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आज ही छोड़ें गलत जीवनशैली, नहीं तो बन जायेंगे हृदय रोगी

हर रोज करीब 9000 लोग हृदय रोगों के कारण मौत के शिकार होते हैं. यानी हर 10 सेकेंड में एक मौत. इनमें से 900 युवा ऐसे हैं, जो 40 वर्ष से कम आयु के होते हैं. भारत में हृदय रोग को महामारी बनने से बचाने के लिए लोगों को जागरूक करना जरूरी है. भारत में […]

हर रोज करीब 9000 लोग हृदय रोगों के कारण मौत के शिकार होते हैं. यानी हर 10 सेकेंड में एक मौत. इनमें से 900 युवा ऐसे हैं, जो 40 वर्ष से कम आयु के होते हैं. भारत में हृदय रोग को महामारी बनने से बचाने के लिए लोगों को जागरूक करना जरूरी है. भारत में प्रति वर्ष करीब दो लाख ओपन हार्ट सर्जरी की जाती है. इसमें प्रतिवर्ष 25 प्रतिशत की दर से बढ़ोतरी हो रही है. इसके बाद भी हार्ट अटैक के मामले कम नहीं हो रहे हैं.
समस्या को जड़से समाप्त करने के लिए जरूरी है कि लोग सचेत रहें औरस्वस्थ जीवनशैली अपनाएं.
डॉ नीरज भल्ला
डायरेक्टर और एचओडी-कार्डियोलॉजी, बीएलके
सुपर स्पेशयलिटी हॉस्पिटल, नयी दिल्ली
हृदय रोग की पुष्टि के लिए इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम (इसीजी) भी कराया जाता है. हृदय, फेफड़ों और चेस्ट वॉल की स्थिति देखने के लिए एक्स-रे कराया जाता है. एक्सरसाइज के समय ट्रेडमिल टेस्ट (टीएमटी) कराया जाता है, ताकि हृदय पर एक्सरसाइज के प्रभाव को देखा जा सके.
वहीं, धमनियों में रुकावट की स्थिति का पता करने के लिए कॉर्डियोवस्कुलर कार्टोग्राफी, हार्ट फ्लो मैपिंग, सीटी एंजियोग्राफी और इन्वेसिव कॉर्नरी एंजियोग्राफी जैसी जांचें की जाती हैं.
क्या है उपचार
हृदय रोग का स्थायी उपचार संभव नहीं, लेकिन शुरू में ही इलाज कराया जाये, तो लक्षणों पर काबू पाया जा सकता है. इससे हार्ट फेल्योर की आशंका कम की जा सकती हैं. जीवनशैली में सुधार व नियमित दवाइयां लेना जरूरी हैं.
स्थिति गंभीर होने पर सर्जरी भी करानी पड़ सकती है. जीवनशैली में सामान्य बदलाव जैसे- संतुलित भोजन, शारीरिक गतिविधियों में बढ़ोतरी, नियमित व्यायाम, धूम्रपान का त्याग, रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल और शूगर पर नियंत्रण आदि से हृदय रोग, स्ट्रोक और पागलपन की आशंका कम की जा सकती है. कोलेस्ट्रॉल, उच्च रक्तचाप और मधुमेह को दवाइयों से नियंत्रित किया जा सकता है.
अन्य दवाइयां, हृदय की धड़कन की गति कम करने, रक्त पतला करने और क्लॉटिंग से बचाने व धमनियों को चौड़ा करने के लिए दी जाती हैं. इनमें से कुछ दवाइयों से सिरदर्द, कमजोरी, सूखी त्वचा, आलस्य, शरीर में दर्द, याददाश्त और सेक्स इच्छा में कमी जैसे साइड इफेक्ट सामनेे आ सकते हैं. समय-समय पर रक्त की जांच करानी चाहिए, ताकि किडनी और लिवर की कार्यशीलता का पता लग सके. याद रखें, स्वस्थ्य जीवनशैली अपना कर आप जरूर हृदय रोग से बचाव कर सकते हैं.
हृदय रोग के अधिकतर मामले आर्टरी ब्लॉकेज के होते हैं. इसके कारण रक्त संचरण में अवरोध उत्पन्न होता है और हार्ट अटैक की समस्या होती है. ऐसे मामलों में एंजियोप्लास्टी का सहारा लिया जाता है, जिसमें स्टेंट की भूमिका महत्वपूर्ण होती है.
दरअसल, एंजियोप्लास्टी में बैलून की मदद से ब्लॉकेज को खोलने के बाद उसमें स्टेंट लगा दिया जाता है, जो आर्टरी को सपोर्ट देने का कार्य करता है. यह दोबारा ब्लॉकेज होने से भी रोकता है. एक तरह से यह मरीज के लिए जीवनरक्षक का कार्य करता है.
दो तरह के हैं स्टेंट
स्टेंट मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं. इसमें पहला प्रकार ट्रेडीशनल स्टेंट है, जो मेटल का होता है. 80 के दशक में जब स्टेंट प्रचलन में आया, तब इसे मेटल का बनाया गया. हालांकि जब कोई बाहरी चीज शरीर में डाली जाती है, तो शरीर का वह हिस्सा उससे प्रतिक्रिया करता है.
इस कारण मरीज को तत्काल तो स्टेंट से राहत मिल जाती थी. मगर शरीर की प्रतिक्रिया के कारण स्टेंटवाले हिस्से में इन्फेक्शन होने और टिश्यू का ग्रोथ हो जाने से दोबारा ब्लॉकेज हो जाता था. यह स्थिति खतरनाक थी. ऐसे में इसे बनाने के लिए ऐसे मेटल का प्रयोग किया गया, जो कम-से-कम प्रतिक्रिया करे. अत: सबसे पहले इसे स्टेनलेस स्टील से बनाया गया. बाद में कोबाल्ट-क्रोमियम से बनाया जाने लगा.
इससे सुरक्षा पहले से बढ़ गयी, लेकिन खतरा अब भी था. 90 के दशक में स्टेंट पर दवाइयां चढ़ायी गयीं, जो तीन महीने में रोगी के शरीर में एब्जॉर्ब हो जाती हैं. 80 के दशक में जहां इससे खतरा 20 प्रतिशत था, वहीं अब स्टेंट से खतरा इन्फेक्शन का एक फीसदी से भी कम रह गया है.
दूसरे प्रकार का स्टेंट बायो एब्जॉर्वेबल होता है, जो धीरे-धीरे शरीर में ही एब्जॉर्ब हो जाता है. हालांकि, इसकी भी कुछ समस्याएं हैं. यह सभी प्रकार के मामलों में सूटेबल नहीं होता है. थोड़ा भी टेढ़ा होने पर इसमें क्लॉट बन जाने का खतरा होता है, जिससे स्थिति गंभीर हो सकती है.
सावधानी रखना भी जरूरी
स्वस्थ रहने के लिए रहन-सहन में बदलाव भी जरूरी है, अन्यथा दोबारा ब्लॉकेज हो सकता है. दवाइयों को समय से लेना चाहिए. इसमें मुख्य रूप से खून को पतला करनेवाली दवाइयां होती हैं, जिसमें एस्प्रिन का प्रयोग खास तौर से होता है. हार्ट अटैक के समय भी एस्प्रिन की गोली दी जाती है. कोलेस्ट्रॉल को कंट्रोल में रखनेवाली दवाइयां भी लेनी होती हैं. नियमित व्यायाम करना भी जरूरी है.
कुछ नयी तकनीक
सीआरटी : जिन लोगों में हृदय के काम करने का स्तर 25% या इससे कम हो जाता है, वैसे लोगों में इस डिवाइस को लगाया जाता है. यह हृदय को सपोर्ट देने का कार्य करता है. यह सभी को नहीं लगाया जा सकता है. इसके लिए पहले जांच की जाती है. जांच रिपोर्ट चेक करने के बाद ही इसे लगाया जाता है.
एआइसीडी : वैसे लोग जिन्हें कार्डियक अरेस्ट का खतरा होता है, उनमें इस डिवाइस को लगाया जाता है. कार्डियक अरेस्ट के समय यह डिवाइस मरीज की जान बचाने में मदद करता है. कार्डियक अरेस्ट ऐसी अवस्था है, जिसमें हृदय अचानक काम करना बंद कर देता है. एक से दो मिनट में मरीज को चिकित्सा नहीं मिलती है, तो मरीज की मृत्यु हो जाती है.
बातचीत : अजय कुमार

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