-हरिवंश-
पिछले दिनों हटिया (रांची, बिहार) में उपचुनाव था. वहां बिहार के मुख्यमंत्री ने रांची क्षेत्र के डी.आइ.जी. व एस.पी. पर पक्षपात का खुलेआम आरोप लगाया. बिंदेश्वरी दुबे ने चुनावी सभाओं में कहा कि ये दोनों अधिकारी विरोधी दल के उम्मीदवार से मिले हैं. उनकी मदद कर रहे हैं. उन्हीं की जाति के हैं. वहां के डी.आइ.जी. उपेंद्र प्रसाद अपनी दक्षता-निष्ठा के लिए प्रसिद्ध हैं. ये अधिकारी मुख्यमंत्री के इस आरोप से बहुत खिन्न हुए.
चंद दिनों बाद ही पटना में मुख्यमंत्री ने ‘आपरेशन ब्लैक पैंथर’ में वरिष्ठ पुलिस अधिकारी रामचंद्र खान की भूमिका पर नाराजगी प्रकट की. संवाददाताओं को संबोधित करते हुए दुबे जी ने श्री खान पर अपने वरिष्ठ अधिकारी का आदेश न मानने का आरोप लगाया. श्री खान बिहार के चंद ईमानदार व कर्तव्यनिष्ठ अधिकारियों में से एक हैं.
संविधान में मंत्रिमंडल व नौकरशाही की जिम्मेदारी क्या है? मंत्रिमंडल नीति-निर्माण का कार्य करती है, नौकरशाही उसका कार्यपालन. नौकरशाही अड़चन डालती है, तो उसे ठीक करने का दायित्व भी मंत्रिमंडल पर है. अगर रांची के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी जातिवाद के आधार पर, विरोधी पक्ष के उम्मीदवार की मदद कर रहे थे, निष्पक्ष नहीं थे, तो उन्हें ठीक करने का दायित्व किसका है? मुख्यमंत्री ने अपने बयान से अपनी अक्षमता का परिचय दिया है. अगर श्री खान ने अपने वरिष्ठ अधिकारी के आदेश का उल्लंघन किया, तो इसका दंड उन्हें क्या दिया गया?
क्या खान में और विरोधी पक्ष के नेता में कोई फर्क नहीं है. मुख्यमंत्री ने प्रेस कांफ्रेंस में ऐसे आरोप लगाये, जैसे किसी विरोधी पक्ष के नेता को कोस रहे हों. अगर ये अधिकारी दोषी थे, तो उन पर अनुशासन की कार्रवाई क्यों नहीं हुई? आचार संहिता का उल्लंघन साधारण बात नहीं. अगर राजनेता-नौकरशाह नियमों का उल्लंघन कर, शान से अपनी कुरसियों पर बने रह सकते हैं, तो कल से अपराधी भी मांग करेंगे कि आखिर हमें ही सजा क्यों?
बिहार की बीमार व अपंग नौकरशाही को अपाहिज बनाने की शुरुआत मुख्यमंत्री ने कर दी है. गिनती के ईमानदार अधिकारी बिहार में हैं, लगता है राजनेता उनके पीछे पड़ गये हैं. इसका एक खतरनाक पहलू है. प्रजातंत्र में लोग गलतियों के लिए किसे जिम्मेवार ठहरायेंगे? सरकार को? लेकिन सरकार का प्रधान कहता है, नौकरशाही को. आखिर उत्तरदायी किसे ठहराया जाये?
हटिया उपचुनाव में कांग्रेस (इं) का प्रत्याशी 10 हजार मतों से चुनाव हार गया है. मुख्यमंत्री के चुनावी बयान पर भरोसा किया जाये, तो अधिकारियों ने जनता पार्टी के उम्मीदवार सुबोधकांत सहाय को चुनाव जितवाया है. अगर बात ऐसी है, तो मुख्यमंत्री क्या करने जा रहे हैं. बिहार में बूथ दखल-हत्याओं पर तो अब कोई कार्रवाई नहीं होती. अगर अधिकारी सांठगांठ कर चुनाव जितवाते हैं, तो यह प्रजातंत्र की बुनियाद पर सबसे कड़ा प्रहार है. अगर हटिया उपचुनाव में श्री सहाय अपनी लोकप्रियता से जीते हैं (जो निर्विवाद है) तो मुख्यमंत्री को अपना बयान वापस लेना चाहिए.
मुख्यमंत्री के सहयोगी उनसे सौ कदम आगे हैं. उपचुनावों के दौरान मसौढ़ी में एक बूथ पर गड़बड़ी के आरोप में दो राज्यमंत्री व एक सांसद गिरफ्तार किये गये थे. कानून के संरक्षक मंत्री एक अपराधी की मानिंद व्यवहार करते हैं, तो प्रजातंत्र में उसकी क्या सजा है? अगर उन्हें गिरफ्तार करने का साहस करनेवाला अधिकारी गलत है, तो उसे क्या दंड मिलना चाहिए? बहरहाल, मुख्यमंत्री ने पटना के जिलाधीश का स्थानांतरण कर दिया है.
स्थानांतरण कौन-सी सजा है? यही नहीं, खबर यह भी है कि बिहार के लोक निर्माण मंत्री ने एक इंजीनियर को सरेआम थप्पड़ मारा. इंजीनियर संघ ने उनकी बरखास्तगी की मांग की है. उन्होंने विभागीय आयुक्त को एक ट्रांसफर रुकवाने का भी आदेश दिया. अनुकूल रुख न पा कर धमकी दी, ‘मेरा कथन ही कानून है’. यह मुख्यमंत्री के सहयोगियों का बरताव है.
पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान ऐसी अनेक वारदातें हुईं. भागलपुर में शिवचंद्र झा (तत्कालीन मंत्री, अब विधानसभाध्यक्ष) जिलाधीश के खिलाफ अनशन पर बैठे थे. मंत्री अपनी नौकरशाही के विरोध में अनशन पर बैठे, विरोधी नेता सरीखा व्यवहार करे, तो मंत्रिमंडल की मर्यादा कैसे सुरक्षित रहेगी? मंत्री, प्रशासन का अंग होता है. नौकरशाह उसका मातहत है. अपने ही मातहत के खिलाफ अनशन ! कानून का इससे बड़ा मखौल क्या होगा? जिलाधीश का गुनाह था कि उन्होंने कुछ अपराधियों को गिरफ्तार किया था. ये अपराधी श्री झा के समर्थक थे. बिहार के मुख्यमंत्री ने इस जिलाधीश का स्थानांतरण भी कर दिया है.
मंत्रिमंडल का ‘सामूहिक उत्तरदायित्व’ होता है. अगर दुबे जी के मंत्रिमंडल का कोई व्यक्ति उच्छृंखल व्यवहार करे, तो संवैधानिक रूप से पूरा मंत्रिमंडल इसका उत्तरदायी है. बेलगाम बयान देने, उच्छृंखल हरकतें करने का लाइसेंस कानून किसी को नहीं देता. बहरहाल दुबे जी का मंत्रिमंडल भी देश के कानून से ऊपर नहीं है.