नयी दिल्ली : दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से यह बताने को कहा है कि रिलायंस पावर के झारखंड स्थित झुमरी-तिलैया अति वृहद बिजली परियोजना (यूएमपीपी) से बाहर निकल जाने के बाद भी उसकी बैंक गारंटी क्यों नहीं वापस की जा रही है. अदालत ने तल्ख टिप्पणी कि किसी और की रकम फंसी हो, तो निर्णय में देरी करना आसान होता है.
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न्यायाधीश विभु बखरू ने केंद्र से कहा कि जब आपका पैसा नहीं, तो निर्णय में देरी करना बड़ा आसान है. अदालत ने केंद्र को अपना रुख स्पष्ट करने के लिए तीन हफ्ते के भीतर हलफनामा दाखिल करने को कहा है. रिलायंस पावर लिमिटेड ने 208 करोड़ रुपये की बैंक गारंटी जारी करने के लिए अदालत में याचिका दायर की है.
अदालत ने साफ किया है कि केंद्र को एक हलफनामा दाखिल करना है. साथ ही, कहा कि टुकड़ों-टुकड़ों में दाखिल हलफनामे स्वीकार नहीं किये जायेंगे. मामले को 13 सितंबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है. सुनवाई के दौरान सरकार ने कहा कि वह बैंक गारंटी इसलिए जारी नहीं कर रही है, क्योंकि वह जानना चाहती है कि किसकी गलती की वजह से झारंखड में इस बिजली संयंत्र के लिए आवंटित कोयला ब्लॉक विकसित नहीं हो सका.
सरकार ने कहा कि उसे बैंक गारंटी पर फैसला लेने के लिए उसे तीन महीने की जरूरत है. सरकार रिलायंस और झारखंड उर्जा विकास निगम लिमिटेड (जेयूवीएनएल) के बीच हुए सुलह समझौते पर भी चिंतित है, जिसके तहत रिलायंस पावर ने झारखंड इंटीग्रेटेड पावर लिमिटेड (जेआईपीएल) में अपने शेयरों को जेयूवीएनएल को स्थानांतरित किया था, जिसे तिलैया यूएमपीपी विकसित करने के लिए स्थापित किया गया था.
गौरतलब है कि रिलायंस पावर ने झारखंड इंटीग्रेटेड पावर लिमिटेड में अपनी हिस्सेदारी 112.64 करोड़ रुपये में झारखंड ऊर्जा विकास निगम लिमिटेड को बेच दी थी. हिस्सेदारी बेचने के बाद वह इस परियोजना से बाहर हो गयी थी.
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