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एक साल में विपक्ष की पहरेदारी

विश्वनाथ सचदेव वरिष्ठ पत्रकार कांग्रेस को अधिकृत रूप से विपक्षी दल का दर्जा नहीं मिला है, पर इससे उसका दायित्व कम नहीं हो जाता. जिम्मेवार विपक्ष के रूप में कांग्रेस से लोगों की अपेक्षाएं भी अधिक हैं. कितनी खरी उतरी है कांग्रेस इन अपेक्षाओं पर इस एक साल में? केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाली […]

विश्वनाथ सचदेव

वरिष्ठ पत्रकार

कांग्रेस को अधिकृत रूप से विपक्षी दल का दर्जा नहीं मिला है, पर इससे उसका दायित्व कम नहीं हो जाता. जिम्मेवार विपक्ष के रूप में कांग्रेस से लोगों की अपेक्षाएं भी अधिक हैं. कितनी खरी उतरी है कांग्रेस इन अपेक्षाओं पर इस एक साल में?

केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाली ‘मोदी सरकार’ का एक साल पूरा हो चुका है. भाजपा इस कार्यकाल की ‘उपलब्धियों’ को गिनाने में लगी है और विपक्ष सरकार की ‘विफलताओं’ का लेखा-जोखा कर रहा है.

वैसे प्रधानमंत्री मोदी ने सालभर पहले ही कह दिया था कि अपने पांच वर्ष के शासनकाल में उनकी सरकार पहले ढाई साल में देश को पटरी पर लायेगी. फिर भी सालभर पूरा होने पर किसी सरकार के कामकाज के लेखा-जोखा करने की एक परंपरा सी है.

लेकिन इस बात को नजरअंदाज किया जा रहा है कि जहां नयी सरकार के कार्यकाल का एक साल पूरा हुआ है, वहीं एक दशक के बाद कांग्रेस पार्टी को भी विपक्ष में बैठे हुए 12 महीने हो चुके हैं. इसलिए यह अवसर विपक्ष की भूमिका के बारे में विचार करने का भी होना चाहिए. प्रमुख विपक्ष के रूप में इस दौरान कांग्रेस पार्टी ने क्या कुछ किया है?

जनतांत्रिक व्यवस्था में जिस तरह निर्वाचित सरकार से मतदाता अपेक्षाएं करता है, उसी तरह चुने हुए विपक्ष का भी कुछ दायित्व बनता है. विपक्ष का काम सरकार के कामकाज पर नजर रखना होता है. इस नजर रखने में नजर सरकार की समूची रीति-नीति पर होनी चाहिए.

जहां सरकार जनता के हित में कुछ अच्छा काम करती दिखे, वहां उसकी प्रशंसा होनी ही चाहिए. वैसे सरकारें अपनी पीठ थपथपाने में माहिर होती हैं, इसलिए वे इस बात की ज्यादा चिंता नहीं करतीं कि विपक्ष उनके प्रति कितना उदार है, पर इस बात की चिंता सरकारों को जरूर होनी चाहिए कि विपक्ष किन मुद्दों पर उनकी आलोचना कर रहा है. लेकिन इसके लिए जरूरी यह भी है कि विपक्ष अपनी उस सकारात्मक भूमिका के प्रति निरंतर सजग रहे, जिसकी एक जनतांत्रिक व्यवस्था में उससे अपेक्षा रहती है.

जनतंत्र में विपक्ष की भूमिका विरोध के लिए विरोध करने की नहीं होती. सच बात तो यह है कि इस व्यवस्था में विपक्ष एक वैकल्पिक सरकार होती है. राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर विपक्ष की एक निश्चित समझ होनी चाहिए. यदि विपक्ष सरकार की किसी नीति की आलोचना करता है, तो उसके पास वैकल्पिक नीति भी होनी चाहिए. यदि सरकार के काम करने का ढंग उसे गलत लगता है, तो उसे मतदाता को यह भी बताना होगा कि उसकी दृष्टि में सही ढंग कौन-सा है. यह एक विशेष तरह की पहरेदारी है. दायित्वपूर्ण पहरेदारी. सिर्फ आलोचना करने के लिए नहीं, सुधारने के लिए आलोचना करने वाली पहरेदारी.

सवाल उठता है, इस एक साल में संसद में और संसद के बाहर भी, कांग्रेस पार्टी ने विशिष्ट पहरेदारी वाली यह भूमिका कैसी निभायी है? लोकसभा में कांग्रेस विपक्ष का सबसे बड़ा दल है. यह सही है कि उसे इतनी सीटें नहीं मिलीं, जितनी अधिकृत विपक्षी दल को मिलनी चाहिए, पर इससे उसका दायित्व कम नहीं हो जाता.

सरकार चाहती तो कम सीटों के बावजूद कांग्रेस को सदन में विपक्ष का नेता चुनने का अवसर दे सकती थी, लेकिन उसने वही किया जो इस संदर्भ में कांग्रेस की पिछली सरकारें करती रही थीं. हालांकि, यहां नयी सरकार बेहतर उदाहरण पेश कर सकती थी. बहरहाल, कांग्रेस सदन में विपक्ष में सबसे बड़ा दल है, और एक जिम्मेवार विपक्ष के रूप में उससे अपेक्षाएं भी अधिक हैं. कितनी खरी उतरी है कांग्रेस इन अपेक्षाओं पर इस एक साल में?

इस दौरान संसद में कांग्रेस ने लगातार मुद्दे उठाये हैं. काफी शोर-शराबा भी किया है. लंबी छुट्टी के बाद पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी सदन में सक्रिय दिखाई दिये हैं.

लेकिन, पार्टी की यह सक्रियता आकर्षक जुमलों तक सीमित नहीं रहनी चाहिए. संसद में विपक्ष ठोस और सार्थक टिप्पणियों की अपेक्षा की जाती है. अपेक्षा की जाती है कि विपक्ष बताये कि सरकार कहां, कैसी गलती कर रही है.

किसानों के मुद्दे पर संसद में और संसद के बाहर भी कांग्रेस ने अच्छी भूमिका अपनायी है. लेकिन यदि यह भूमिका सदन में शोर-शराबे में खो जाती है, तो इससे किसानों का अहित होने के साथ जनतांत्रिक मूल्यों और व्यवस्था में अपेक्षित विश्वास मजबूत होने का काम भी रुक जायेगा.

जनतंत्र में विपक्ष की भूमिका सरकार की भूमिका से कम महत्वपूर्ण नहीं होती. विपक्ष वैकल्पिक नीतियां तैयार रखते हैं. जनतंत्र सफल तभी होता है, जब इस तंत्र का हर पुर्जा अपना काम सही ढंग से करता है.

विपक्ष एक बहुत ही महत्वपूर्ण पुर्जा है इस तंत्र का. कांग्रेस को इस बात को समझना भी है और प्रमाणित भी करना है. एक जिम्मेवार विपक्ष से यह अपेक्षा की जाती है कि वह निरंतर जागरूकता का परिचय देगा, ईमानदारी और कर्मठता के साथ सरकार की कमियों-गलतियों को उजागर करके उन्हें सही परिप्रेक्ष्य में रखेगा.

व्यवस्था को पटरी पर लाने का काम सिर्फ सरकार का नहीं होता, जनतंत्र में विपक्ष को भी इस कार्य में पूरी निष्ठा के साथ जुटना होता है. कांग्रेस को यह निष्ठा प्रमाणित करनी है. अब सिर्फ चार साल बचे हैं उसके पास इस काम के लिए!

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