पल्लवी त्रिवेदी, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक, भोपाल
निर्भया कांड का अंजाम सबके सामने है. अब लोगों को दोषियों के फांसी पर लटकने का इंतजार है. हमारे आस-पास, गली-मुहल्ले, गांव-कस्बे में हर पल एक निर्भया किसी की हैवानियत का शिकार होती है, मगर सभी को इंसाफ नहीं मिल पाता. यहां जरा रूक कर यह सोचने की जरूरत है कि आखिर वो कौन-सी परिस्थिति या वजह हैं, जो किसी को इंसान से हैवान बना देती है और वह बिना अंजाम सोचे ऐसा जघन्य अपराध कर बैठता है. इसी विषय पर पढ़ें यह खास रिपोर्ट…
पहली श्रेणी
पल्लवी की मानें, तो इनमें से पहली श्रेणी में वैसे सफेदपोश और पढ़े-लिखे नरपिशाच शामिल होते हैं, जो कुत्सित मानसिकता के साथ करीबी या दूर के रिश्तेदार, पड़ोसी, मित्र, बॉस, शिक्षक, सहपाठी, सहकर्मी या परिचित होते हैं. इनके द्वारा बलात्कार करने के पीछे पारिवारिक बदला या जातीयता भी कारण होते हैं. ये लोग छोटे लड़के-लड़कियों को भी अपनी हवस का शिकार बनाने से परहेज नहीं करते. ये विक्टिम (अपने शिकार) की नासमझी, डर या दुर्बलता का फायदा उठाते हैं. समाज में सभ्यता का मुखौटा लगाये ये लोग इस बात को अच्छी तरह से जानते हैं कि उनके विरुद्ध ऐसे आरोपों को कोई ‘सच’ नहीं मानेगा़ उल्टे इसके लिए पीड़िता को ही दोष दिया जायेगा. ये हिंसक नहीं होते हैं और हत्या जैसे अपराधों से बचके रहते हैं.
समाधान : आज के दौर में, जहां कि ऐसी घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं, वैसे में बच्चों को छुटपन से ही सही-गलत स्पर्शों (गुड टच-बैड टच) के विषय में बताया जाये. पैरेंट्स का रिश्ता बच्चों के साथ इतना सहज हो कि वे अपने साथ हो रहे किसी तरह के दुर्व्यवहार को उन्हें बताने से हिचकिचाएं नहीं. ऐसा होने से अगर कोई उन्हें डरा रहा हो या ब्लैकमेल कर रहा हो, तो यह बात पैरेंट्स शुरू में ही जान जायेंगे और इसके लिए आवश्यक कदम उठा पायेंगे. लड़कियों के दिमाग में यह बात कूट-कूट कर भरी जानी चाहिए कि अपराधी बलात्कारी होता है न कि बलत्कृत. अन्य लोगों को भी अपने जेहन में इस बात को बैठा लेने कि जरूरत है कि बलात्कार किसी महिला के साथ हुई एक बर्बर दुर्घटना है. उस पर जबरन किया गया एक तरह का शारीरिक प्रहार, जिसका ‘शुचिता’ और ‘इज्जत’ जैसी चीजों से कोई लेना-देना नहीं होता. जैसे चोरी करनेवाला चोर गुनहगार होता है, वैसे ही पाप की गठरी बलात्कारी के सिर पर होगी. बलात्कारी का सामाजिक बहिष्कार किया जाना चाहिए.
दूसरी श्रेणी
वे बलात्कारी होते हैं, जिन्हें इस बात का एहसास भी नहीं होता कि वे कुछ अपराध भी कर रहे हैं. वे अक्सर नशे या मानसिक दिवालियापन के गिरफ्त में होते हैं. उनकी इस प्रवृत्ति पर उनकी परवरिश और परिवेश का व्यापक प्रभाव होता है. सर्वसुलभ और आसानी से उपलब्ध सस्ती कामुक सामग्री इनकी कामुकता को इनकी समझ के दायरे से बाहर कर देती है. क्षणिक आवेश में उत्तेजित हो कभी अकेले तो कभी समूह में बलात्कार जैसी घिनौनी कृत्य को कर गुजरते हैं. ऐसी घटनाओं की पीड़िता अक्सर कोई अनजान या अकेली ही होती है, जिन्हें ये शायद ही पहले से जानते हों. विकृत मानसिकता वाले इन बलात्कारियों ने हाल के दिनों में पाशविकता की सीमाएं पार कर दी हैं. ये अपनी दमित कुंठित, क्रूर और अमानवीय व्यवहारों से समाज और देश को कलंकित कर रहें हैं. ऐसे लोगो की पहचान बेहद जटिल है. भीड़ से अचानक कौन-सा चेहरा बाहर आ कर निर्दयता से किसी लड़की के जीवन तक से खेल जायेगा, कहना मुश्किल है, क्योंकि भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता. इनसे बचने के लिए जरूरी है- सावधानी, सतर्कता और आत्मरक्षा के उपाय अपनाना.
मानसिकता : अलीगढ़, यूपी की साइकैट्रिस्ट डॉ अंतरा गुप्ता की मानें तो- ‘रेपिस्ट अपनी काम भावना को कंट्रोल नहीं कर पाते हैं. अगर कोई लड़की उन्हें पसंद आ जाती है, तो वो उन्हें हर हाल में पाना चाहते हैं, चाहे वो हां कहे या ना. कई बार ऐसे लोगों के लिए रेप बदला लेने का माध्यम भी बन जाता है. कुछ ऐसे मनोरोगी होते हैं, जिन्हें दूसरों को नुकसान पहुंचा कर खुशी मिलती है.’
समाधान : मानसिकता में आमूल परिवर्तन के लिए छुटपन से ही लड़कों जेंडर सेंसेटिव बनाना होगा. सरकार और प्रशासन को भी रेप दोषियों के खिलाफ त्वरित और कठोर कानूनी कार्यवाही करने की पहल करनी चाहिए.