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बिहार के कलाकारों में है अद्‌भुत अभिनय क्षमता

कलाकार के लिए मंच मायने नहीं रखता. वह केवल अभिनय करना जानता है. अभिनय में ही जीता है. यह कहना है रामबहादुर रेणु का. बिहार के छोटे से जिले से निकल कर मायानगरी में अपनी पहचान बनाने वाले रामबहादुर रेणु भी ऐसे ही कलाकारों में से हैं जो अभिनय को ही जीते हैं. पेश है […]

कलाकार के लिए मंच मायने नहीं रखता. वह केवल अभिनय करना जानता है. अभिनय में ही जीता है. यह कहना है रामबहादुर रेणु का. बिहार के छोटे से जिले से निकल कर मायानगरी में अपनी पहचान बनाने वाले रामबहादुर रेणु भी ऐसे ही कलाकारों में से हैं जो अभिनय को ही जीते हैं. पेश है सुजीत कुमार से बातचीत की रिपोर्ट

-सबसे पहले अपने बारे में बताएं. बिहार में कहां के रहने वाले हैं?

– मेरा घर सुपौल जिले के कोसलीपट्टी गांव में है. शुरुआती शिक्षा वहीं हुई थी. सातवीं क्लास में स्कॉलरशिप भी हासिल कर लिया था. मैट्रिक सुपौल से ही किया. फिर टीपी कॉलेज से इंटर किया. बाद में पटना आया और ऑनर्स करने के लिए एएन कॉलेज में नामांकन लिया.

-थिएटर की तरफ कैसे रुझान हुआ?
– जब मैं एएन कॉलेज में था, तब नाटक करने के लिए एक टीम मॉरिशस से आयी हुई थी. चूंकि मेरे गांव व परिवार में रंगकर्म को लेकर पहले से ही माहौल था. इसलिए नाटक देखने मैं भी चला गया. वहां एक महिला को देखा जो अकेले ही लगभग सारा काम कर रही थी. उनसे मैंने कहा कि मुझे भी रंगमंच से जुड़ना है. उन महिला का नाम वंदना टंडन था. मेरी बात सुन के वह बोली कि आप प्रेमचंद रंगशाला में आ जाइयेगा. अगले दिन वहां गया तो संजय उपाध्याय से मुलाकात हुई. इसके बाद नाटक का सिलसिला चल पड़ा. हिंदी व मैथिली भाषाओं के कई नाटकों में काम किया.

-नाटक के बाद आगे का सिलसिला कैसे जारी रहा? क्या-क्या चुनौतियां देखने को मिलीं?

– मुझे एमएचआरडी से भगैत गायन शैली पर शोध करने का प्रोजेक्ट मिला था. मैंने उस पर कार्य किया और उसका ब्रॉशर छपवाया. उसे देने के लिए पीके गुप्ता के पास गया. वहां मेरी मुलाकात शैवाल गुप्ता से हुई. उन्होंने आद्री में ही परफॉर्मिंग आर्ट में जाॅब पर रख लिया. यह वर्ष 1996 की बात है. फिर 1997 में मैं एनएसडी के लिए चयनित हो गया. जब वहां गया तो अलग दुनिया को देखने का मौका मिला. कई बड़े कलाकारों से मिलना मेरे लिए बड़ी बात थी.

-मुंबई कैसे पहुंचे, क्योंकि मायानगरी हर किसी को जल्दी मौका नहीं देती है.

– जब एनएसडी में था तो वहां पर रोमियो जुलियट नाटक किया था. उस नाटक को तिग्मांशु धूलिया ने देखा था. वह एनएसडी में मेरे सीनियर थे. उनको मेरा प्ले बहुत पसंद आया. बाद में जब उन्होंने फिल्म ‘हासिल’ बनायी तो उसमें मुझे रोल दिया. फिर श्याम बेनेगल की फिल्म ‘नेताजी सुभाष चंद्र बोस’ में काम करने का मौका मिला. उनके साथ ‘संविधान’ सीरियल में भी काम किया. उसमें महात्मा गांधी के पीए के रूप में रोल किया. फिर तिग्मांशु धूलिया के साथ फिल्म ‘चरस’ में भी कार्य किया. इसके बाद ‘हैल्लो हम लल्लन बोल रहे हैं’ में भी कार्य किया. एक फिल्म ‘फ्रॉम समवेयर टू नो वेयर’ में भी काम करने का मौका मिला. इसी बीच में दंगल चैनल पर द्वारकाधीश, सांईं बाबा जैसे शो में भी काम करने का मौका मिला. इपीक चैनल के लिए भी काम किया.

-बिहार के कई कलाकार मायानगरी, रंगमंच पर हैं. इनमें क्या खासियत होती है?
– बिहार का चाहे शहर का कलाकार हो या फिर गांव का. उसकी अभिनय क्षमता गजब की होती है. अगर उनको ट्रेनिंग मिले तो वह कमाल कर सकते हैं. हमारे यहां के कलाकारों में बेहतर काम करने की लगन भी होती है. सबसे बड़ी बात बिहार के अभिनेता किसी को फॉलो नहीं करते हैं. वह अभिनय को समझते व परखते हैं.

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