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बच्चे को हल्के में न लीजिए वह सब समझ-सीख रहा है

सिबोरिया इन्फेक्शन की वजह से डॉक्टर ने हमें सख्त हिदायत दे दी थी कि हम बच्चे की मालिश, नहाना किसी एक्सपर्ट-दाई से करवाने की जगह खुद करें. मैं हमेशा से चाहती भी यही थी कि अपने बच्चे का हर काम खुद करूं. लेकिन सिजेरियन डिलीवरी की वजह शुरू के कुछ महीनों में वह संभव नहीं […]

सिबोरिया इन्फेक्शन की वजह से डॉक्टर ने हमें सख्त हिदायत दे दी थी कि हम बच्चे की मालिश, नहाना किसी एक्सपर्ट-दाई से करवाने की जगह खुद करें. मैं हमेशा से चाहती भी यही थी कि अपने बच्चे का हर काम खुद करूं.
लेकिन सिजेरियन डिलीवरी की वजह शुरू के कुछ महीनों में वह संभव नहीं था. लेकिन जब डॉक्टर ने एक्स्ट्रा हाइजीन केयर के लिए कहा, तो मैंने अपनी परिस्थिति को परे रखते हुए उसके सारे काम खुद करने का निर्णय लिया. पहली बार मां बनी थी. नन्ही-सी जान को नहलाना और उसकी मालिश करना कैसे होगा, मुझे नहीं पता था. मैं कुछ सोचती, उससे पहले ही मेरे मस्तिष्क में एक छवि उकेरने लगी. मां के पैरों पर लेटी मेरी छोटी बहन की छवि. जब वह पैदा हुई थी, तब मैं चार साल की थी. मां दिन भर उसकी मालिश-नहलाना और बाकी कामों में लगी रहती थीं.
मां साथ में मुझे कहती जातीं-‘देख मैं क्या कर रही हूं. ऐसे करते हैं, ऐसे नहीं करते हैं.’ उस वक़्त शायद मां को भी नहीं पता था, वह जो कर रही थीं और मुझे बता रही थीं, वह जीवन भर मेरे दिमाग में स्टोर रहेगा.
हर रोज दोहरायी जानेवाली उन घटनाओं ने ख़ुद को मेरे दिमाग के सब-कॉन्सियस दिमाग में हमेशा के लिए डाउनलोड कर दिया, जो भविष्य में मुझे तब काम आया जब मुझे उसकी जरूरत थी.
उस दिन जब मेरी आंखों के आगे मां की वह मालिश करती छवि बनी, तो मैंने विस्तार से बच्चों का दिमाग कैसे काम करता है, के बारे में जानने के लिए इंटरनेट खंगाल डाला. आपको जानकर हैरानी होगी कि जन्म के समय बच्चों के दिमाग में 100 बिलियन न्यूरॉन्स होते हैं, जो आगे भी उसके दिमाग में हमेशा रहेंगे. उम्र बढ़ने के साथ ये न्यूरोन भी बढ़ते हैं, अपनी शाखाएं फैलाते हैं, एक-दूसरे से ख़ुद को जोड़ते हैं, ताकि सिग्नल पास हो सकें.
मजेदार बात यह है कि दिमाग के मामले में दुनिया का हर बच्चा समय से पहले पैदा हुआ ही माना जाता है. यदि उसके मस्त्तिष्क के संपूर्ण विकास के लिए उसे पेट में रख दिया गया, तो उसके दिमाग का साइज उसके जन्म के समय से छह गुना बड़ा हो जायेगा. अब ऐसे नॉर्मल डिलीवरी भला कैसे संभव है. इसलिए प्रकृति ने अपनी इस रचना में प्रेग्नेंसी टाइम को थोड़ा कट-शॉट किया और नौ महीने में जब बच्चे के दिमाग को उसके पूरे न्यूरोन्स मिल जाते हैं, तब बाहर निकालने का निर्णय लिया और बाकी सीखने के लिया बाहर छोड़ दिया.
शोधकर्ताओं के अनुसार जन्म से लेकर छह साल तक बच्चों का दिमाग अपने आस-पास से सब कुछ डाउनलोड कर रहा होता है. वह बैठना, चलना, बोलना, खाना आदि के साथ-साथ अच्छी-बुरी बातों का फ़र्क, दुनिया सीखते हैं. अब यह भी जान लेते हैं कि ये होता कैसे है? ये होता है तीन तरीकों से- सुनना, देखना और अनुभव करना या महसूस करना.
बच्चे अपने आस-पास के लोगों या अपने बड़ों की बातों को सुनते हैं. आप यह मत सोचिए कि वह बच्चा है, तो वह क्या समझेगा. वह सब समझता है, इसलिए उसे हल्के में मत लीजिए. बच्चे जिस तरह की बातें करते देखते हैं, वह हर रोज रिपीट होने पर उनके सबकॉन्सियस माइंड में सेव होता जाता है. धीरे-धीरे वही उनकी बातों में शामिल होने लगता है, इसलिए बच्चों के सामने जो भी बोलें, सोच-समझकर बोलें.
दूसरा, बच्चे आसपास की जिन घटनाओं को देखते-सुनते हैं, वे उन्हें भी डाउनलोड करते जाते हैं. वैज्ञानिकों का मानना है कि जो मां-बाप अपने बच्चों को “क्यों” के साथ बड़ा करते हैं, वे बच्चे बड़े होकर ज्यादा सुलझे हुए और व्यापक दृष्टिकोण रखते हैं.
मतलब बच्चा आपसे यदि कोई सवाल करें कि फलां चीज क्यों और कैसे होती है, तो उसके इस ‘क्यों’ का जवाब जरूर दें. इससे न सिर्फ उनकी जानकारी बढ़ेगी, बल्कि उसका दृष्टिकोण भी व्यापक होगा और वह एक सुलझी हुई समझ व आत्मविश्वास के साथ बढेगा.
तीसरा है- अनुभव करना. पहले आप अपने आस-पास के बच्चों को ध्यान में लाएं. क्या आपके पास कोई ऐसा बच्चा है, जो ज्यादा सहमा हुआ या आक्रोशित रहता है? यदि हां, तो क्या उसके घर का माहौल सामान्य है?
यकीनन आपका जवाब होगा नहीं. माता-पिता या परिवार के अन्य लोगों के बीच होनेवाले मतभेदों, मोहल्ले के लोगों, रिश्तेदारों, अध्यापकों और अब तो सोशल मीडिया की भी ज़िम्मेदारी बनती है कि वे नन्हे-मुन्ने के मन-मस्तिष्क में कैसे विचारों की खाद-पानी डालते हैं. आप जैसे खाद-पानी से सींचेंगे, बच्चे भी उसीके अनुरूप बड़े और विकसित होंगे और अपने आस-पास भी वैसा ही माहौल बनायेंगे.
एक रिसर्च कहती है कि जन्म के बाद से तीन साल तक बच्चों को उन्हीं लोगों के साथ छोड़ना चाहिए, जिनके जैसा आप उन्हें बनाना चाहते हों या फिर जिनके आस-पास रख कर आप अपने बच्चे को कुछ सिखाना चाहते हों. क्योंकि इंसानी दिमाग का सबसे तेज विकास जन्म के बाद शुरू के तीन सालों में होता है. यह विकास और भी बेहतर और अच्छा बन जाता है जब इन तीन सालों तक बच्चे को मां का दूध भी मिलता रहे.
क्रमश:

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