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उमेश चतुर्वेदी

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अस्तित्व के बजाय विरोध में कांग्रेस की दिलचस्पी

राम मंदिर के प्रतिष्ठा समारोह का बुलावा कांग्रेस के लिए अल्पसंख्यकवाद की राजनीति का उत्तर भारतीय वोटरों के बीच जवाब देने का मौका हो सकता था. वह समारोह में शामिल होकर कह सकती थी कि राम सबके हैं, किसी दल विशेष के नहीं.

राम मंदिर को लेकर ऊहापोह में है कांग्रेस

राम मंदिर न्यास ने ऐतिहासिक दिन के लिए कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी, कांग्रेस के मौजूदा अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और लोकसभा में पार्टी के नेता अधीर रंजन चौधरी को निमंत्रित किया है. लेकिन कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व अब तक फैसला नहीं ले पाया है कि उसे इस समारोह में शामिल होना चाहिए या नहीं.

कांग्रेस में सांगठनिक बदलाव के मायने

कांग्रेसी अंत:पुर से खबरें उड़कर आती रही हैं कि रणनीति को लेकर परिवार में एका नहीं है. सोनिया गांधी के चहेते नेताओं का अलग समूह है, तो राहुल और प्रियंका का अपना-अपना गुट है. जब पार्टी का प्रथम परिवार ही एक नहीं रह पायेगा, तो पूरी पार्टी में एका कैसे होगी ?

कानूनी दायरे में आये सोशल मीडिया की पत्रकारिता

पत्रकारिता की न्यूनतम गारंटी निष्पक्षता है. ऐसा नहीं कि पारंपरिक पत्रकारीय संस्थान हमेशा निष्पक्ष रहे हैं. उन्होंने अगर किसी का पक्ष लिया भी, तो उसे आटे में नमक के समान मिलाने की कोशिश की. लेकिन सोशल मीडिया की पत्रकारिता में ऐसी प्रवृत्ति नजर नहीं आयी.

मध्य प्रदेश में संगठन के साथ शिवराज की भी जीत

तीन हिंदी भाषी राज्यों में जीत से भाजपा का उत्साह, मनोबल बढ़ेगा, जिसके जरिये वह लोकसभा चुनावों में आगे आने के लिए पुरजोर ताकत झोंकेगी. कांग्रेस भले ही तेलंगाना जीत गयी है, परंतु विपक्षी गठबंधन में उसकी स्वीकार्यता में दरार बढ़ेगी.

सहयोगियों की अनदेखी करती कांग्रेस

कांग्रेस को हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों में जीत के बाद लगता है कि अब उसी के लिए बयार बह रही है. लेकिन उसे यह नहीं भूलना चाहिए कि कर्नाटक, हिमाचल, मध्य प्रदेश और राजस्थान में उसे जीत पहले भी मिली, लेकिन लोकसभा चुनावों में भाजपा की लहर के सामने वह नहीं टिक सकी.

असहमति पर मीडिया से असहज कांग्रेस

मीडिया के असर से कितने मतदाता प्रभावित होते हैं, यह शोध का विषय हो सकता है, लेकिन यह भी सच है कि सिर्फ मीडिया के जरिये न तो चुनाव लड़े जा सकते हैं और न ही जीते जा सकते हैं.

डीएमके की नकारात्मक राजनीति

संघ पर अक्सर बांटने का आरोप लगाया जाता है. विडंबना ही है कि विखंडन का यह आरोप पेरियारवादी भी लगाते हैं, जिन्होंने समाज को बांटा और एक छोटे समुदाय को सबसे ज्यादा नकारात्मक तरीके से निशाना बनाया है.

वायदे पूरा करने के स्रोत भी बताएं पार्टियां

अनाप-शनाप वायदों को कई बार जनदबाव में पूरा भी किया जाता है तो उसका साइड इफेक्ट समूचे राज्य के आर्थिक तंत्र पर पड़ता है, और प्रकारांतर से आम लोगों को ही झेलना पड़ता है.
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