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कैसे छूटेगी यह लत

शराब की लत को छोड़ पाना आसान नहीं है. जिन लोगों को अत्यधिक लत लग चुकी है, इसे छोड़ते ही अंदर कई तरह की समस्याएं उत्पन्न होने लगती हैं. इन समस्याओं को अल्कोहल विदड्रॉल सिंड्रोम कहते हैं. इन लक्षणों के कारण कभी-कभी मरीज की मृत्यु भी हो सकती है. ऐसे लोगों की लत को छुड़ाने […]

शराब की लत को छोड़ पाना आसान नहीं है. जिन लोगों को अत्यधिक लत लग चुकी है, इसे छोड़ते ही अंदर कई तरह की समस्याएं उत्पन्न होने लगती हैं. इन समस्याओं को अल्कोहल विदड्रॉल सिंड्रोम कहते हैं. इन लक्षणों के कारण कभी-कभी मरीज की मृत्यु भी हो सकती है. ऐसे लोगों की लत को छुड़ाने में होमियोपैथिक दवाएं काफी हद तक मददगार साबित होती हैं.
जब कोई इनसान शराब का इतना आदि हो जाये कि वह उसके बगैर अपने को कमजोर समझने लगे और किसी भी कीमत पर उसे छोड़ने को तैयार न हो, तो इसे अल्कोहलिज्म कहते हैं. अल्कोहलिज्म यानी शराब की लत का शरीर के विभिन्न अंगों पर असर होता है. होमियोपैथी दवा का एक फायदा यह भी है, कि दवा से कोई साइड इफेक्ट नहीं होता है. यानी दवाओं को बंद करने से शरीर पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है. जो मरीज सामान्य रूप से आदी हैं, उन्हें आदत छोड़ने में तीन महीने का समय लगता है. जिन लोगों को इसकी बुरी लत लग चुकी है या जो इसके जाल में बुरी तरह जकड़ चुके हैं, उन्हें दवाओं की मदद से आदत छोड़ने में छह महीने तक का समय लग सकता है.
होमियोपैथिक दवाएं
शराब छोड़ने से अल्कोहल विदड्रॉल सिंड्रोम के लक्षण जैसे-अनिद्रा, भूख में कमी, कमजोरी, चिड़चिड़ापन उत्पन्न होते हैं. इससे घरेलू हिंसा भी बढ़ती है. उन सब पर होमियोपैथी दवाओं से काबू पाया जाता है. साथ-साथ इसकी आदत छुड़ानेवाली दवाएं भी चलती रहती हैं. इससे बिना किसी अधिक परेशानी के आदत छूट जाती है. होमियोपैथी में कई ऐसी दवाएं हैं, जो विभिन्न तरीके से असर करके शराब को छुड़ाने में मदद करती हैं. जिन लोगों ने शराब से मुक्ति पाने का दृढ़ संकल्प दिखाया और इलाज कराया, वैसे 80% मामलों में होमियोपैथी सफल रही है. बाकी 20% मामले भी ऐसे हैं, जिनमें बीच में ही इलाज छोड़ दिया गया. इन दवाओं को लक्षणों के अनुसार दिया जाता है.
-स्टरकुलिया एकुमिनाटा : कमजोरी लगे, धड़कन कम हो गयी हो, तब इसे दिया जाता है. यह दवा भूख बढ़ाती है और खाना पचाने में सहायक है. इससे शराब के कारण हुआ कुपोषण दूर होता है. यह दवा मुंह का स्वाद बदल देती है. शराब पीते ही स्वाद बिगड़ जाता है, जिससे शराब की महक से भी नफरत होने लगती है. शराब पीने की इच्छा कम हो जाती है. इस दवा की पांच से 10 बूंद मूल अर्क में सुबह-रात आधे कप पानी के साथ लें.
-अवेना साटाइवा : शराब से मानसिक एवं यौन संबंधी कमजोरियां भी हो जाती हैं. शराब के बिना एक पल भी रहना मुश्किल लगता है. नींद बिल्कुल गायब हो जाये. तब 10 से 20 बूंद मूल अर्क में गुनगुने पानी के साथ सुबह-रात लें.
-क्युरीकस ग्लैडियम स्प्रीटस : शराब से पैदा हुए हर बुरे असर को यह दवा काटती है. शराब के प्रति नफरत पैदा करती है, क्योंकि यह दवा लेने के बाद शराब लेने पर उलटी महसूस होती है या हो जाती है. इसलिए शराबी डर से शराब छोड़ने लगता है. यह दवा 10 बूंद मूल अर्क लेकर एक चम्मच पानी के साथ तीन से चार बार दिन भर में लें.
-नक्स वोमिका : जो शराब अधिक लेते हों, पतले, चिड़चिड़े हों, शोर, रोशनी और सुगंध बर्दाश्त नहीं होता हो. सुबह उठते ही या खाना खाने के बाद उलटी के जैसा लगता हो, भूख कम लगती हो और हमेशा शराब की जरूरत महसूस होती हो. तब 200 शक्ति की दवा रोज रात में लें.
-कैप्सीकम : वैसे शराब की लतवाले रोगी, जो मोटे हों, शारीरिक काम बिल्कुल न करना चाहें और अकेले सिर्फ घर में ही रहना पसंद करते हों. (होम सिकनेस) यहां तक की नहाना न चाहें, गंदा रहने की आदत रहे. दोनों हाथों को सीधा रखने पर उनमें कंपन रहे. तब 200 शक्ति की दवा रोज सुबह-रात में लें.
नोट: दवा का सेवन कम-से-कम तीन महीने तक करना जरूरी है.
– डॉ एस चंद्रा, होमियोपैथी विशेषज्ञ
आयुर्वेद में क्या है उपाय
आयुर्वेद की दृष्टि से यह वात और पित्त की विकृति है. स्नायु तंत्र की उत्तेजना को शांत करके मस्तिष्क की कोशिकाओं को सही करने और शराब के कारण हुई क्षति को ठीक करने में अश्वगंधा, जटामासी, ब्राह्मी, बच, मंडूकपर्णी, अमृता, अपराजिता, शंखपुष्पी, कुष्मांड (भाथुआ) जैसी आयुर्वेद की अनेक वनौषधियों से बने योग कारगर होते हैं.
अल्कोहल के कारण लिवर क्षतिग्रस्त होता है और पित्त विकृति होती है, जिसे ठीक करने के लिए शतावर, अमृता, पुनर्नवा, कालमेघ, यष्टिमधु, के साथ, प्रवाल पंचामृत , कामदुधा रस से बनी दवाइयों का प्रयोग निश्चित लाभकारी होता है. दवाओं के प्रयोग के साथ-साथ खान-पान में परिवर्तन भी उतना ही जरूरी है. मसालेदार और तेल युक्त खाने से परहेज के साथ-साथ दही, छाछ, लस्सी, मीठे रसदार फलों और हर प्रकार की हरी सब्जियों (परबल, पपीता, झींगा, नेनुआ) हरे, लाल पत्तोंवाले साग का अधिक मात्रा में सेवन करना लाभदायक होता है.
आयुर्वेद से दूर करें पायरिया
डॉ प्रताप चौहान
आयुर्वेदाचार्य व निदेशक जीवा आयुर्वेद, दिल्ली
पायरिया होने पर दांतों और मसूड़ों की जड़ से बहुत ज्यादा मात्रा में मवाद निकलता है. यह मवाद फिर भोजन के साथ हमारी जठरांत्र नलिका यानी पाचन नलिका में पहुंचता है और वहां नलिका द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है. इस वजह से दूसरे रोगों का खतरा भी बढ़ जाता है.
क्या हैं कारण
हमारे मुंह में जीवाणु यानी बैक्टीरिया के संक्रमण के कारण पायरिया होता है. पेरियोडोंटाइटिस, जिंजिवाइटिस जैसी बीमारियां और कुछ दूसरी पुरानी बीमारियों के कारण भी पायरिया की शिकायत हो जाती है. दांतों और मुंह की साफ-सफाई में कमी के साथ ही अपच और बहुत ज्यादा अम्लता यानी हाइपरएसिडिटी पायरिया होने के मुख्य कारण होते हैं.
जब भोजन के कण लंबे समय तक हमारी मुख गुहा में पड़े रहते हैं, तब उनमें सड़न उत्पन्न हो जाती है. इस सड़न के कारण ही बैक्टीरिया को पनपने का अनुकूल माहौल मिलता है. बाद में यही बैक्टीरिया हमारे मसूड़े, दांतों की हड्डियों और डेंटल लिगामेंट को संक्रमित कर देते हैं और हम पायरिया से ग्रस्त हो जाते हैं. इसलिए इस रोग में मुंह की साफ-सफाई का काफी ध्यान रखा जाता है.
लक्षण व उपचार
-ब्रश करते समय मसूड़ों से खून आना
-मसूड़ों में कड़ापन और सूजन
-पेरियोडोंटल एब्सेस
-सांसों से दुर्गंध का आना आदि इसके प्रमुख लक्षण हैं.
आयुर्वेदिक सलाह : पायरिया रस और रक्त धातु में दोष होना परिलक्षित करता है. यह दोष पाचन के सही नहीं होने के कारण होता है. पाचन के दौरान जो विष यानी टॉक्सिन निकलता है, वह इन दोनों ही धातुओं के साथ मिश्रित होकर मसूड़ों और मुख गुहा में एकत्रित हो जाता है. इस बीमारी में भीतरी और बाहरी दोनों उपचार किये जाते हैं. आयुर्वेदिक औषधि के माध्यम से पाचन को फिर से सही किया जाता है, ताकि शरीर से नियमित तौर पर टॉक्सिन का निष्कासन होता रहे.
खून साफ करनेवाली औषधि, मवाद और खून को बंद करने के लिए दांतों को साफ करनेवाला मंजन रोगी को दिया जाता है.
उपचार : रोग के उपचार के लिए औषधियां दी जाती हैं, जो लक्षणों पर निर्भर हैं. अम्ल पित्तांतक चूर्ण, धात्री रसायन, प्रवाल पिष्टी, स्फटिका पिष्टी, यष्टिमधु कंपाउंड, भूधात्री चूर्ण, आमपाचक चूर्ण दिये जाते हैं. इनके अलावा लीलाविलास रस, खदिरादि वटी, त्रिफला वटी, सप्तामृत लौह आदि टेबलेट दिये जाते हैं. इनका उपयोग मरीज की स्थिति के अनुसार किया जाता है. अत: इनका प्रयोग चिकित्सक की सलाह से ही करें.
बातचीत : विनीता झा
शराब से मिलेगा छुटकारा
शराब छोड़ने के लिए सबसे पहले आपके अंदर मजबूत इच्छाशक्ति होनी चाहिए. अगर आपमें यह है, तो दवाओं व कुछ खास उपायों से इस लत से छुटकारा पाया जा सकता है. इसमें घरवालों का सहयोग भी अहम है, ताकि अल्कोहल को छोड़ कर आप खुशियों को गले लगा सकें.
योग कैसे करता है आपकी मदद
जिन लोगों को लंबे समय से शराब की लत है, उन लोगों के शरीर में टॉक्सिन की अत्यधिक मात्रा जमा हो जाती है तथा सांस लेने की क्षमता कमजोर पड़ जाती है. ऐसे लोगों में शारीरिक संतुलन के अभाव से हाथों में कंपन शुरू हो जाता है, जिससे ऐसे लोग हीन भावना से ग्रस्त महसूस करते हैं.
आसन : जिस व्यक्ति को शराब की पुरानी लत हो, उसे सबसे पहले लघु शंख प्रक्षालन, कुंजल और जल नेति का अभ्यास करना अनिवार्य है.ताकि इन अभ्यासों के माध्यम से शरीर के विषैले पदार्थों को बाहर निकाला जा सके. इनके अलावा संतुलन और श्वसन से संबंधित आसन करना चाहिए. ऐसे लोगों को मुख्य रूप से पवन मुक्तासन-1 का अभ्यास करना चाहिए. इससे नर्वस सिस्टम को संतुलित किया जा सकता है तथा फेफड़े की क्षमता को भी बढ़ाया जा सकता है. इससे मांसपेशियों और नसों में प्राण ऊर्जा की वृद्धि होती है, जिससे हाथों में होनेवाला कंपन दूर होता है..
(योग विशेषज्ञ धर्मेंद्र सिंह से बातचीत)
फर्टिलिटी होती है प्रभावित
अल्कोहल महिलाओं की फर्टिलिटी पर भी बुरा प्रभाव डालता है. इसके सेवन से हॉर्मोन का असंतुलन पैदा होता है, जो मासिक चक्र को प्रभावित कर गर्भधारण करना मुश्किल बनाता है. ओव्यूलेशन के बिना महिला गर्भधारण नहीं कर सकती है. अल्कोहल के प्रयोग से यूटेरस के अंदर की लाइनिंग एंडोमेट्रियम में विकृति पैदा हो सकती है, जहां फर्टिलाइज्ड अंडा इंप्लांट होता है और फिर विकसित होता है. एस्ट्राेजेन एवं प्रोजेस्टेरोन के स्तर भी अल्कोहल से प्रभावित होते हैं. महिलाएं जितना अधिक अल्कोहल लेती हैं, फर्टिलिटी की समस्याएं उतनी ही अधिक एवं गंभीर हो जाती हैं. यदि महिला गर्भ धारण करने के बाद भी शराब लेना जारी रखती है, तो गर्भपात, भ्रूण के अनियमित विकास, समय से पहले जन्म या स्टिलबर्थ का खतरा बढ़ जाता है. आइवीएफ की सफलता दर भी घटती है.
मनोरोग चिकित्सा
अल्कोहल विदड्रॉल सिंड्रोम शराब के लती के शराब नहीं पीने के कारण होता है. यह समस्या आखिरी बार शराब पीने के दो घंटे बाद से शुरू हो सकती है. इसके लक्षण कई हफ्तों तक रह सकते हैं. इसमें चिंता, अस्थिरता, दौरे और उन्माद जैसे लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं, जिसे डेलिरियम ट्रीमेंस कहते हैं. यह गंभीर इसलिए है क्योंकि इसके एक-पांच प्रतिशत मामलों में, भ्रम, धड़कन तेज होने और बुखार से मृत्यु हो जाती है. इसलिए अधिकांश इलाज शराब के सेवन को बंद करने में मदद करने पर ही केंद्रित होते हैं.
इलाज के बाद व्यक्ति को शराब पीने से रोकने में मदद मिलती है. शराबी के शरीर में कई ऐसे कारक होते हैं, जो उसे शराब पीने के लिए उकसाते हैं. शराब से मुक्ति के लिए इन सभी कारकों पर ध्यान दिया जाना चाहिए. इसके लिए कुछ दवाइयां भी दी जाती हैं, िजनसे काफी लाभ होता है.
एंटाब्यूज :
यह दवा एसिटल्डिहाइड को बनने से रोकती है. यह रसायन एथेनॉल के रासायनिक परिवर्तन के दौरान शरीर में उत्पन्न होता है. इस दवा के सेवन से इसके निर्माण में कमी आती है.
नाल्ट्रेक्सोन :
इसका प्रयोग शराब की लालसा को कम करने और संयम को बढ़ाने के लिए किया जाता है. शराब के सेवन से एंडोर्फिन मुक्त होता है, जिससे लोगों को शराब पीने के बाद आनंद आता है. नाल्ट्रेक्सोन इस प्रक्रिया को रोकता है.
डॉ केके सिंह, मनोरोग विशेषज्ञ
शरीर को कैसे गलाता है अल्कोहल
इसके कारण होनेवाला नुकसान इसकीली गयी मात्रा पर निर्भर करता है. नुकसान तब होता है, जब यह धीरे-धीरे आदत बन जाती है. लोग थोड़ी मात्रा से शुरू करके बाद में काफी अधिक पीना शुरू कर देते हैं. ऐसे में व्यक्ति अपने दिन की शुरुआत भी अल्कोहल से करने लगता है. वह खाली पेट भी अल्कोहल लेने लगता है. सिर्फ लिवर ही नहीं यह पूरे शरीर को डैमेज करता है. इसके सीधे प्रभाव से ड्यूडेनम अल्सर हो जाता है. इसके बाद गैस्ट्राइटिस होता है, जिससे पेट दर्द, गैस, उलटी आदि की शिकायत होती है. अल्कोहल के खून में जाने के कारण इससे जुड़ी अन्य समस्याएं शुरू हो जाती हैं. सबसे पहले मरीज फैटी लिवर का शिकार हो जाता है. इसमें लिवर पर फैट की मात्रा बढ़ जाती है. यदि व्यक्ति पीना जारी रखता है, तो अल्कोहलिक हेपेटाइटिस होता है. उसके बाद लिवर में फोड़े हो जाते हैं, जिसे लिवर एब्सेस कहते हैं. 10 वर्ष के अंदर मरीज को लिवर सिरोसिस होता है, जिसमें मरीज का कैंसर में बदल जाता है.
बातचीत : अजय कुमार

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