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सादरी भाषा को बचाने के लिए पहल हो

रांची : साहित्य अकादमी का दो दिवसीय सादरी भाषा सम्मेलन शनिवार को प्रेस क्लब सभागार में शुरू हुआ़ इस अवसर पर साहित्य अकादमी के सचिव के श्रीनिवास राव ने कहा कि इस उपमहाद्वीप की अन्य गैर मान्यता प्राप्त भाषाओं के विपरीत सादरी या नागपुरी में एक महान साहित्यिक विरासत रही है़ इस भाषा में क्षेत्रों, […]

रांची : साहित्य अकादमी का दो दिवसीय सादरी भाषा सम्मेलन शनिवार को प्रेस क्लब सभागार में शुरू हुआ़ इस अवसर पर साहित्य अकादमी के सचिव के श्रीनिवास राव ने कहा कि इस उपमहाद्वीप की अन्य गैर मान्यता प्राप्त भाषाओं के विपरीत सादरी या नागपुरी में एक महान साहित्यिक विरासत रही है़ इस भाषा में क्षेत्रों, संस्कृतियों, धर्मों, अर्थव्यवस्थाओं, प्राकृतिक घटनाओं, जन- प्रवास, स्वदेशी ज्ञान प्रणालियों और बहुत कुछ के इतिहास की एक विशाल मात्रा संरक्षित है़

सादरी में बोलने, लिखने की जरूरत : सिलचर (असम) की प्रसिद्ध आदिवासी व सादरी लेखिका काजल देमता ने कहा कि सादरी को बचाने के लिए मजबूती से काम करने की जरूरत है़
इस भाषा में बोलने और लिखने की आवश्यकता है़ वहां सादरी में ‘बिनसोर’ नाम की एक पाक्षिक पत्रिका निकाली जाती है़ उन्होंने स्वयं एक पुस्तक ‘चा बागीचार सांझ खोजिर’ लिखी है़ इसके अतिरिक्त ‘आगुन’, ‘पारबोतिर सोंसार’, ‘बुकेरागुन’ व ‘जंगल में घर’ कहानियां और ‘मौसम’, ‘चौकीदार’, ‘संसार’ व ‘भाषा’ कविताएं लिखी है़ं
नागवंश की स्थापना के साथ हुआ उदभव व विकास : झारखंड भाषा साहित्य संस्कृति अखड़ा की महासचिव वंदना टेटे ने कहा कि सादरी या नागपुरी भाषा का इतिहास कम से कम दो हजार साल पुराना है़ झाखंड में नागवंश की स्थापना के साथ ही इस भाषा का उदभव व विकास हुआ़ मौके पर डॉ गिरिधारी राम गौंझू ने भी विचार रखे़ मौके पर पद्मश्री मुकुंद नायक, लोकगायक मधू मंसूरी, एके पंकज, कुसुम माधुरी टोप्पो, कमल कुमार तांती आदि मौजूद थे.

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