपनी उदारवादी नीति के तहत उन्होंने विभिन्न धार्मिक समुदायों को अपनी रीति-रिवाज से पूजापाठ करने की छूट भी दी है. चर्च से पाबंदियां हटा ली गयी हैं. साम्यवादी रूस में चर्च पर पाबंदी थी. पादरियों का काम आसान नहीं था. चर्च म्यूजियम में बदल दिये गये थे. धार्मिक स्वतंत्रता साम्यवादी यकीन नहीं करते. लेकिन धर्म को अफीम माननेवाले इन देशों में भी, सख्त पाबंदी के बावजूद लुके-छिपे धार्मिक अनुष्ठान होते रहे. ऐसे अवसरों पर धार्मिक प्रवचकों को सुनने भारी भीड़ एकत्र होती थी. साम्यवादी प्रशासन आम जन की भावना से वाकिफ थे, लेकिन उनमें इस को कबूल करने का साहस नहीं था. गोर्बाचौफ ने इस दिशा में भी पांव बढ़ाया है.
समाजशास्त्री और मनोवैज्ञानिक भी मानते हैं कि स्थायी परिवर्तन का वास्ता आतंकभय नहीं है. खुले वातावरण में लोगों से विचार-विमर्श और बहस ही परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं. गोर्बाचौफ ने रूस में यही रास्ता अपनाया है. धर्म प्रचारकों को छूट देने का तात्पर्य यह नहीं कि गोर्बाचौफ धार्मिक कर्मकांडों और पाखंडों के हिमायती बन गये हैं. ऐसा भी नहीं है कि वह 20वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में 18वीं-19वीं शताब्दी की तरह चर्च की सत्ता मजबूत करना चाहते हैं. हाल में सोवियत नेतृत्व ने जिस तरह गैर ईसाई धर्मों को छूट देने का निर्णय किया है, वह बेमिसाल है. ‘हरे राम हरे कृष्ण’ संगठन को भी रूस में काम करने की छूट मिल गयी है.

इस खुलेपन के साथ ही रूस के नेतृत्व को ऐसे तत्वों के खिलाफ वैचारिक संघर्ष तेज करना होगा. इस द्वंद्व से जो नया रूसी समाज निकलेगा, शायद वह बंद व्यवस्था के समाज या पश्चिम के कथित उदार समाज से ज्यादा बेहतर और परिपक्व होगा.

ब्रेजनेव युग के अनेक पोलित ब्यूरो सदस्य पेंशन देकर रिटायर कर दिये गये हैं. गोर्बाचौफ ने अपनी सुधारवादी क्रांति में अड़चन डालनेवाले तत्वों से मुक्ति पाने के लिए ऐसा किया है. ऐसे ही अवरोधक तत्वों में पोलित ब्यूरो के 75 वर्षीय सदस्य मिखायल सोलोमत्सेव थे. ब्रेजनेव के दामाद पर करोड़ों के भ्रष्टाचार के मुकदमे चल रहे हैं.

सोलोत्सेव जैसे लोग ‘ब्रजेनेव युग को कठघरे में’ ले जाने के खिलाफ थे. गोर्बाचौफ अगर ऐसे तत्वों से नहीं निबटते, तो उन्हें व्यवस्था के अंदर से ही गंभीर चुनौती मिलती.खास कर रूसी ब्रेजनेव युग (1964-1982) को आर्थिक अवरुद्धता के कारण याद करते हैं. उन दिनों व्यवस्था में सुस्ती आ गयी थी. उत्तरदायित्व के प्रति लोग लापरवाह हो गये ते. पार्टी अधिकारियों की आवभगत बढ़ गयी थी. भ्रष्टाचार चरम पर पहुंच गया था. ब्रेजनेव के सगे-संबंधी खुद घूस लेते थे. पार्टी के अंदर ही एक गुट बन गया, जो अपने शानो-शौकत के कारण पुराने जार शासकों को स्मरण कराता था.

दूसरी तरफ खाने की कतारों में लोगों की संख्या लगातार बढ़ती गयी. निहायत जरूरी चीजों की आपूर्ति बाजार में निरंतर कम होती गयी. सोवियत उद्योग और कृषि में उत्पादकता घटी. रूस में एक औसत कर्मचारी प्रतिमाह 250 रूबल तनख्वाह प्राप्त करता है, लेकिन जाड़े के लिए एक जोड़ी गरम जूते की कीमत 90 से 180 रूबल के बीच है. मांस दुकानों में अनुपलब्ध हो गया था. दूध और उससे तैयार दूसरे उत्पाद भी बाजार में आसानी से उपलब्ध नहीं थे.
इस कमी से रूस में एक समानांतर कालाबाजार पनपा और फैला. कुल मिला कर पूरी व्यवस्था अक्षम साबित हो रही थी. गोर्बाचौफ ने पेरेस्त्रोइका के माध्यम से सरकारी उद्योगों में कार्यकुशलता बढ़ाने पर जोर दिया. प्रथम चरण में उन्होंने लोगों को निजी सहकारी दुकानों-संस्थाएं खोलने के लिए प्रोत्साहित किया. रूस में इसे लोग निजी व्यवसाय की जगह सहकारी काम कहना ज्यादा पसंद करते हैं.
रूस के औसत लोगों में स्मृद्धि भी भूख है. एक खास वर्ग ने वहां अपने प्रभाव के कारण काफी धन अर्जित कर लिया है. उनकी जीवन शैली औसत रूसी लोगों से भिन्न है. उनके तड़क-भड़क और रहन-सहन को औसत रूसी भी अपनाना चाहते हैं. लोगों कि इस भूख पर गोर्बाचौफ को अंकुश लगाना होगा. विषमता मिटाने और औसत आदमी की आय से इजाफे से ही यह संभव है. गोर्बाचौफ ने इस दिशा में कुछ ठोस कदम भी उठाये हैं. उन्होंने लोगों की मजदूरी बड़ा दी है.
1985 में गोर्बाचौफ ने ग्लासनोस्त और पेरेस्त्रोइका के लिए कार्य आरंभ किया. लेकिन ब्रेजनेव के 18 वर्षों के शासन के कारण पार्टी-मशीनरी और नौकरशाही में जंग लग गयी थी. तत्काल इसके सुखद परिणाम नहीं निकले. 1986 में अपने परिवर्तनों के प्रति वह पार्टी को 27वीं कांग्रेस को आश्वस्त करने में असफल रहे, इस कारण गत जून में 46 वर्षों बाद पार्टी कांग्रेस की बैठक बुलायी. इस बैठक ने उनके सुधारों को भरपूर समर्थन मिला.
अब तक गौर्बाचौफ फूंक-फूंक कर कदम रखते रहे हैं. अब वह शीर्ष पर हैं. अपने कार्यक्रमों को लागू करने में अगर वह सफल होते हैं, तो वह रूस में लेनिन के बाद दूसरे महान नेता के रूप में उभरेंगे. पार्टी और नौकरशाही में यथास्थितिवाद के पोषक अब उनके खिलाफ अभियान तेज करेंगे. अगर ये तत्व कामयाब होते हैं, तो 20वीं कांग्रेस के नायक खुश्चेव की तरह गोर्बाचौफ भी विफल रहेंगे. साम्यवाद को मानवीय और नैतिक बनाने का उनका अभियान खत्म हो जायेगा.

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