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बिना परमिट दौड़ रहीं 325 बसें, यात्रियों की जान जोखिम में

प्रणव सिंह रांची : प्रदेश में उधार का परमिट या सेल एग्रीमेंट के आधार पर 325 से ज्यादा यात्री बसें चलायी जा रही हैं. ये बसें न सिर्फ झारखंड में, बल्कि इंटर स्टेट में भी चल रही हैं. कुछ बस संचालकों ने विभागीय व पुलिस के अधिकारियों से इसकी शिकायत की है. शिकायतकर्ता बस संचालकों […]

प्रणव सिंह
रांची : प्रदेश में उधार का परमिट या सेल एग्रीमेंट के आधार पर 325 से ज्यादा यात्री बसें चलायी जा रही हैं. ये बसें न सिर्फ झारखंड में, बल्कि इंटर स्टेट में भी चल रही हैं.
कुछ बस संचालकों ने विभागीय व पुलिस के अधिकारियों से इसकी शिकायत की है. शिकायतकर्ता बस संचालकों का कहना है कि परिवहन एक्ट के अनुसार, इंटर स्टेट के रूटों पर चलनेवाली बसों को संबंधित राज्यों से काउंटर साइन कराना पड़ता है. ऐसा तभी संभव है, जब बस उस राज्य का रोड टैक्स चुकाये. रोड टैक्स नहीं देने पर काउंटर साइन नहीं हो सकता है. बिना नियम के बसों के परिचालन से सरकार को लाखों रुपये के राजस्व का नुकसान हो रहा है. वहीं, बिना परमिट की बस अगर दुर्घटनाग्रस्त हो जाती है, तो यात्रियों को बीमा का लाभ भी नहीं मिलेगा.
जिस रूट पर बसों को परमिट दिया जाता है, उस रूट पर बसों को समय का ख्याल रखना होता है, लेकिन इस नियम का उल्लंघन भी रोज देखने को मिलता है. विलंब से खुलनेवाली बसों का समय कवर करने के लिए चालक सड़कों पर निर्धारित स्पीड की जगह काफी रफ्तार से बसें चलाते हैं. इस वजह से आये दिन हादसे होते रहते हैं.
परमिट सीट के आधार पर, लेकिन आराम से चलाते हैं स्लीपर बसें
परिवहन विभाग की ओर से बसों को सीट के आधार पर परमिट जारी किया जाता है, जबकि वाहन मालिक धड़ल्ले से स्लीपर बसों का परिचालन इंटर स्टेट में करते हैं. मनमाने तरीके से यात्रियों से पैसा भी लेते हैं. इतना ही नहीं, बसों की छत पर भी ओवरलोड सामान की ढुलाई की जाती है. इसके कारण पूर्व में कई बार हादसा भी हुआ है. बावजूद इसके कुछ मौके को छोड़ दिया जाये, तो कोई कारगर कार्रवाई विभाग या स्थानीय जिला प्रशासन के स्तर पर नहीं की जाती है.
झारखंड में स्लीपर बसों को परमिट नहीं दिया जाता, फिर भी झारखंड और दूसरे स्टेट की स्लीपर बसों का परिचालन लगातार हो रहा है. नियम के अनुसार, बस बिल्डर द्वारा कोड वेरिफिकेशन सर्टिफिकेट दिये जाने के बाद ही किसी बस का रजिस्ट्रेशन विभाग द्वारा किया जाना है, लेकिन बस मालिकों ने इससे भी निबटने का रास्ता ढूंढ़ लिया है. वे चेचिस लेने के बाद बस का रजिस्ट्रेशन करा लेते हैं, फिर बस का मन मुताबिक रिमॉडल कराते हैं.
कुछ बस संचालकों ने विभागीय और पुलिस के अधिकारियों से की शिकायत, इंटर स्टेट भी चल रहीं ऐसी बसें
शादी और टूरिस्ट के नाम पर अस्थायी परमिट
अधिकांश यात्री बसों का अस्थायी परमिट शादी और टूरिस्ट के नाम पर लिया जाता है, क्योंकि इसमें टैक्स कम लगता है. उसी परमिट पर आराम से बसें चलायी जाती हैं. इस खेल से न तो विभाग के अफसर अनजान हैं और ही बस के संचालक और एसोसिएशन के लोग. लेकिन फायदा सब को रहा है, इस वजह से यह खेल जारी है.
अधिकांश बसों का नहीं है फिटनेस सर्टिफिकेट
प्रदेश में चलने वाली अधिकांश बसों का फिटनेस सर्टिफिकेट नहीं है, लेकिन इसकी जांच करने वाले जवाबदेह डीटीओ और एमवीआइ और उनके आलाधिकारी को कोई फर्क नहीं पड़ता. यही वजह है कि नियम को ताक पर रखकर धड़ल्ले से बसों का परिचालन किया जा रहा है.
कुछ दिनों पहले हुई राज्यस्तरीय मीटिंग में संबंधित अधिकारियों को वाहनों की सघन जांच कर कार्रवाई करने का आदेश दिया गया था. हर डीटीओ और ट्रैफिक के अफसर को एक हजार गलत वाहनों की रिपोर्ट हर माह देनी है. सभी को राजस्व वसूली का भी टारगेट दिया गया है. हाल में कुछ शिकायत मिली है, उस पर कार्रवाई का निर्देश अफसरों को दिया गया है.-फैज अक अहमद मुमताज
परिवहन आयुक्त, झारखंड

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