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भटक गये हैं आंध्र के नक्सली

वामपंथी ताकतों के लिए आंध्र उर्वर भूमि रहा है. तेलांगाना और नक्सल आंदोलनों से इस राज्य की सांस्कृतिक, राजनीतिक और साहित्यिक जड़ता को गंभीर चुनौती दी है. अब पुन: पीपुल्स वार ग्रुप ने आंध्र में सशस्त्र आंदोलन के बल ‘मुक्ति अभियान’ चलाया है. लेकिन वामपंथी अतिवाद के शिकार इस गुट के कार्यों से क्या सचमुच […]

वामपंथी ताकतों के लिए आंध्र उर्वर भूमि रहा है. तेलांगाना और नक्सल आंदोलनों से इस राज्य की सांस्कृतिक, राजनीतिक और साहित्यिक जड़ता को गंभीर चुनौती दी है. अब पुन: पीपुल्स वार ग्रुप ने आंध्र में सशस्त्र आंदोलन के बल ‘मुक्ति अभियान’ चलाया है. लेकिन वामपंथी अतिवाद के शिकार इस गुट के कार्यों से क्या सचमुच आंध्र से मुक्ति के बीच बोये जा रहे हैं? हाल के सशस्त्र आंदोलनों से प्रभावित क्षेत्रों को घूमने के बाद हरिवंश की रिपोर्ट…

भौगोलिक और राजनीतिक कारणों से पचास के दशक में चीन में साम्यवादी क्रांतिकारियों ने ‘येनान’ को अपना प्रमुख केंद्र बनाया था. सर्वहारा सशस्त्र क्रांति के सपने की रूपरेखा वहीं बनी. ‘पीपुल्स आर्मी’ की प्रशिक्षण गतिविधयों का केंद्र ‘येनान’ ही बना. इस कारण साम्यवादी, पारिभाषिक शब्दावली में ‘येनान’ चर्चित नाम है.

भारत के नक्सली, खासतौर से आंध्र के नक्सल नेता आदिलाबाद और इसके सटे इलाके को भारत का ‘येनान’ पुकारते हैं. इस प्रस्तावित ‘येनान’ में मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश और महाराष्ट्र सीमा पर स्थित आदिलाबाद, गढ़चिरोली, सिरोंचा, बस्तर और वारंगल के क्षेत्र आते हैं. इस पूरे अंचल में आदिवासियों की बहुलता है. पहाड़ और घने जंगल हैं. इन पहाड़ों के गर्भ में बसे अनेक गांवों में आज तक सरकारी अफसर नहीं पहुंच पाये हैं. आदिवासियों के इस शोषण, असंतोष और पिछड़ेपन की पूंजी के बल पर ही अनेक नक्सल गुट इस अंचल में ताकतवर और असरदार गुट हैं, कोंडापल्ली सीतारामैय्या का ‘पीपुल्स वार ग्रुप’ इस गुट का संबंध बिहार, उड़ीसा और मध्यप्रदेश के सशस्त्र नक्सलियों से भी है.

एकाध वर्ष पूर्व हैदराबाद के उसमानिया अस्पताल में पुलिस पहरे में चिकित्सा करा रहे सीतारमैय्या को उनके लोगों ने धावा बोल कर छुड़ा लिया था. फिलहाल उनकी गिरफ्तारी पर एक लाख रुपये का पुरस्कार है. इस गुट के पास अत्याधुनिक अस्त्र एके-47 हैं. आरोप है कि इनका संपर्क पंजाब के उग्रवादियों और एलटीटीइ के खूंखार लोगों से है. यह गुट चारू मजुमदार की ‘वर्ग सफाया’ नीति में विश्वास करता है. वर्ग शत्रुओं को खत्म करने की नीति पर यह गुट सुनियोजित ढंग से अमल भी कर रहा है.

सरकारी प्रवक्ता के अनुसार पिछले एक-डेढ़ वर्षों के दौरान इस गुट ने इस अंचल में लगभग तीन करोड़ की सरकारी संपत्ति को नष्ट किया है. सरकार को आर्थिक और राजनीतिक रूप से इस अंचल में पंगु बनाने के लिए कई मोरचे पर समयबद्ध कार्यक्रम तय किये गये हैं. सीतारमैय्या सफेद एंबेसडर कार में आदिलाबाद आये थे. अनेक सुदूर पहाड़ी गांवों में उन्होंने अपने समर्थकों को संबोधित भी किया. उनके इर्द-गिर्द के दो किलोमीटर क्षेत्र को उनके सशस्त्र गुरिल्लों ने घेर रखा था. लेकिन पुलिस को यह जानकारी उनके जाने के बाद ही मिल सकी.

इसके बाद बैंक, सरकारी कार्यालयों और पुलिस पर हमले की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हुई. बीड़ी पत्तों के पांच गोदाम जलाये गये. 118 बीड़ी कल्लम (बोझा) नष्ट किये गये. विधायकों, सांसदों और जिला परिषद अध्यक्षों को धमकी भरे पत्र लिखे गये. संचार साधनों पर हमले आरंभ हुए. खासतौर से माइक्रोवेब टावर्स और रेलवे स्टेशन पर धावे बोले जा रहे हैं. 1987 और 1988 में 65 और 48 हत्याएं इन लोगों ने कीं, जिनमें 18 पुलिस के लोग हैं.

1988 के दौरान कुल 26 सरकारी बसों में इन लोगों ने आग लगा दी, जिससे आंध्रप्रदेश बस परिवहन को लगभग एक करोड़ रुपये की क्षति हुई. सरकारी संपत्ति को नष्ट करने और पुलिस-हत्या का यह अभियान पूर्ववत जारी है. इसी क्रम में फरवरी में पीपुल्स वार ग्रुप के लोगों ने सिंगापुर गांव में सात पुलिसवालों को डायनामाइट से उड़ा दिया. चन्नूर में पुलिस इंस्पेक्टर के सहायक सशस्त्र सिपाही को मार डाला. आदिलाबाद के विभिन्न मंडलों क्रमश: उत्तनूर, बोर्थ, खानपुर, आसिफाबाद, शिरपुर, चेन्नूर और लक्सटीपेट में इस गुट का आधार पुख्ता है. पुलिस के अनुसार वर्ष 1988 में इस गुट ने लूटपाट-डकैती की 148 गंभीर वारदात की है. पीपुल्स वार ग्रुप के लोग शृंगेरी कोयलांचल में भी सक्रिय हैं. शृंगेरी कार्मिक मजदूर संगठन का इस गुट का हरावल श्रमिक मोरचा है. किसानों के बीच ये लोग गिरिजन रायतू कुली संघम मोरचे के माध्यम से काम कर रहे हैं. एक दूसरा नक्सल गुट (पीवी गुट) भी रायतू कुली संघम के माध्यम से यहां किसानों में काम कर रहा है.

नक्सलियों के इस आक्रामक हमले से निबटने के लिए आंध्रप्रदेश की सरकार ने इस जिले में आंध्रप्रदेश स्पेशल पुलिस के 600 सशस्त्र जवानों को तैनात किया है. सीआरपीएफ की 15 टुकड़ियों और सशस्त्र सुरक्षा बल की 14 टुकड़ियां चौकसी कर रही हैं. केंद्रीय सुरक्षा बल की टुकड़ियां पंजाब से हटा कर यहां तैनात की गयी हैं. सरकारी संपत्ति की सुरक्षा के लिए अनेक कदम उठाये गये हैं. मंडल राजस्व कार्यालयों को अपने रेकॉर्ड जिला मुख्यालयों में भेजने के लिए कहा गया है. बैंकों की ग्रामीण शाखाओं को नकद पूंजी-गहनें जिला मुख्यालय आदिलाबाद में सुरक्षित जमा कराने के निर्देश दिये गये हैं. खासतौर से पुलिस के जवान वरदी पहन कर उन इलाकों में घूमने से कतराते हैं.

शाम होते ही सरकारी अफसर घरों से बाहर नहीं निकलते. राज्य की राजधानी में इन क्षेत्रों को ले कर इतनी दहशत है कि अनेक वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों और जागरूक लोगों ने इस संवाददाता को आदिलाबाद न जाने की सलाह दी. पिछले दो वर्षों में सिर्फ आदिलाबाद में 18 पुलिसवालों की हत्या पीपुल्स वार ग्रुप के लोगों ने की है. दूसरी तरफ मानवाधिकारों के लिए लड़नेवाले संगठनों का आरोप है कि पुलिस ने 27 कथित मुठभेड़ों में 33 नक्सली समर्थक लोगों की हत्या की है. पीपुल्स वार ग्रुप के कार्यों को ‘आतंकवादियों का अपराध’ मानती है.

‘नक्सलवाद’ की शुरुआत वस्तुत: एक व्यापक और आमूल-चूल परिवर्तन के उद्देश्य से हुई. लेकिन आदिलाबाद के नक्सली गुट अपने मूल उद्देश्यों से भटक गये हैं. विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार आदिलाबाद में पीपुल्स वार ग्रुप प्रतिवर्ष विभिन्न स्रोतों से करोड़ों रुपये चंदा वसूल करता है. सरकारी सूत्रों के अनुसार शिरपुर पेपर मिल इन्हें प्रतिवर्ष 12 लाख रुपये चंदा देती है. चंदा न देने की स्थिति में जंगल से लकड़ी लाने या सुचारू रूप से काम चला पाना असंभव है. देवापुर की ओरिएंट सीमेंट फैक्टरी भी इन्हें ‘मामूल’ (जबरन चंदा) देती है. सड़क और जंगल के ठेकेदार बगैर पैसा दिये अपना काम नहीं करा सकते. शराब निर्माता और राजस्व विभाग से जुड़े ठेकेदार इन्हें नियमित मामूल देते हैं. सरकारी अधिकारी इस तथ्य को जानते हैं, लेकिन इस अदायगी को रोक पाना उनके बूते के बाहर की चीज है.

लेकिन इस ‘जबरन वसूली’ अभियान में नक्सली अपने मूल रास्ते से भटक गये हैं. पिछले दो वर्षों के दौरान इन लोगों ने एक भी जमींदार या प्रभावशाली शोषकों को कमजोर नहीं किया, बल्कि ‘पुलिस इंफारमर’ के नाम पर बेकसूर लोगों का वध किया है. जिन अधिकारियों ने तेलुगु देशम और कांग्रेस के स्थानीय जमींदारों के खिलाफ कार्रवाई की, उन लोगों को ही पीपुल्स वार ग्रपु के लोगों ने अपना वर्ग शत्रु घोषित कर दिया. आर्थिक कारणों से किसी भी कीमत पर पीपुल्स वार ग्रुप के लोग आदिलाबाद और इसके आसपास के क्षेत्रों में अपना दबदबा कायम रखना चाहते हैं.

पहले तेंदुपत्ता के ठेके बड़े-बड़े ठेकेदार लेते थे. ये ठेकेदार आदिवासी मजदूरों का शोषण करते थे और तकरीबन 40-50 लाख रुपये उन गुटों को मामूल देते थे. बाद में सरकार ने इसका राष्ट्रीयकरण कर दिया. मजदूरों की मजदूरी बढ़ा दी, लेकिन इससे पीपुल्स वार ग्रुप के लोग कुपित हो गये, क्योंकि इनकी नियमित आमदनी बंद हो गयी. अब सरकार के जंगल विभाग से ये लोग ‘मामूल’ वसूलने लगे. पिछले वर्ष इस मद से इन्हें पांच लाख रुपये मामूल मिला. जिस स्रोत से 40-50 लाख की आमद होती थी, वहां से पांच लाख की आय पीपुल्स वार ग्रुप के लोगों के लिए दुखद घटना थी. इसी कारण बीड़ी गोदामों और बीड़ी संग्रह केंद्रों में आग लगने की घटनाएं बढ़ गयीं.

पूर्व जिलाधीश श्री शर्मा के नेतृत्व में यहां 1000 आदिवासी शिक्षकों को समन्वित आदिवासी विकास योजना के तहत नौकरी दी गयी. प्राप्त सूचनाओं के अनुसार इन आदिवासी अध्यापकों की तनख्वाह का एक निश्चित हिस्सा नक्सली गुट जबरन वसूलते हैं. इनका दावा है कि इन लोगों के कार्यों से ही इस इलाके में सरकार चौतरफा विकास कार्य कर रही है. इस दावे में सच्चाई है. जब इस इलाके में नक्सली गतिविधि बढ़ी, तब सरकार की निगाह इधर गयी. सच्चाई तो यह भी है कि इस अंचल से सुदूर गांवों में नक्सलवादियों का ही राज है. आदिलाबाद के प्रतिबद्ध संयुक्त जिलाधीश एसके सिन्हा और उत्साही पुलिस अधीक्षक विवेक दूबे की टीम विकास कार्यों के बल आदिवासियों को मुख्यधारा से जोड़ने का भरसक कोशिश कर रही है. इस क्रम में तेलुगु देशम और कांग्रेस के बड़े-बड़े नेता और जमींदार इन अधिकारियों के दुश्मन बन गये हैं.

कांग्रेस के एक पूर्व विधायक के पास तीन हजार एकड़ भूमि है. आलमपल्ली के कृष्णा रेड्डी के पास चार सौ एकड़ भूमि थी. पूर्व सांसद और मंत्री खड़म नारायण रेड्डी, तेलुगु देशम के विधायक जीवी सुधाकर राव और माधव राव जैसे तीन-चार सौ एकड़ के अनेक जोतदार इस अंचल में हैं. इन अधिकारियों ने इन बड़े जमींदारों के खिलाफ कार्रवाई आरंभ की, फिर भी इन्हें वामपंथी ताकतों का समर्थन नहीं मिला. वामपंथ का सपना देखनेवाले हर उपलब्ध हथियार का अपने पक्ष में इस्तेमाल करते हैं, लेकिन आदिलाबाद में जो ईमानदार अधिकारी कार्यरत हैं, उन्हें तेलुगु देशम और कांग्रेस के साथ-साथ वहां के वामपंथी भी अपना वर्ग शत्रु मानते हैं. पीपुल्स वार ग्रुप के आदिलाबाद जिले के सचिव गंधारामास्वामी पर 15-20 हत्याओं का आरोप हैं. इंटरमीडिएट पास गंधारामास्वामी रेडिकल स्टूडेंट्स यूनियन से जुड़े रहे हैं. प्रशासन का आरोप है कि अपने दल का आतंक बनाये रखने के लिए खासतौर से यह गुट पुलिस पर हमला बोल रहा है. बोरगांव और चित्रा राजपल्ली गांवों में हत्याएं करने के बाद इन लोगों ने चौराहे और मंदिर पर सिर कलम कर लटका दिये.

आंध्र में नक्सलवाद ने आतंकवाद का रास्ता अख्तियार करने के पूर्व अनेक मंजिलें तय की हैं. यह राज्य वामपंथी शक्तियों के लिए उर्वर भूमि है. 1930 से ही यहां साम्यवादियों की सुगठित पार्टी थी. तेलंगाना के आंदोलन ने साम्यवादी आंदोलन की जड़ों को पुख्ता किया. देश के गरीब-गुरबों को इस आंदोलन में एक नयी आशा की किरण दिखाई दी. इसके बाद श्रीकाकुलम में खूनी विद्रोह हुआ. उन दिनों नक्सलवाद अपने उफान पर था, छात्रों-नवयुवकों के आकर्षण का केंद्र, प्रतिबद्ध कार्यकर्ता ईमानदारी से अपने लक्ष्य को साकार करना चाहते थे. इस कारण श्रीकाकुलम के समर्पित दिग्गजों वेंपटापुसत्यम (मास्टर गारु) पंचादि कृष्णमूर्ति और उनकी पत्नी निर्मला, आदिभट्ट कैलाशम, तामाण गणपति और सुब्बाराव पाणिग्रही को आज भी आम लोग सम्मान से याद करते हैं.

उन दिनों आंध्र के समर्पित नक्सलवादियों ने साहित्य और राजनीति में व्याप्त जड़ता को तोड़ने की गंभीर कोशिश की. तेलुगु साहित्य में दिगंबर कवि, तिरुगु बाटु (विद्रोही कवि) और पैगंबर कवुलु (पैगंबर कवियों) की टोली नयी राह तलाश रही थी. आंध्र के दिग्गज साम्यवादी नेता देवालपल्लि वेंकटेश्वर राव, तारिमल्ला नागी रेड्डी, राजनीति का खोखलापन समझ चुके थे. 1968-69 में ही तारिमाल्ला नागी रेड्डी ने आंध्र विधानसभा में विपक्ष के नेता और विधायक पद से त्यागपत्र देते हुए कहा कि ‘30 वर्ष हमने पार्लामानी कार्रवाई’ में व्यर्थ गुजार दिया.

उन दिनों इन चार समर्पित साम्यवादी चिंतकों ने ‘सशस्त्र क्रांति के लिए वैकल्पिक दस्तावेज’ पेश किया. बर्दमान कांग्रेस में छह घंटे तक इस दस्तावेज पर बहस हुई. उन दिनों पीपुल्स वार ग्रुप के नेता कोंडापल्ली सीतारमैय्या कृष्णा जिला में पार्टी सचिव थे.बाद में ही नक्सलवाद पर काबू पाने के लिए सिकंदराबाद षडयंत्र केस का नाटक हुआ. समर्पित साहित्यकार-प्रतिबद्ध नक्सली कार्यकर्ताओं पर फरजी मुकदमे आरंभ किये गये.

वस्तुत: 1970-71 के दौरान सशस्त्र क्रांति और व्यवस्था में बदलाव के लिए जो फिजां बनी, उससे आंध्र के उभरते कवि, साहित्यकार और बुद्धिजीवी अछूते और मूकदर्शक नहीं रहे. इन्होंने अपढ़ और मूक जनता में आस्था और संघर्ष के बीज बोये. परिवर्तन का सपना दिखाया. 1970-71 में ऐस रचनाकारों के तीन पुस्तक संकलन ‘झंझा’ (कविता संकलन), ‘इप्पुडु वीइस्तुना गाली’ (अब वो हवा चल रही है कहानी संग्रह ‘मार्च’ (कविता), प्रतिबंधित कर दिये गये. उस दौरान टी खान, ज्वालामुखी, चेराबंड राजू और निखिलेश्वर के घरों पर अकसर पुलिस पहुंचने लगी. 1970 में टी खान को छोड़ कर बाकी तीन डीआइआर में बंद कर दिये गये. 1971 में बरवर राव, चेराबंड राजू और टी खान ‘मीसा’ में बंद किये गये. पुलिस यह आरोप थोपती रही कि ये लोग अपनी रचनाओं-भाषणों से लोगों को गुमराह करते हैं. मई ’74 में शुरू हुए सिकंदराबाद षडयंत्र केस की यह पृष्ठभूमि थी. इसमें कुल 41 लोग गिरफ्तार किये गये, जिनमें से छह वीरसम (विप्लव रचेतल संघम) के सदस्य थे. वीरसम ने साहित्य में व्याप्त जड़ता को तोड़ कर खलबली पैदा कर दी थी. इसके अधिकतर समर्पित साहित्यकार-कवि बिल्कुल नीचे तबकों से ऊपर उठे थे. अधिकतर गरीब घरों से आये समर्पित अध्यापक थे.

चेराबंड राजू बचपन में खेत मजदूर थे. निखिलेश्वर राव भी अत्यंत गरीबी में पले-बढ़े थे. सबसे अदभुत प्रतिबद्धता और लोक के प्रति ईमानदारी थी. गंवई परिवेश से आये चेराबंड राजू ने ही प्रसिद्ध गीत ‘हम मुक्ति के गीत गाते हैं’ लिखा था, उन्होंने ही किस्तेगौड़ा और भूमैया को नायक के रूप में घर-घर तक पहुंचाने का साहस किया. लेकिन सरकार ने नौकरी से मुअत्तल कर उन्हें भूखों मरने के लिए विवश कर दिया. लगभग नौ वर्ष तक जेल में बंद रखने के बाद आंध्र के तत्कालीन लोकतांत्रिक सरकार ने उस जनकवि को मारने के लिए विवश किया, जिसने अपने गीतों से दलितों के बीच मुक्ति की आकांक्षा जगायी थी. जिसने ‘हर घर में बढ़ते अंधेरे’ और ‘हर आंख से बहते आंसू’ के गीत के साथ थे. अब अदालत (मरणोपरांत) ने उन्हें निर्दोष करार दिया है.

6 मई 1965 को इन लोगों ने हैदराबाद के मशहूर चौराहा ‘नामपल्ली’ में अपनी एक पुस्तक का विमोचन आधी रात में पांडु (रिक्शावाला) से कराया. अक्तूबर 1966 में विजयवाड़ा में इन लखकों के दूसरे संकलन का विमोचन रात के बारह बजे (जीरो आवर) ‘जंगाल चिट्ठी’ (होटल बेयरा) ने किया. 1968 में विशाखापत्तनम के वेश्यालय में यशोदा (जो पहले वेश्या थी, बाद में उम्र ढलने पर भिखारिन बन गयी थी) ने तीसरे संकलन का विमोचन किया. इस तरह आंध्र में एक ऐसी साहित्यिक फिजां बनी, जिससे आम लोगों के दुख-दर्द की गूंज अभिव्यक्त होने लगी. हिंदी के मशहूर प्रतिबद्ध कवि वेणुगोपाल भी इन लोगों से आ जुड़े. इन लोगों की नुक्कड़ सभाएं,पोस्टर कविता आदि गतिविधियों से तत्कालीन सरकार चौकन्नी हो गयी. इस नयी फिजां को नेस्तानाबूद करने के लिए आंध्र में जो पुलिस आतंक और जुल्म आरंभ हुए, वे बेमिसाल हैं. कन्नाबिरन के शब्दों में ‘आंध्र में ऐसे समाज-जीवन दर्शन की नींव पड़ी, जहां मनुष्य से पैसा महत्वपूर्ण हो गया. आज यह नींव-दर्शन रामराव के नेतृत्व में पुख्ता हो गये हैं.’

1967-71 में श्रीकाकुलम नक्सलवादी आंदोलन के विफल होने के बाद आंध्र में अनेक नक्सली गुट उभर आये. 1975 में सीतारमैय्या ने चारू मजूमदार की पुरानी ‘रणनीति’ अख्तियार की. वह बहुत ही सशक्त प्रवक्ता और संगठनकर्ता माने जाते हैं. पुलिस वार ग्रुप के मौजूदा प्रमुख नेताओं में मुकु सुब्बा रेड्डी, आइबी समशिवा राव व एम कोटेश्वर राव के नाम उल्लेखनीय हैं. अस्पष्ट लक्ष्यों के कारण अब समर्पित कार्यकर्ता पीपुल्स वार ग्रुप से टूट रहे हैं. कुछ दिनों पूर्व पीपुल्स वार ग्रुप के एक दलम (टुकड़ी) के सक्रिय कार्यकर्ता बागम रमेश ने इस दल से अपना नाता तोड़ लिया. अब यह मांचरियाल में दूध का व्यवसाय कर रहे हैं. उनका निष्कर्ष है कि हिंदुस्तान की जनता अभी खूनी क्रांति के लिए तैयार नहीं है. करीमनगर, निजामाबाद, आदिलाबाद और वारंगल में इस गुट का दबदबा है. टी नागी रेड्डी गुट के लोग, गुंटुर, अनंतपुर और नलगुंडा में काम कर रहे हैं. चंद्रपुल्ला रेड्डी गुट के लोग वारंगल, खम्मम, पश्चिम गोदवरी में अपना आधार पुख्ता कर रहे हैं.

देश के दूसरे राज्यों की तरह आंध्र में भी नक्सलवादी आंदोलन अब युवकों और समझदार राजनीतिक कार्यकर्ताओं के आकर्षण का केंद्र नहीं रहा. आंध्र के साहित्यकारों-बुद्धिजीवियों ने जिस शिद्दत से आरंभिक चरणों में इसकी रहनुमाई की थी. वह उल्लेखनीय है. धन वसूली और निरर्थक हत्या के भंवरजाल में फंस कर आंध्र के नक्सली सही राह से भटक चुके हैं.

नक्सलियों के लिए चुनौती बन गये हैं पुलिस अधीक्षक

आदिलाबाद में पुलिस अधीक्षक पद पर विवेक दुबे के पदस्थापन के पूर्व यहां कथित नक्लवादियों-अपराधियों का राज था. भौगोलिक संरचना के कारण नक्सली और कुख्यात अपराधी इसे सुरक्षित पनाहस्थल समझते थे. लेकिन विवेक दुबे ने कार्यभार संभालते ही यहां मुस्तैदी से कार्य आरंभ किया. नौजवान और प्रतिबद्ध श्री दुबे मार्क्सवाद और वामपंथी साहित्य से अच्छी तरह वाकिफ हैं. राज्य में नक्सलवाद के उदय और आदिवासियों के विकास की उन्हें बेहतर समझ है. यही कारण है कि नक्सली उन्हें अपना सबसे बड़ा शत्रु मानते हैं.

आंध्र के खूंखार और आतंक फैलानेवाली कुख्यात पुलिस को भी आदिलाबाद में संयमित-मर्यादित रखने का श्रेय श्री दुबे को है. आदिलाबाद में नक्सलियों के कई गुट सक्रिय हैं. लेकिन सीपी चंद्रपुल्ला रेड्डी ग्रुप, पीवी ग्रुप, रऊफ ग्रुप और पीपुल्स वार ग्रुप खास तौर से अपनी स्थिति सुदृढ़ करने में लगे हैं. लेकिन सबसे मजबूत आधार पीपुल्स वार ग्रुप (कोंडापल्ली सीतारमय्या) का है. पिछले वर्ष हैदराबाद से सटे वारंगल में एक पुलिस सब-इंस्पेक्टर यादगिरी रेड्डी की हत्या स्टेशन पर वीभत्स तरीके से कर दी गयी. उपलब्ध सूत्रों के अनुसार नक्सलियों ने पुलिस को सबक सिखाने के लिए श्री रेड्डी की हत्या की. रेड्डी पर नक्सली महिला कार्यकर्ताओं पर जुल्म ढाने का आरोप था.

उनके शव-जुलूस में पुलिस के लोगों ने घोर आपत्तिजनक नारे लगाये. बदले की आग में जल रहे पुलिसवालों ने उसी दिन वारंगल के मशहूर चिकित्सक डॉ रामनाधन (आंध्रप्रदेश पीपुल्स यूनियन ऑफ सिविल लिबर्टी के उपाध्यक्ष) की उनके क्लिनिक में घुस कर हत्या कर दी. मशहूर कवि और सीकेएम कॉलेज के उप प्रधानाचार्य वरवरराव को भी उस दिन पुलिस ढूंढ़ती रही. उन्हें अपनी जान बचाने के लिए हैदराबाद भाग कर जमानत रद्द करवा कर जेल में शरण लेनी पड़ी. वहीं आदिलाबाद में पिछले दो वर्ष के दौरान 18 पुलिस के जवान नक्सलवादियों के हाथ मारे गये. फरवरी के प्रथम सप्ताह में आदिलाबाद के खानपुर पुलिस स्टेशन में बारूद लगा कर पुलिस की एक जीप को ही ध्वस्त कर दिया. छह पुलिसवाले मारे गये. इस कार्य के लिए नक्सलवादियों ने स्थानीय गांववालों की मदद ली. डर के कारण गांववालों ने पुलिस को सूचना नहीं दी. यह जानते हुए भी कि गांववालों को इस षडयंत्र की खबर पहले से थी. आदिलाबाद की पुलिस ने उन गांववालों को न गिरफ्तार किया, न उनके खिलाफ कार्रवाई की, क्योंकि पुलिस की नजर में गांववाले नक्सलवादियों के आतंक में जी रहे हैं.

जब श्री दुबे ने नक्सलवादियों के खिलाफ कार्रवाई तेज की, तो पीपुल्स वार ग्रुप (कोंडापल्ली सीतारमय्या गुट) ने इसे ‘युद्ध क्षेत्र’ घोषित कर दिया. श्री दुबे को इस गुट के लोग अपना सबसे बड़ा शत्रु मानते हैं. इन लोगों ने लिखित धमकी भी दी कि उनके खिलाफ पुलिस कार्रवाई नहीं रोकी गयी, तो ‘आलमपल्ली’ दोहराया जायेगा. निर्मल सब डिवीजन के आलमपल्ली में 18 अगस्त 1987 को 10 पुलिस के जवानों को नक्सलियों ने मार डाला था. लेकिन इस धमकी से श्री दुबे हतोत्साहित नहीं हुए. आदिलाबाद के पूर्व जिलाधीश सीएस शर्मा ने आदिवासियों के उत्थान के लिए अद्भुत कार्य किया. जमीन रेकॉर्ड ठीक करने और आदिवासियों को उनका सही हक दिलाने का यह काम अब संयुक्त जिलाधीश एमके सिन्हा कर रहे हैं. जिला प्रशासन ने इस समस्या से निबटने के लिए दो मोरचे पर प्रयास किया. सामाजिक-आर्थिक उत्थान के काम तेज किये गये. चौपट कानून-व्यवस्था को दुरुस्त करने की गंभीर कोशिश हुई. इससे नक्सलवादियों को लगा कि उनका पुख्ता आधार कमजोर हो रहा है, इस कारण पिछले दो वर्षों के दौरान इन लोगों की उग्रवादी गतिविधियां काफी तेजी से बढ़ीं. श्री दुबे ने यहां ‘एंटी एक्सट्रीमिस्ट ऑपरेशन’ (आतंकवाद विरोधी अभियान) आरंभ किया. पुलिस को यह निर्देश दिया गया कि वह आत्मरक्षार्थ ही गोली चलाये.

विवेक दूबे मानते हैं कि आदिलाबाद पिछड़ा और सामंती रूझान का जिला है. नक्सली आरंभिक दौर में सामंती शोषण के खिलाफ ईमानदारी से संघर्ष कर रहे थे. उस दौर में पढ़े-लिखे लोग, डॉक्टर, इंजीनियर आदि इनके साथ थे. तब इन गुटों का नेतृत्व काफी समझदार और दृष्टि संपन्न था. उस दौर में इन लोगों ने गांव-गांव की यात्रा की. ये लोग उन सुदूर गांवों में गये, जहां सरकारी प्रतिनिधि नहीं पहुंच सके. तब हिंसा, इनका अंतिम लक्ष्य नहीं, शोषण रहित समाज विकसित करने का साधन था. कोंडापल्ली सीतारमैय्या ने उन दिनों जेनारम में आंदोलन किया. तहसीलदार के यहां खुद उपस्थित होकर अरजी दी. सत्तर के उस दशक में आदिवासियों और दलित लोगों के बीच इनके प्रति सहानुभूति थी. लेकिन ’80 के दौर में नक्सली आंदोलन की उर्वर शक्ति और बौद्धिक संपन्नता खत्म हो गयी. केंद्रीय नेतृत्व की बागडोर कमजोर हो गयी. अनावश्यक और निरुद्देश्य हिंसा का दौर आया. श्री दुबे के अनुसार पिछले दो वर्षों के दौरान नक्सलियों ने जिन 18 लोगों की हत्या की, उनमें से एक भी बड़ा भूपति या जमींदार नहीं था. वह कहते हैं कि ‘18 पुलिसवालों की इन लोगों ने हत्या की, जबकि वेतनभोगी कभी शोषक नहीं कहे जा सकते.’ श्री दुबे मानते हैं कि नक्सली अब अपराध-आतंकवाद का रुख अख्तियार कर चुके हैं. आदिलाबाद के नक्सलियों का संपर्क पंजाब के आतंकवादियों से हो गया है. विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार पीपुल्स वार ग्रुप के पास सात एके-47 राइफल हैं. श्री दुबे के अनुसार पुलिस को इन लोगों ने इस कारण लक्ष्य बनाया है, ताकि पूरे जिले में दहशत फैलायी जा सके. पुलिस भी चौकस है. 27 मुठभेड़ के दौरान 33 नक्सली मारे गये हैं. पिछले दो वर्षों में 60 नक्सली पकड़े गये हैं, जिनमें 22 लोगों की गिरफ्तारी पर पुरस्कार घोषित था.

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