लिवर हमारे शरीर के लिए अति आवश्यक अंग है. यह प्रोटीन सिंथेसिस, जैव रसायन की पैदावार, विभिन्न चयापचयों
की से विषैले टॉक्सिक को हटाने, लाल रक्त कणिकाओं (RBC) को सेपरेट करने एवं हार्मोंन के बनने में मदद करता है. इसे हेल्दी रखने के लिए जरूरी है हमारा हेल्दी डायट लिवर की बीमारी कई तरह की होती हैं जैसे- हेपेटाइटिस, फैटी लिवर, लिवर सिरोसिस. लिवर खराब होने के कई कारण हैं, जैसे- इसमें अधिक दवाइयों का सेवन, अधिक एल्कोहल का सेवन, जीवाणुओं का संक्रमण और अनियमित एवं जंक फूड का सेवन शामिल है. आयरन की अत्यधिक मात्रा, जिसे हीमोक्रोमैटोसिस कहा जाता है, से भी लिवर खराब हो सकता है.
फैटी लिवर मरीज मुख्यत: इन्सुलिन रेसिस्टेंस होता है. इस अवस्था में शरीर इन्सुलिन बनाता तो है, पर कार्य अच्छे से नहीं कर पाता है. इससे गलूकोज की मात्रा शरीर में बढ़ जाती हैं, लिवर इस ग्लूकोज को वसा में बदल देता है. ओमेगा-3 फैटी एसिड मछली एवं मछली के तेल में, वेजिटेबल तेल, अखरोट, तीसी एवं पत्तेदार सब्जियों में यह पाया जाता है. यह इन्सुलिन को कार्य करने के लिए प्रेरित करता है. फैटी लिवर को खत्म करने के लिए एंटीआॅक्सीडेंट का उपयोग किया जाता है. बेरी और सूर्यमुखी का बीज लिवर को नुकसान होने से बचाता है. अखरोट में विटामिन-इ की अच्छी मात्रा पायी जाती हैं, जो लिवर के लिए फायदेमंद है. कच्चा लहसुन इन्सुलिन के कार्य को बढ़ाता है एवं शरीर में जमा फैट को तोड़ता है. यौगिक कार्बोहाइड्रेट लेना चाहिए. कैंडी, सोडा और अधिक मात्रा में नहीं लेना चाहिए.
लिवर सिरोसिस : लिवर सिरोसिस के मरीज को अधिक कैलोरी, अधिक प्रोटीन, अधिक कार्बोहाइड्रेट, अधिक विटामिंस एवं कम वसा लेनी चाहिए, जो लिवर सेल को ठीक करने में मदद करता है.
इसमें कैलोरी की आवश्यकता 2000-2500 kcal की होती हैं, क्योंकि इस बीमारी में वजन बहुत कम हो जाता है. प्रोटीन में फर्स्ट क्लास प्रोटीन, जिसमें सभी तरह के जरूरी अमीनो एसिड पाये जाते है, लेना चाहिए. अंडे का सफेद भाग, जो शुद्ध एल्बुमिन है, प्रतिदिन लेना चाहिए. प्रोटीन का निर्धारण बीमारी की स्थिति पर निर्भर करता है. हिपैटिक कोमा होने पर प्रोटीन नहीं लेना चाहिए. वसा की मात्रा 20 ग्राम तक लेना चाहिए. दूध व दूध से बनी चीजें लिवर लिवर सिरोसिस में फायदेमंद है. अत: लिवर के रोगों में यथासंभव इन आहारों को शामिल करने से रिकवरी तेजी से होगी.
जॉन्डिस में लें कार्बोहाइड्रेट
इन्फेक्टिव हेपेटाइटिस (jaundice) यह वायरस के संक्रमण से होता है. इसके लक्षण हैं- फीवर, सिर दर्द, तेजी से वजन घटना, मांसपेशियों का ढीला होना, उल्टी होना एवं पेट में दर्द आदि. इसमें पेशाब का रंग पीला से लाल रंग व पैखाने का रंग सफेद हो जाता है. ये 4 से 8 सप्ताह तक रहता है. इसमें लिवर सेल को फिर से बनने के लिए अधिक प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट एवं कम वसावाला आहार लेना चाहिए. एक बार में ज्यादा न खाकर थोड़ा-थोड़ा खाएं. प्रोटीन बीमारी की स्थिति के अनुसार दी जानी चाहिए. 40-80 ग्राम प्रोटीन की मात्रा आम तौर पर लाभकारी है. वसा की मात्रा जॉन्डिस में 30 ग्राम से अधिक न हो. कार्बोहाइड्रेट ऊर्जा का मुख्य स्रोत है.
फीवर एवं उल्टी रहने पर नसों से ग्लूकोज की मात्रा दी जाती है. जैसे ही मरीज मुंह से खाना शुरू हो, फलों का रस, नारियल पानी, हरी सब्जी का सूप, मधु इत्यादि दिया जाता है. जॉन्डिस मरीज के लिवर सेल को बनाने के लिए विटामिंस की मात्रा अधिक लेनी चाहिए. विटामिन सी 500 एमजी, विटामिन-K 10 एमजी एवं विटामिन बी कॉम्पलेक्स प्रतिदिन आहार में लेना चाहिए. ऐसे मरीज जो मुंह से आहार लेने में सक्ष्म हों, उन्हें सूजी का खीर, चावल का खीर, चपाती, चावल, बिना मलाईवाला दूध, आलू, फलों का रस, चीनी, गुड़, दही, गैर उत्तेजक पेय पदार्थ देना चाहिए. दाल, बीन्स, मीट, मछली, मुर्गा, मीट सूप, बेकरी पदार्थ, सूखा मेवा, मसाले, चटनी, पापड़, अचार, एल्कोहल, तली भुनी चीजें, क्रीमवाला दूध आदि नहीं लेना चाहिए. मरीज को डिहाइड्रेशन से बचाने के लिए पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थ देना चाहिए.
श्वेता जायसवाल
कंसल्टेंट डायटिशियन नगरमल मोदी सेवा सदन बरियातु, रांची