विजय बहादुर
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केस स्टडी -1
पिछले सप्ताह स्पेन की बैटमिंटन स्टार कैरोलिना मारिन ने सैयद मोदी इंटरनेशनल टूर्नामेंट में महिला सिंगल्स का खिताब जीता. आज मारिन की गिनती दुनिया के शीर्ष प्लेयर्स में की जाती है और बहुत सारे टॉप टूर्नामेंट्स में वो लगातार जीतती रहती हैं. सैयद मोदी इंटरनेशनल टूर्नामेंट में मारिन की जीत से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण जीत हासिल करने के बाद उनके द्वारा मीडिया से कही गयी बात थी.
उन्होंने कहा कि जीतना तो हमेशा ही अच्छा लगता है, लेकिन एक बात का हमेशा जिक्र करती रहती हूं कि हर खिलाड़ी की हर जीत के पीछे बहुत बड़ी टीम होती है. इसलिए अपने खेल के बारे में बात करते हुए मैं हम का प्रयोग करती हूं. मैं तो सिर्फ कोर्ट में खेलती हूं, लेकिन हमारी टीम बहुत मेहनत करती है. इनमें हमारे दो साइकोलॉजिस्ट भी शामिल हैं. एक मेरी निजी जिंदगी में मेरी मदद करते हैं, तो दूसरे खेल के लेवल पर. इसके अलावा टेक्निकल असिस्टेंट, फिजियो एवं वीडियो टीम भी साथ में काम करती है. कैरोलिना मारिन के कहने का आशय यह था कि जीतता तो कोई एक है, लेकिन उसके जीतने के पीछे अनगिनत लोगों का श्रम और जुड़ाव होता है जो पर्दे के पीछे होते हैं. अक्सर जिन्हें नजरअंदाज कर दिया जाता है, लेकिन जीत में उनकी अहम भूमिका होती है.

केस स्टडी 2
पिछले महीने महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह का निधन हो गया. उनकी कहानी आज पूरी दुनिया को पता है कि कैसे एक जीनियस की प्रतिभा सिजोफ्रेनिया के कारण बरबाद हो गयी. नासा में रिसर्च करने के दौरान ही उन्हें हिंदुस्तान लौटना पड़ा और अवसाद का शिकार हो गए. अवसाद में जाने के बाद समाज का उनके प्रति रवैया बहुत ही नकारात्मक रहा, जिसकी वजह से वो फिर कभी एकेडमिक और रिसर्च की दुनिया में वापस नहीं लौट सके.

दूसरी तरफ जब वशिष्ठ नारायण सिंह को याद करते हैं, तो अमेरिका के ही एक और गणितज्ञ जॉन नेश याद आते हैं. उन्होंने भी अपना रिसर्च नासा में शुरू किया था और सिजोफ्रेनिया के शिकार हो गए थे, लेकिन वशिष्ठ बाबू और जॉन नेश में अंतर सिर्फ इतना है कि जॉन नेश की पत्नी अलिशिया नेश उनके साथ थीं. अपने पति के लिए अलिशिया पूरी तरह समर्पित थीं. पत्नी का समर्पण इस कदर था कि उन्होंने अपने पति के लिए अपने पेशे तक को दांव पर लगा दिया था. यही वह ताकत थी, जिसके बल पर जॉन नेश सिजोफ्रेनिया से उबर सके. उनकी पत्नी अलिशिया नेश ने उनकी भरपूर देखभाल की थी और आखिरकार जॉन नेश सिजोफ्रेनिया से उबर कर फिर रिसर्च में लग गए थे और बाद में उन्हें नोबेल पुरस्कार भी मिला.
इन दोनों केस स्टडी पर विचार करें, तो साफ नजर आता है कि जिन्हें हम लीजेंड मानते हैं या कोई आम आदमी, उसके जीवन के बनने या बिगड़ने में परिवार और समाज का बहुत बड़ा योगदान होता है. हम अपने जीवन के बारे में ही सोचें कि जो हम आज हैं या बनने की प्रक्रिया में हैं, उसमें हमारे माता पिता, परिवार और समाज का कितना बड़ा योगदान और त्याग है. इसलिए एक इंसान जब बड़ा बनता है तो उसे भी अपने परिवार और सहयोगियों के योगदान को स्वीकार करने की जरूरत है.