17.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

बच्चों को पढ़ाई के लिए कहिए मगर उनके मूड को भी पहचानिए

वीना श्रीवास्तव साहित्यकार व स्तंभकार इ-मेल : veena.rajshiv@gmail.com, facebook.com/veenaparenting, twitter @14veena बच्चों की परीक्षा का समय आ गया है. इस समय बच्चों पर बहुत प्रेशर होता है. इसलिए अभिभावकों की भी जिम्मेवारी बढ़ जाती है. बच्चों ने अगर पूरे वर्ष मेहनत की है, तब तो उन्हें केवल पाठ्यक्रम को दोहराना ही होगा, लेकिन किसी भी […]

वीना श्रीवास्तव

साहित्यकार व स्तंभकार

इ-मेल : veena.rajshiv@gmail.com, facebook.com/veenaparenting, twitter @14veena

बच्चों की परीक्षा का समय आ गया है. इस समय बच्चों पर बहुत प्रेशर होता है. इसलिए अभिभावकों की भी जिम्मेवारी बढ़ जाती है. बच्चों ने अगर पूरे वर्ष मेहनत की है, तब तो उन्हें केवल पाठ्यक्रम को दोहराना ही होगा, लेकिन किसी भी वजह से कहीं कमी रह गयी, तो इस समय आपके पास केवल एक ही विकल्प है- पढ़ना. अभिभावक बच्चों का मनोबल बढ़ा सकते हैं. इस समय थोड़ी सख्ती भी करनी पड़े तो जरूर करिए, क्योंकि इन परीक्षाओं में दोबारा मौका नहीं मिलेगा.

अगर अच्छे नंबर नहीं आये, तो आपका अच्छे कॉलेज में दाखिला ही नहीं होगा. मन चाहे विषय नहीं मिलेंगे. बच्चे अगर ज्यादा गंभीर नहीं हैं, तो आपको उन्हें परीक्षा की अहमियत समझानी होगी. हालांकि अगर आपको लग रहा है कि आपका बच्चा ठीक से नहीं पढ़ रहा, लेकिन कह रहा है कि ‘मेरी तैयारी पूरी है’ तो उस पर विश्वास न करें, बल्कि उससे संबंधित विषय के कुछ प्रश्न पूछकर देखिए. आपको पता चल जायेगा. आपका काम समझाना है. उसे सही राह दिखानी है.

तीन साल पहले मेरी एक मित्र की बेटी का बोर्ड एग्जाम था. उसका जन्मदिन परीक्षा शुरू होने से 20 दिन पहले था. उसने कहा कि कुछ देर के लिए अपनी दोस्तों के साथ एक-दो घंटे कहीं कुछ खाकर आ जायेगी, लेकिन उसकी मम्मा ने मना कर दिया, यह कहकर कि पार्टी एग्जाम के बाद देना. कुछ दिनों बाद मैंने उसकी परीक्षा की तैयारी जानने के लिए फोन किया, तब मित्र ने बताया कि ”वह जन्मदिन के बाद तीन दिन तक गुस्से के कारण नहीं पढ़ी, इसलिए कि उसे सेलिब्रेट करने से मना कर दिया था. मेरा तो बहुत मूड खराब है.

मन कर रहा था दो-तीन कसकर लगाऊं”. मैंने उससे कहा कि गलती तो तुम्हारी है. एक-दो घंटे में अगर बच्चियां खाकर आ जातीं, तो क्या हो जाता? आखिर सुबह से शाम तक तो कोई नहीं पढ़ सकता. रिलैक्सेशन भी जरूरी है. हम इंसान हैं, मशीन तो हैं नहीं और मशीन को भी रेस्ट चाहिए होता है. दो घंटे जाने देती तो तीन दिन नहीं बर्बाद होते. उसने कहा मैंने तो अपना फर्ज निभाया. उसे पढ़ाई के लिए कहा.

उसकी मां होने के नाते तो मेरा यही फर्ज था कि उसे पढ़ाई पर फोकस करने के लिए कहूं. सिर पर एग्जाम है और वह सोच भी कैसे सकती है कि पढ़ाई छोड़कर वह घूमे. मैंने उसे समझाया कि फर्ज तो है तुम्हारा, लेकिन बच्चे की इच्छा भी मायने रखती है. उसका जन्मदिन था और दो घंटे की ही बात थी.

उसे जाने देना चाहिए था, क्योंकि सभी माता- पिता जानते हैं कि अगर बच्चों की मर्जी खासकर किसी विशेष दिन को लेकर वे उत्साहित हैं और उन्हें न जाने दिया जाये तो तीन-चार घंटे की एवज में कई दिन खराब होते हैं. वहीं अगर उसे खुशी-खुशी जाने दिया होता, तो वह वापस लौटकर दोगुनी खुशी से मन लगाकर पढ़ती. फिर उसने पूछा कि तुमने भी बेटे को कहीं जाने नहीं दिया? मैंने बताया कि दीवाली की रात उसने कहा कि सोसाइटी के सारे ब्वॉयज इकट्ठा होकर रात में तीन बजे तक जगेंगे. मैं जाऊं? पहले मैंने मना कर दिया. उसने कुछ नहीं कहा.

फिर मैंने देखा कि वह बॉलकनी से खड़े होकर देख रहा है. मैं उसका नेचर भी जानती हूं कि मूड ऑफ होगा, तो वो पूरा दिन नहीं पढ़ेगा. मैंने उससे कहा- ”जाओ, लेकिन तीन का मतलब तीन ही होना चाहिए, पढ़ाई भी करनी है”. भाई दूज के बाद ही उसका एग्जाम था. वह इतना खुश हुआ और ‘थैंक्यू मम्मा’ बोलकर तुरंत चला गया और तीन बजे वापस आ गया. हालांकि बाकी बच्चे पांच बजे तक बैठे रहें.

यह सभी अभिभावकों, खासकर मां को तो पता ही होती है अपने बच्चे की खासियत, आदत, उसका मूड. वह उसकी भूख से लेकर उसकी पसंद-नापसंद सब जानती है. इसलिए मुझे भी पता था कि मैं उसे अभी 4 घंटे की परमिशन नहीं दूंगी तो हो सकता है वह 48 घंटे बर्बाद कर दे.

आपका भी तो मूड ऑफ होता है जब आपकी सास, पति या कोई अन्य वरिष्ठ सदस्य आपको किसी मन पसंद काम के लिए मना कर देता है. इसलिए आप बच्चों के मूड को पहचानिए. आजकल बच्चे अपने भविष्य को लेकर खुद सजग हैं. वे खुद से ही बहुत पढ़ते हैं. ऐसे में कही जाने के लिए एक-दो घंटे की परमिशन मांगते हैं, तो दे देनी चाहिए.

जब मन प्रसन्न रहता है, तो हम दोगुनी, चौगुनी तेजी से काम करते हैं, लेकिन जब मन ही खुश न हो, तो किसी काम में मन नहीं लगता, खासकर पढ़ाई में तो बिलकुल भी नहीं. उसके अलावा मन में बहुत तरह के ख्याल आते हैं कि ”पापा–मम्मा को हमारी, हमारी खुशियों की परवाह ही नहीं. जब देखो पढ़ो-पढ़ो, यही कहती रहती हैं. एक-दो घंटे के लिए जाने देतीं तो क्या होता? मगर नहीं जाने दिया.

हर समय थोड़े ही पढ़ा जाता है”. इन ख्यालों के साथ ही उसका भी मूड बिगड़ता है और 3-4 घंटे की जगह एक-दो दिन बर्बाद हो जाते हैं. अब यह आप खुद सोचिए कि क्या तीन-चार घंटों के लिए दो-तीन दिन बर्बाद करना समझदारी है ? और बच्चो, अब आपके पास भी समय नहीं है. बिना समय बर्बाद किये सिर्फ पढ़ाई पर फोकस करिए.

क्रमश:

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें