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बिहार के छोटे से कस्बे से निकल राजदूत बनने तक का सफर

पटना : बिहार के नालंदा जिले के छोटे से कस्बे छबिलापुर से निकलकर यूरोपीय देश मेडगास्कर का भारतीय राजदूत बनने तक का सफर तय किया है, अभय कुमार ने. 2003 बैच के भारतीय विदेश सेवा (आइएफएस) के अधिकारी अभय कुमार सबसे कम उम्र के राजदूत हैं. एक बिहारी के गांव की मिट्टी से निकलकर राजदूत […]

पटना : बिहार के नालंदा जिले के छोटे से कस्बे छबिलापुर से निकलकर यूरोपीय देश मेडगास्कर का भारतीय राजदूत बनने तक का सफर तय किया है, अभय कुमार ने. 2003 बैच के भारतीय विदेश सेवा (आइएफएस) के अधिकारी अभय कुमार सबसे कम उम्र के राजदूत हैं.

एक बिहारी के गांव की मिट्टी से निकलकर राजदूत बनने तक का सफर तय करने का सक्सेस मंत्र बताते हुए कहते हैं कि सितारों का अगर लक्ष्य करेंगे, तो चांद जरूर मिलेगा. उत्साह को कभी कम नहीं होने दें और पूरे लगन के साथ लक्ष्य का पीछा करें. इसी जुनून ने उन्हें इस मुकाम तक पहुंचा दिया है.

एक कुशल अधिकारी के साथ ही बेहतरीन कवि और लेखक भी हैं अभय कुमार

मेडगास्कर में बतौर राजदूत के पद पर वह 31 मार्च 2019 को संभालने जा रहे हैं. इससे पहले वह काठमांडू में उप-राजदूत के पद पर कार्यरत थे. इन दिनों वह अपने पैतृक घर राजगीर (छबिलापुर) आये हुए हैं.

अभय कुमार एक कुशल अधिकारी के साथ ही बेहतरीन कवि और लेखक भी हैं. अपने व्यस्ततम जीवन में फुर्सत के पल निकाल कर अपनी कविता और कहानियों को देने का ही नतीजा है कि उनकी अब तक करीब आधा दर्जन किताबें आ चुकी हैं. कुछ बेहद प्रसिद्ध किताबों का उन्होंने संपादन भी किया है. इसमें ‘100 इंडियन ग्रेट पोयम’ बेस्ट सेलर के साथ ही अब तक 28 भाषाओं में अनुवादित हो चुकी है.

‘द सेडक्सन ऑफ दिल्ली’ किताब बेस्ट सेलिंग बुक का खिताब पा चुकी है. अभय कुमार ने सबसे पहली किताब ‘फेयरी लव सिटी- मॉस्को’ उन दिनों लिखी थी, जब उनकी तैनाती रूस स्थित भारतीय दूतावास में वर्ष 2005 से 2007 में थी. इसके बाद उनका तैनात अलग-अलग स्थानों पर होती रही. इसके साथ ही उनके लेखन का सफर भी परवान चढ़ता रहा और एक के बाद एक बेहतरीन रचनाएं आती गयी.

हिन्दी, अंग्रेजी के अलावा रूसी, पुर्तगाली और नेपाली भाषा भी फर्राटे से बोलते हैं. अपनी शुरुआती पढ़ाई अपने गांव और राजगीर के स्कूल से करने के बाद इंटर पटना स्थित बीएन कॉलेज से की. इसके बाद नई दिल्ली स्थित किरोड़ीमल कॉलेज से स्नातक, फिर जेएनयू से पीजी और एमफिल करने के बाद सिविल सेवा की परीक्षा पास की. अलग-अलग देश घूमने के शौक के कारण विदेश सेवा का चयन किया.

अपने जीवन का स्रोत अपने पिता को बताते हुए वह कहते हैं कि गांव के पास ही प्राथमिक स्कूल में शिक्षक थे. परंतु हौसला, ईमानदारी और लगन के बदौलत सपने जीतने का जज्बा उन्होंने ही दिया. पत्नी रसियन होने के बावजूद गांव से काफी लगाव है और जब भी मौका मिलता है, यहां आकर रहती हैं. अभय गांव से दूर रहते हुए भी गांव और राज्य के प्रति काफी लगाव है. वह गांव में एक मोबाइल लाइब्रेरी शुरू करना चाहते हैं. बिहार की विरासत और धरोहर की बेहतरीन मार्केटिंग के लिए टैग लाइन के साथ कई बातों को महत्व देते हैं.

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