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मां ने कैंसर को मात देकर बेटों को दिलाया मुकाम

गोपालगंज : वह गरीबी से जूझ रहा था. परिवार के लोग एक-एक रुपया के लिए मुहताज थे. गृहस्थी चलाना मुश्किल था. सहयोग के लिए कोई भी तैयार नहीं था. महज पान की दुकान से बड़ी मुश्किल से दो वक्त की रोटी की व्यवस्था हो पाती थी. पत्नी कैंसर की बीमारी से जूझने लगी. कोई सहारा […]

गोपालगंज : वह गरीबी से जूझ रहा था. परिवार के लोग एक-एक रुपया के लिए मुहताज थे. गृहस्थी चलाना मुश्किल था. सहयोग के लिए कोई भी तैयार नहीं था. महज पान की दुकान से बड़ी मुश्किल से दो वक्त की रोटी की

व्यवस्था हो पाती थी. पत्नी कैंसर की बीमारी से जूझने लगी. कोई सहारा नहीं था. एक तरफ पत्नी का इलाज, तो दूसरी तरफ बच्चों की पढ़ाई सामने थी. तब दिघवा दुबौली बाजार में पान की दुकान चलानेवाले बच्चा प्रसाद ने जिंदगी की सच्चाइयों से जंग की शुरुआत की. आज एक पिता ने कैंसर को मात देकर अपने दो बेटों को मुकाम दिलाने में सफलता हासिल की है. बच्चा प्रसाद समाज के लिए नजीर बने हैं. आज समाज में इनका अलग सम्मान है. बेटा अधिकारी जरूर है, लेकिन वह आज भी पान बेचने का काम करते हैं.

* मुफलिसी में शुरू की जिंदगी

बैकुंठपुर थाना क्षेत्र के रहनेवाले सिरसा पुराना टोले के बच्चा प्रसाद ने जब होश संभाला, तो पूरी जिंदगी मुफलिसी में थी. वे आठवीं तक पढ़ाई कर पाये. घर में किताब खरीदने के लिए पैसे नहीं थे. उन्होंने पढ़ाई छोड़ कर एक हजार रुपये कर्ज लेकर दिघवा दुबौली बाजार में उधार की गुमटी लेकर पान की दुकान खोल ली. शादी 1978 में महाराजगंज के गउर में उमा देवी से हुई. पत्नी ने घर की जिम्मेवारी संभाल ली. इस दौरान उसे उपेंद्र कुमार तथा अमरेंद्र कुमार बेटा एवं पूजा कुमारी बेटी की जिम्मेवारी भी आयी. खुद को पढ़ाई नहीं कर पाने का मलाल बच्चा प्रसाद को था.

* पटना में बच्चों को रख कर करायी तैयारी

वर्ष 2002 में बड़े बेटे उपेंद्र कुमार ने मैट्रिक की परीक्षा दी. पास होने के बाद पिता ने पटना में मेडिकल की तैयारी शुरू करायी. वर्ष 2006 में दूसरा बेटा अमरेंद्र कुमार ने मैट्रिक की परीक्षा देकर अपने भाई के पास तैयारी करने पहुंच गया. इस बीच वर्ष 2010 में बच्चों की तैयारी चल ही रही थी कि पत्नी कैंसर से पीड़ित हो गयी. बच्चों की पढ़ाई और पत्नी के इलाज की चिंता ने बच्चा प्रसाद को जिंदगी के सच का सामना कराया. उसने हार नहीं मानी. कर्ज लेकर पत्नी का इलाज शुरू किया. इतने में इकलौती बेटी पूजा की आंख में चोट आ गयी. उसका इलाज अलग था. जमीन तक गिरवी रखने पड़ी. सिर्फ ईश्वर पर भरोसा और बुलंद इरादे ने बच्चा प्रसाद को सफलता दिलायी.

बीच में ही छोड़नी पड़ी थी मेडिकल की तैयारी परिवार की हालत देख बड़े बेटे ने मेडिकल की तैयारी छोड़ कर वर्ष 2012 में साउथ सेंट्रल रेलवे आंध्रा में परीक्षा दी. परीक्षा में बेहतर करते हुए अधिकारी बन गया. उसने अधिकारी बनने के बाद मां का इलाज मुंबई में कराया. जहां वह स्वस्थ हो गयी. इस बीच छोटा बेटा एनआइटी से आइआइटी कर आज टाटा कंपनी में नौकरी कर रहा है, जबकि बेटी पूजा पटना साइंस कॉलेज की छात्रा है.

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