नयी दिल्ली : पौष्टिक तिलहनों में अलसी या तीसी का अपना एक अलग महत्व है. इसका प्राचीन काल से ही खाद्य तेलों अथवा खाद्य पदार्थ के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन देश में बाजारवाद हावी होने के बाद आम जनजीवन में इस्तेमाल होने से यह तिलहन कुछ दूर हो गया था. अब वह दिन दूर नहीं, जब हम तीसी या अलसी के तेल को बाजार में सरसों तेल की तरह या उसके स्थान पर बिकते हुए पायेंगे, क्योंकि अलसी का तेल जल्द ही खाद्य तेलों में शामिल होगा.
सरकारी शोध संस्था भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने इस तेल की गुणवत्ता में सुधार किया है और इसे खाने के लिहाज से बेहतर तेल बनाने का दावा किया है. परिषद के मुताबिक, इस तेल में स्वास्थ्य के लिहाज से कई गुण हैं. लिनसीड यानी अलसी तेल को अखाद्य तेल माना जाता है. इसमें अल्फा-लिनोलेनिक एसिड काफी मात्रा में होता है. इस लिहाज से इसका औद्योगिक इस्तेमाल काफी बढ़ जाता है.
आईसीएआर ने लंबे शोध के बाद इस तेल को खाना पकाने लायक बनाया है. परिषद ने इस तेल में से लिनोलेनिक एसिड की मौजूदगी को कम करने का तरीका ढूंढ निकाला. इसके बाद यह तेल खाने में इस्तेमाल के लिए उपयुक्त बन गया. आईसीएआर ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि उसने पिछले साल जीनोटाइप किस्म के बीज (टीएल99) का परीक्षण किया. इस बीज में पांच फीसदी से कम लिनोलेनिक एसिड होता है.
परिषद ने कहा कि अलसी तेल को दूसरे तेल के साथ मिलाने का भी अच्छा परिणाम सामने आया है. इससे यह तेल लंबे समय तक ठीक बना रह सकता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि परीक्षण के बाद यह पाया गया कि ‘कोल्ड प्रेस्सड अलसी तेल’ का इस्तेमाल खाने पीने की कई वस्तुओं में किया जा सकता है. इस तेल में केले के चिप्स, पापड़, पूरी और सब्जी आदि आसानी से बनायी जा सकती है. आईसीएआर ने पाया है कि अलसी तेल को मिलाकर तैयार किये गये तेल में पकाये गये खाने का स्वाद, उसकी गुणवत्ता और उसे रखने की समयसीमा सभी मामलों में उसका उपयोग सफल रहा है.
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