नयी दिल्ली: प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय विनिर्माण प्रतिस्पर्धा परिषद ने लौह अयस्क उत्पादक एनएमडीसी को देश में पहले अति वृहत् इस्पात संयंत्र के लिए बुनियादी ढांचा तैयार करने का जिम्मा दिया है जिसकी सालाना क्षमता 1.2 करोड़ टन होगी.इस घटनाक्रम से जुड़े एक सूत्र ने बताया कि एनएमडीसी के पास हालांकि परियोजना में कोई हिस्सेदारी नहीं होगी.
इसकी भूमिका बुनियादी ढांचा तैयार करने और प्रतिस्पर्धी बोली के आधार पर इसे इस्पात उत्पादकों के लिए पेश करने तक सीमित होगी. इसके लिए एनएमडीसी संबंधित राज्यों के औद्योगिक विकास निगमों के साथ आने वाले दिनों में मिल कर विशेष प्रयोजन कंपनी (एसपीवी) स्थापित कर सकती है.सूत्रों ने बताया कि एनएमडीसी जमीन खरीदेगी, पर्यावरण व वन संबंधी मंजूरी लेगी और कच्चे माल की आपूर्ति के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे आदि की व्यवस्था करेगी. खनन कंपनी को उस खनन परियोजना का हिस्सा बनने की अनुमति होगी जो मुख्य तौर पर इस इस्पात संयंत्र से जुड़ी होगी.
इस योजना का उद्देश्य है निजी क्षेत्र को ऐसी क्षमता खड़ी करने की राह में आ रही तमाम दिक्कतों से बचना है.
इसके अवाला 8.5 करोड टन क्षमता की परियोजनाओं में पानी की कमी , वन एवं पर्यावरण की मंजूरी के इंतजार में वश्यक मंजूरी मिलने में विलम्ब हो रहा है. सूत्रों ने बताया कि एनएमडीसी के निदेशक मंडल ने भी इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. खनन कंपनी कर्नाटक में उस स्थान पर खनन शुरु कर सकती है जहां वह पहले सेवस्र्ताल के साथ संयुक्त उद्यम में खनन करना चाहती थी.एनएमडीसी ने 2010 में 30 लाख टन सालाना क्षमता वाले इस्पात संयंत्र के लिए रुसी इस्पात कंपनी सेवस्र्ताल के संयुक्त उद्यम बनाने के लिए समझौता किया था.
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