Web series Sarpanch Sahab: अभिनेता सोनू सूद और सोनाली सूद द्वारा निर्मित वेब सीरीज ‘सरपंच साहब’ 30 अप्रैल को वेव्स ओटीटी (Waves) पर रिलीज हो रही है. शाहिद खान के निर्देशन में बनी सात भागों वाली इस श्रृंखला में अभिनेता पंकज झा (Actor Pankaj Jha) एक अहम किरदार निभाते नजर आएंगे. उन्होंने अपने दमदार अभिनय से ‘त्रिवेणी चाचा’ के किरदार को जीवंत कर दिया है. बता दें कि, अभिनेता पंकज झा सिर्फ एक कलाकार ही नहीं, बल्कि एक बेहतरीन लेखक और चित्रकार भी हैं. प्रभात खबर से बातचीत के दौरान पंकज झा ने अपनी श्रेष्ठ अभिनय क्षमता और अन्य रचनात्मकता का श्रेय अपने गुरु ओशो को दिया. उन्होंने कहा कि ओशो से उन्हें जीवन जीने की दिशा मिली है.
Osho के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं
अभिनेता पंकज झा ने बताया कि मानव जीवन के लिए ओशो के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है. क्योंकि संबंध, शादी, परिवार जैसी व्यवस्थाएं अब हास्यास्पद लगने लगी हैं. पंकज झा पिछले 20 वर्षों से ओशो से जुड़े हैं. उनके सभी ध्यान विधियों (Meditation) और थेरेपी को अपनाते हैं. उन्होंने कहा कि मैंने अपने ऊपर गहरा काम किया है और ‘पंचायत’ में जो अभिनय नजर आया, वही मेहनत अब ‘सरपंच साहब’ में भी दिखाई देगी. युवाओं के लिए उन्होंने ओशो (Osho) की दो किताबें विशेष रूप से सुझाईं. जिसमें ‘व्यस्त जीवन में ईश्वर की खोज’ और ‘नारी और क्रांति’ शामिल है.
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मेरी क्रिएटिविटी के पीछे मास्टर Osho का हाथ
अभिनेता पंकज झा कहते हैं कि हाल ही में उनकी पुस्तक ‘अज्ञात से ज्ञात की ओर’ अमेजन पर उपलब्ध हुई है. इस पुस्तक की एक कविता को अभिनेता अमिताभ बच्चन ने भी ट्वीट किया था. दरअसल, एक ऐड शूट के दौरान पंकज झा ने उन्हें अपनी कविताओं का संकलन उन्हें भेंट की थी. पंकज झा ने कहा कि जहांगीर आर्ट गैलरी में भी उनका एक चित्र प्रदर्शनी आयोजित हुआ था, जो देश की प्रमुख आर्ट गैलरी में से एक है. वे मानते हैं कि उनकी सारी रचनात्मकता के मूल में उनके गुरु ओशो का आशीर्वाद है. पंकज झा का कहना है कि जिस तरह से वे अभिनय, कविता और चित्रकारी के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य कर रहे हैं, उसका सारा श्रेय ओशो की शिक्षाओं को जाता है.
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गांव से जुड़ाव और मेहनत से बना नाम
सहरसा जिले के मुरादपुर गांव में जन्मे पंकज झा आज भी अपने गांव से गहरा लगाव रखते हैं. हाल ही में, वे अपने गांव आए थे. उन्होंने बताया कि मां से मिलने और उनके कार्यों में सहयोग करना उन्हें बेहद अच्छा लगता है. अपने बचपन के किस्से साझा करते हुए कहा कि उनका बचपन खेत-खलिहानों और आम के बगीचों में बीता. पेंटिंग का शौक शुरू से था, लेकिन पढ़ाई में मन नहीं लगता था. पेंटिंग करते-करते वे नुक्कड़ नाटकों से भी जुड़ गए. उनके पिता उन्हें पटना आर्ट्स कॉलेज ले गए. वहीं, थियेटर से भी जुड़ाव हुआ.पटना में ही प्रसिद्ध रंग निर्देशक बंशी कौल से मुलाकात हुई, जिन्होंने उन्हें एनएसडी (नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा) जाने की सलाह दी. वहां पंकज ने छोटे प्रोजेक्ट्स पर काम किया और फिल्मों में प्रवेश का मार्ग प्रशस्त हुआ. 250 लोगों के बीच से उन्हें फिल्म ‘मानसून विवाह’ के लिए चुना गया. पंकज झा का मानना है कि बिना मेहनत के कुछ भी संभव नहीं है.
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दुनिया से ज्यादा भीतर की यात्रा कराती हैं पंकज झा की पेंटिंग्स
कला समीक्षक दीप्ति सारस्वत ‘प्रतिमा’ ने अभिनेता, कवि और चित्रकार पंकज झा के चित्रों पर अपनी मार्मिक समीक्षा साझा की है. उनके अनुसार, पंकज झा के चित्र श्वेत, श्याम और स्लेटी रंगों के अनगिनत शेड्स में जीवन के जटिल, गहन और सुंदर पक्षों को रचते हैं. हर चित्र में जीवन मोती की तरह धरती और आकाश के बीच पलता है, जो अंधेरे, तूफानों और कठिनाइयों के बावजूद उजाले को संजोए हुए. दीप्ति लिखती हैं कि पंकज के भीतर का दार्शनिक अपने चित्रों के माध्यम से बाहर की दुनिया से ज्यादा भीतर की यात्रा कराता है. उनके स्लेटी रंगों में छुपे सत, रजस और तमस के तत्व ओशो के दर्शन की याद दिलाते हैं. यह कला देखने वाले को गहराई में उतरने का आमंत्रण देती है. जो डूबेगा, वही अनमोल मोती पाएगा. हिमाचल की वादियां इस गहन दृष्टि वाले चित्रकार का बेसब्री से इंतजार कर रही हैं.
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प्रेम, करुणा और जीवन के सहज प्रवाह को दर्शाती है पंकज की कविताएं
वहीं, चर्चित कवि निलय उपाध्याय ने अभिनेता पंकज झा के पहले कविता संग्रह ‘अज्ञात से ज्ञात की ओर’ पर अपनी समीक्षा साझा की है. अभिनय की दुनिया में मानक स्थापित करने वाले पंकज झा ने लेखन में भी एक अनोखा आयाम छूआ है. निलय उपाध्याय बताते हैं कि पंकज झा के यहां कविता क्षण की तरह जन्म लेती है संक्षिप्त, लेकिन गहरी. उनके अनुसार, पंकज समय, भाषा और यथार्थ के पारंपरिक बंधनों से मुक्त होकर कविता को एक व्यापक और अविभाजित चेतना के रूप में जीते हैं. प्रेम, करुणा और जीवन के सहज प्रवाह को दर्शाती उनकी कविताएं बिना तात्कालिक आग्रह के, कालजयी संवेदनाओं को छूती हैं. निलय उपाध्याय का यह संस्मरण न केवल कवि और अभिनेता की दोस्ती को दर्शाता है, बल्कि यह भी बताता है कि साहित्य और अभिनय की दुनिया भीतर से कितनी गहराई से जुड़ी हुई है.