भागलपुर: बाजार में आज भी 20 माइक्रोन से कम के पॉलीथिन का धड़ल्ले से उपयोग हो रहा है. इसका इस्तेमाल थैला व खाद्य पदार्थ को पैक करने के लिए हो रहा है. यह सब चोरी-छुपे नहीं बल्कि प्रशासनिक अधिकारियों के सामने हो रहा है.इस तरह के पॉलीथिन व थैला का निर्माण भी शहर के लहरी टोला, औद्योगिक केंद्र बरारी आदि स्थानों पर हो रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने 2006 में ऐसे पॉलीथिन पर पूरी तरह से रोक लगाने का आदेश दिया था.
पर्यावरणविद् अरविंद मिश्र बताते हैं कि कम माइक्रोन के पॉलीथिन में खाद्य पदार्थ रखने में तरह-तरह की बीमारी फैलती है. पॉलीथिन मिले कचरे को जलाने से डाई आक्सीन नामक जहरीली गैस निकलती है, जो सभी जीवों के लिए खतरनाक है. पॉलीथिन के उपयोग पर रोक लगाने के लिए समय-समय पर मंदार नेचर क्लब, जेएस एजुकेशन, एलीमेंटरी स्कूल नाथनगर आदि संस्थानों की ओर से जागरूकता अभियान चलाया जाता है.
रोजाना पांच सौ किलो पॉलीथिन की सप्लाइ उद्यमी प्रतिनिधि सह सीए प्रदीप झुनझुनवाला ने बताया कि यहां पर रोजाना औसतन पांच सौ किलो प्लास्टिक की सप्लाइ व उपयोग में लाया जा रहा है, जो पर्यावरण के लिए घातक होता जा रहा है. उन्होंने बताया कि कचरे से तैयार किये गये काले रंग की पॉलीथिन का प्रयोग करना सबसे अधिक खतरनाक है. काले रंग का पॉलीथिन पटना के मछरट्टा व कोलकाता में तैयार होता है. यह शरीर को किसी न किसी रूप में हानि पहुंचाता है.
इसे गलाया भी नहीं जा सकता है, इसलिए यह प्लास्टिक जहां गिरता है, वहां की मिट्टी की उर्वरा शक्ति को भी नष्ट कर देता है.