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अस्थमा : इलाज से ज्यादा बचाव है जरूरी, ये हैं लक्षण

अस्थमा के लक्षण दिखाई देने पर व्यक्ति को डॉक्टर को दिखाना चाहिए और इस बीमारी को नियंत्रित करने के लिए डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए. अस्थमा के उपचार में वायुमार्ग में सूजन को कम करने का प्रयत्न किया जाता है और किसी भी तरह की एलर्जी से बचने की सलाह दी जाती है. इलाज का […]

अस्थमा के लक्षण दिखाई देने पर व्यक्ति को डॉक्टर को दिखाना चाहिए और इस बीमारी को नियंत्रित करने के लिए डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए. अस्थमा के उपचार में वायुमार्ग में सूजन को कम करने का प्रयत्न किया जाता है और किसी भी तरह की एलर्जी से बचने की सलाह दी जाती है.
इलाज का मुख्य उद्देश्य मरीज के श्वसनतंत्र को सामान्य बनाकर अस्थमा के दौरे को कम करना और दैनिक गतिविधियों को आसान बनाना होता है. अस्थमा के लक्षणों को दूर करने के लिए अस्थमा इनहेलर्स एक अच्छी विधि मानी जाती है, क्योंकि इस विधि में दवाओं को सीधे फेफड़े तक पहुंचाया जाता है.
गोली या कैप्शूल से अस्थमा को अधिक फायदा नहीं होता, क्योंकि एक तो गोली या कैप्शूल मुंह के रास्ते पाचनतंत्र में जाते हैं और वहां से खून के साथ अन्य अंगों में पहुंचता है, जहां इसकी जरूरत नहीं भी होती है. इस कारण फेफड़ों पर असर कम पड़ता है, जबकि दूसरे अंगों पर नकारात्मक असर की आशंका रहती है. अस्‍थमा से निबटने के लिए इन्‍हेल्‍ड स्‍टेरॉयड जरूरी है.
इसके अलावा ब्रोंकॉडायलेटर्स वायुमार्ग के चारों तरफ कसी हुई मांसपेशियों को आराम देकर अस्थमा से राहत दिलाते हैं. इन्‍हेलर के माध्‍यम से फेफड़ों में दवाईयां पहुंचाने का काम किया जाता है. अस्‍थमा नेब्‍यूलाइजर का भी प्रयोग उपचार में किया जाता है. अस्थमा का गंभीर अटैक होने पर डॉक्टर ओरल कोर्टिकोस्टेरॉयड्स का एक छोटा कोर्स लेने की सलाह दे सकते हैं.
अस्थमा से बचाव :
– अस्‍थमा में इलाज के साथ बचाव की जरूरत ज्यादा होती है. अस्‍थमा के मरीजों को बारिश और सर्दी से ज्यादा धूल भरी आंधी से बचना चाहिए. बारिश में नमी के बढ़ने से संक्रमण की आशंका अधिक होती है. इसलिए खुद को इन चीजों से बचा कर रखें.
– वायु प्रदूषण, पराग, एलर्जिक रिएक्शन, ठंडी हवा के कारण अस्थमा का दौरा पड़ सकता है. इसलिए इन स्थितियों से अपने शरीर को बचाकर रखना चाहिए.
– प्रत्येक व्यक्ति को निमोनिया और एंफ्लूएंजा के टीके लगवाने चाहिए, जिससे एलर्जी व निमोनिया से बच सकें.
– ज्यादा गर्म और ज्यादा नम वातावरण से बचना चाहिए, क्योंकि इस तरह के वातावरण में मोल्ड स्पोर्स के फैलने की आशंका बढ़ जाती है. धूल-मिट्टी और प्रदूषण से बचें.
– घर से बाहर निकलने पर मास्क साथ रखें. यह प्रदूषण से बचने में मदद करेगा.
– सर्दी के मौसम में धुंध में जाने से बचें. धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों से दूर रहें और खुद भी धूम्रपान न करें. घर को डस्ट फ्री बनाएं. साफ-सफाई के समय भी नाक पर मास्क जरूर लगाएं. यदि आपको पहले से अस्थमा है, तो भी धूल वाले जगहों की खुद से सफाई न करें.
– योग के माध्यम से अस्थमा पर कंट्रोल किया जा सकता है. सूर्य नमस्कार, प्राणायाम, भुजंगासन जैसे योग अस्थमा में फायदेमंद होते हैं.
– अगर आप अस्थमा के मरीज हैं, तो दवाइयां साथ रखें, खासकर इन्हेलर या अन्य वैसी चीजें जो आपको डॉक्टर द्वारा बतायी गयी हैं.
– अस्‍थमा के मरीजों का खानपान भी बेहतर होना चाहिए. अस्‍थमा के मरीजों को आहार में हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन अधिक करना चाहिए.
अस्थमा के प्रकार
एलर्जिक अस्थमा : एलर्जिक अस्थमा के दौरान आपको किसी खास चीज या कई चीजों से एलर्जी हो सकती है जैसे- धूल-मिट्टी या मौसम परिवर्तन आदि. इसके अलावा भी कुत्ते या बिल्ली, धुंध,धूल, फूल या अगरबत्ती की महक, सिगरेट आदि से एलर्जी हो सकती है.
एक्सरसाइज इनड्यूस अस्थमा : कई लोगों को एक्सरसाइज या फिर अधिक शारीरिक श्रम के कारण भी अस्थमा हो जाता है, तो कई लोग जब अपनी क्षमता से अधिक काम करने लगते हैं, तो वे अस्थमा का शिकार हो जाते हैं. ऐसे लोगों को अपनी क्षमता के हिसाब से ही काम करना चाहिए.
कफ वेरिएंट अस्थमा : जब लगातार कफ की शिकायत हो या खांसी के दौरान अधिक कफ आये, तो आपको अस्थमा का अटैक पड़ सकता है.
ऑक्यूपेशनल अस्थमा : यह अस्थमा अटैक अचानक काम के दौरान पड़ता है. नियमित रूप से लगातार आप एक ही तरह का काम करते हैं, तो अक्सर आपको इस दौरान अस्थमा अटैक पड़ने लगते हैं या फिर आपको अपने कार्यस्थल का वातावरण सूट नहीं करता हो, तो भी अस्थमा की समस्या हो सकती है.
एडल्ट ऑनसेट अस्थमा : 18-20 वर्ष की आयु के बाद इस अस्थमा का खतरा बढ़ जाता है. इस प्रकार के अस्थमा के पीछे कई एलर्जिक कारण छिपे होते हैं. हालांकि, इसका मुख्य कारण प्रदूषण, प्लास्टिक, अधिक धूल-मिट्टी और जानवरों के साथ रहने पर होता है.
दो रोगों का मिश्रण है सीओपीडी
डॉ दीपांकर बराट
सीनियर कंसल्टेंट, मेडिसिन, आरएमआरआइ, पटना
जब मरीज क्रोनिक ब्रोनकाइटिस और एमफिसिमा नामक दो बीमारियों से ग्रस्त होता है, तो उस अवस्था को सीओपीडी (क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव प्लमोनरी डिजीज) कहा जाता है. आमतौर पर सीओपीडी इन दो बीमारियों का मिश्रण है. क्रोनिक ब्रोनकाइटिस में श्वसन नली में सिकुड़न हो जाती है, जिसकी वजह से श्वसन नली से ऑक्सीजन पूरी तरह से फेफड़ों तक नही पहुंच पाता. कई बार श्वसन नली में तरल पदार्थ जमा होने की वजह से नली ब्लॉक हो जाती है. एमफिसिमा में फेफड़ों में गुबारे की तरह मौजूद रहनेवाले ऑक्सीजन के कण डैमेज हो जाते हैं और अपना कार्य सही तरीके से नहीं कर पाते हैं.
यही कण ऑक्सीजन को फेफड़ों के अंदर तक ले जाते हैं और फिर बाहर लेकर आते हैं. कण डैमेज होने की वजह से ऑक्सीजन पूरी तरह से फेफड़ों के अंदर तक नहीं पहुंच पाती. इस बीमारी के कारण मरीज को सांस लेने और छोड़ने में तकलीफ होती है.
बच्चों को पैसीव स्मोकिंग से होता है खतरा : आप बच्चों को कुछ सावधानियां बरतकर भी इस बीमारी से बचा सकते हैं. बच्चों को प्रदूषण से दूर रखें, धूम्रपान करनेवाले लोगों से भी दूर रखें. एक शोध के अनुसार 60 प्रतिशत मामलों में अस्थमा की एलर्जी का कारण अन्य लोगों के स्मोकिंग से श्वसन नली में जानेवाला धुआं है. इसे पैसीव स्मोकिंग कहते हैं.
पैसीव स्मोकिंग अन्य श्वसन से जुड़े रोगों के लिए भी खतरनाक है. बच्चों में पैसीव स्मोकिंग का असर जल्दी होता है क्योंकि उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता अपेक्षाकृत कमजोर होती है.
इसलिए सिगरेट से निकलनेवाला कार्बनडायऑक्साइड और कार्बन मोनाऑक्साइड सहित अन्य हानिकारक
गैस बच्चे के फेफड़े को संक्रमित कर देते हैं. इसके अलावा बच्चों में अस्थमा का
खतरा बदलती जीवनशैली और बढ़ते
प्रदूषण के कारण भी फैलता है. बच्चों को फर वाले जानवरों के साथ न खेलने दें.
यदि बच्चों को उनसे एलर्जी होगी, तो
उनसे खेलने के बाद बच्चों में अस्थमा
के लक्षण दिखायी देने शुरू हो जायेंगे.
फास्ट फूड से परहेज कराएं, क्योंकि इससे शरीर की प्रतिरोधात्मक क्षमता कमजोर होती है और संक्रमण तेजी से फैलता है.
बातचीत और प्रस्तुति : सौरभ चौबे
बच्चों में अस्थमा के लक्षण निम्न हो सकते हैं :
– खेलकूद के दौरान सांस फूल जाना – जल्दी थकावट महसूस होना – सीने में जकड़न रहना
– सुबह-शाम बलगम बनना.
देखभाल के साथ लें उचित डाइट :
अस्थमा के मरीजों को खान-पान में भी विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है. चिकित्सक बतातें है कि अस्थमा मरीजों के लिए शहद काफी फायदेमंद है क्योंकि इसमें विटामिन बी के साथ अन्य मिनरल्स होते हैं.
विटामिन बी छाती में जकड़न, खांसी आदि की समस्या को दूर करने में काफी उपयोगी साबित होता है. इसलिए शहद का उपयोग निरंतर करना चाहिए. इसके अलावा अस्थमा मरीज जैतून का तेल व सेब अन्य फलों का सेवन भी कर सकते हैं, बशर्ते कि उनको उससे एलर्जी न हो. अस्थमा मरीज अंकुरित अनाज और फलियों का सेवन भी कर सकते हैं.
अस्थमा मरीज इन बातों का रखें ध्यान :
– प्रदूषण से बचें. धूल एवं धुंए के संपर्क से दूर रहने की कोशिश करें.
– डेयरी प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल न करें.
– दवाइयां नियमित रूप से लें.
– इन्हेहेलर का भी नियमित प्रयोग करें.
– खाना धीरे-धीरे चबा कर खाएं.
– पानी खूब पीएं.
– एलर्जी से बचने की कोशिश करें.
– हल्का योगाभ्यास करें. श्वसन नली को आराम मिलेगा.

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