थाइलैंड में एक महिला ने स्वास्थ्य मंत्रालय से अपने बरबाद हुए बचपन के क्षतिपूर्ति की मांग की है. आठ साल की उम्र में जांच के दौरान महिला को गलती से एचआइवी पॉजेटिव बता दिया गया था.
नेशनल कंटेंट सेल
थाईलैंड की एक 20 वर्षीय महिला ने अपने देश के स्वास्थ्य मंत्रालय से अपने बरबाद हुए बचपन का हिसाब मांगा है. यह सुनने में अजीब सी मांग लग सकती है, लेकिन इस मांग में कुछ भी अनुचित नहीं है. थाईलैंड की सुथिदा साइंगसुमात ने अपना पूरा बचपन एक एड्स पीड़ित के तौर पर गुजारा. जब वह आठ वर्ष की थी, तब एचआइवी जांच में उसे संक्रमित बताया गया. इसके बाद से लोग उससे भेदभावपूर्ण व्यवहार करने लगे. साइंगसुमात भी इसके बाद से एचआइवी की दवाई खाने लगी. उसके साथ पढ़ने वाले सहपाठी, उसके पड़ोसी और यहां तक की उसके नाते रिश्तेदारों ने भी उससे दूरी बना ली.
इस वजह से उसने स्कूल की पढ़ाई छोड़ दी. उसने अपना बचपन अलग-थलग होकर रो-रोकर काटा. उसका पूरा बचपन इस तरह से बरबाद हो गया. वह बताती है कि एक बार स्कूल की ओर से उसका एचआइवी जांच करवाया गया था.
इसमें गलती से उसे एचआइवी पॉजिटिव बता दिया गया. चूंकि साइंगसुमात के पिता की मृत्यु एड्स के कारण हुई थी और बाद में उसकी माता भी गंभीर एलर्जी की बीमारी से ग्रसित होकर मर गयी. इस कारण उसे एड्स होने की संभावना से इनकार नहीं किया गया और फिर उसकी दोबारा जांच भी नहीं करायी गयी.
शादी के बाद जांच हुई तो एचआइवी निगेटिव निकला
शादी के बाद गर्भ निरोधक गोली खाने के बाद भी उसका गर्भ ठहर गया. जब वह बच्चे के जन्म से पहले जांच कराने पहुंची तो उसका एचआइवी जांच नेगेटिव आया. यानी उसे एड्स नहीं था. अभी कुछ दिनों पहले फिर से उसने दूसरे बच्चे के जन्म के वक्त अपना जांच करवाया. इस जांच में भी कहीं से उसमें एड्स के कोई लक्षण नहीं मिले. उसने बैंकॉक पोस्ट को बताया कि अब उसके बच्चों को यह बताने में शर्मिंदगी महसूस नहीं होगी कि उसकी मां एड्स पीड़ित है. अब उसने तय किया है कि अस्पताल द्वारा आज से 12 साल पहले किये गये गलत जांच के कारण बरबाद हुए अपने बचपन के क्षतिपूर्ति की मांग व स्वास्थ्य मंत्रालय से करेगी.
चिकित्सकीय लापरवाही के पीड़ितों को मिलता है मुआवजा
चिकित्सकीय लापरवाही के पीड़ितों के लिए काम करने वाले नेटवर्क की चेयरमैन प्रीयानांत लॉर्सरमातना का कहना है कि उनकी संस्था के पास ऐसे कई शिकायतें आती है. ऐसा ही एक मामला फुकेट की एक नर्स की लापरवाही से जुड़ा है. नर्स की गलती से एक व्यक्ति को एचआइवी पॉजेटिव बता दिया गया था. इस कारण उस व्यक्ति के चार साल बरबाद हो गये और उसका विदेश जाकर काम करने का अवसर खत्म हो गया. इस बाबत उसने शिकायत की और उस नर्स व अस्पताल के विरुद्ध केस किया और केस जीत भी गया. साइंगसुमात के मामले में अस्पताल या चिकित्सा कर्मचारी का कोई अता-पता नहीं रहने के कारण उसने सीधे स्वास्थ्य मंत्रालय से क्षतिपूर्ति की मांग की है.