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Friday, March 29, 2024

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भारत की अर्थव्यवस्था के लिए बुरी खबर, मॉर्गन स्टेनली ने वृद्धि दर का अनुमान घटाकर 7.9 प्रतिशत किया

मॉर्गन स्टेनली की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘हमारा अनुमान है कि चक्रीय पुनरुद्धार का चक्र जारी रहेगा, लेकिन यह हमारे पिछले अनुमान से नरम रहेगा. मौजूदा भू-राजनीतिक तनाव की वजह से बाहरी जोखिम बढ़ेंगे और अर्थव्यवस्था गतिहीन मुद्रास्फीति की ओर बढ़ेगी.

नयी दिल्ली: भारत की अर्थव्यवस्था के लिए बुरी खबर है. अमेरिकी ब्रोकरेज कंपनी मॉर्गन स्टेनली ने वित्त वर्ष 2022-23 के लिए भारत के वृद्धि दर के अनुमान को आधा प्रतिशत घटाकर 7.9 प्रतिशत कर दिया है. इसके साथ ही मॉर्गन स्टेनली ने खुदरा मुद्रास्फीति के अनुमान को बढ़ाकर 6 प्रतिशत कर दिया है. उसका अनुमान है कि देश का चालू खाते का घाटा (कैड) बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के तीन प्रतिशत पर पहुंच जायेगा.

चक्रीय पुनरुद्धार का चक्र जारी रहेगा

मॉर्गन स्टेनली की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘हमारा अनुमान है कि चक्रीय पुनरुद्धार का चक्र जारी रहेगा, लेकिन यह हमारे पिछले अनुमान से नरम रहेगा. मौजूदा भू-राजनीतिक तनाव की वजह से बाहरी जोखिम बढ़ेंगे और अर्थव्यवस्था गतिहीन मुद्रास्फीति की ओर बढ़ेगी.’ गतिहीन मुद्रास्फीति में अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर घटती है, लेकिन इसके साथ ही महंगाई बढ़ती है.

भारत की वृद्धि दर को आधा प्रतिशत घटाया

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘भारत तीन चीजों कच्चे तेल और अन्य जिंसों के ऊंचे दाम, व्यापार और अन्य सख्त वित्तीय परिस्थितियों आदि से प्रभावित हो रहा है, जिससे कारोबार और निवेश की धारणा प्रभावित हो रही है.’

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चालू खाता घाटा जीडीपी का तीन प्रतिशत रहने का अनुमान

मॉर्गन स्टेनली ने कहा, ‘कच्चे तेल की ऊंची कीमतों की वजह से हम वर्ष 2022-23 के लिए अपने वृद्धि दर के अनुमान को आधा प्रतिशत घटाकर 7.9 प्रतिशत कर रहे हैं. इसके अलावा उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति के अनुमान को बढ़ाकर छह प्रतिशत कर रहे हैं. चालू खाते का घाटा बढ़कर जीडीपी के तीन प्रतिशत पर पहुंच सकता है, जो इसका 10 साल का ऊंचा स्तर होगा.’

कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ेगा मुद्रास्फीति का दबाव

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत अपनी कच्चे तेल की 85 प्रतिशत जरूरत आयात से पूरी करता है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल के दाम एक समय 140 डॉलर प्रति बैरल के 14 साल के उच्चस्तर पहुंचने के बाद कुछ नीचे आये हैं. भारत को कच्चे तेल के लिए अधिक भुगतान करना होगा. इससे मुद्रास्फीतिक दबाव बढ़ेगा.

Posted By: Mithilesh Jha

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