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जायका : रमजान में इफ्तार का दस्तरखान

विभिन्न सूबों में पारंपरिक खजूर, हलीम, सेवियों के साथ-साथ स्थानीय जायकों को भी अहमियत दी जाती है और शाकाहारी अल्पाहार की ही बहुतायत नजर आती है.

रमजान के पवित्र महीने में आस्थावान मुसलमान मास पर्यंत उपवास करते हैं, दिन भर पानी तक नहीं पीते. पैगंबर मुहम्मद ने अपने अनुयायियों को आत्मानुशासन के अभ्यास के लिए यह हिदायत दी थी. शाम की नमाज के बाद यह व्रत, जिसे रोजा कहते हैं, ‘खोला’ जाता है- एक खजूर खाने के बाद पानी या शरबत पीकर. इसके बाद प्यासे शरीर को तरावट पहुंचाने और अगले दिन के उपवास के पहले आवश्यक पोषण देने के लिए ‘इफ्तार’ का खान-पान शुरू होता है. इसमें गैर मुसलमान परिचित व मित्र भी शामिल होते हैं.

वंचितों के साथ अपनी हैसियत के अनुसार मिल-बांट कर खाने का संदेश इस परंपरा से मिलता है. हाल के वर्षों में इफ्तार पार्टियों का आयोजन राजनेता जनसंपर्क के मकसद से करने लगे हैं- चुनावी राजनीति में अल्पसंख्यक मतदाता को रिझाने के लिए. इन मौसमी दावतों में तरह-तरह के कबाब, बिरयानी, कोरमे परोसे जाते हैं, जिससे यह भ्रांति होने लगी है कि इफ्तार का दस्तरखान मुख्यतः मांसाहारी व्यंजनों वाला होता है.

हकीकत यह है कि विभिन्न सूबों में पारंपरिक खजूर, हलीम, सेवियों के साथ-साथ स्थानीय जायकों को भी अहमियत दी जाती है तथा शाकाहारी अल्पाहार की ही बहुतायत नजर आती है. फलों की चाट, दही-बड़े, उबली चने की दाल की चाट, गुलगुले, समोसे, छुंकी मटर इनमें प्रमुख हैं. इसका कारण समझना कठिन नहीं. लंबे उपवास के बाद पेट पर अचानक गरिष्ठ-सामिष भोजन का भारी बोझ नहीं डाला जा सकता. यह भूमिका सहरी की है, जो सूर्योदय के पहले खायी जाती है. इफ्तार के व्यंजनों पर नजर डालें, तो यह बात भी स्पष्ट होती है कि इनमें खट्टे-मीठे, कड़वे-तीखे, नमकीन-कसैले सभी स्वाद झलकते हैं यानी यह षडरस अल्पाहार होता है.

कुल वैसा ही दृश्य है, जैसा नवरात्रि की फलाहारी थाली में दिखता है. आलू की टिक्की, दही बड़ों के ऊपर इमली की खट-मिट्ठी, सोंठ और धनिये-पुदीने-हरी मिर्च वाली चटनी नींबू या अमिया की खटास बिखेरती है. कड़वाहट का पुट भर जीभ की नोक से चखा जा सकता है मेथी दाने के तड़के में. मसाले के नाम पर ताजा भुना और पिसा जीरा जान डाल देता है चने दाल की चाट और बड़ों में.

दिन भर जिन स्वादों का स्वेच्छा से त्याग किया जाता है, उनको इफ्तार में चखकर तृप्ति मिल जाती है. हां, शरबतों की महिमा निराली है. आम का पन्ना, बेल-फालसे का शरबत, शिकंजी पहले घर पर ही तैयार किये जाते थे. गुड़हल एवं बादाम का शरबत तथा ठंडाई भी. बीसवीं सदी के पहले दशक में दिल्ली में सब्जियों और फलों के रस से बना उनके कुदरती गुणों से भरपूर होने का दावा करने वाले शरबत रूह-अफजा का ईजाद हुआ. तब से यह पूरे उपमहाद्वीप में पैर पसार चुका है. उपवास के बाद सूखे गले को तर करने के लिए इसे लस्सी, शिकंजी, मिल्क शेक आदि में मिला कर पीने का रिवाज बन चुका है. आज कल कुछ मेजबान अपनी इफ्तार की दावत में पिज्जा, चीज केक, पैन केक भी पेश करते हैं, शर्त इतनी भर है कि सभी पदार्थ हलाल हों, वर्जित नहीं.

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