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यशवंत सिन्हा ने सोनिया गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष पद से संभावित रिटायरमेंट पर लेख लिख तारीफ की

नयी दिल्ली :राजनीतिकहलकों में यह चर्चा तेज है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के पुत्र राहुल गांधी इस महीने के अंत तक देश की सबसे पुरानी पार्टी के अध्यक्ष पद की जिम्मेवारी संभाल लेंगे. पार्टी अध्यक्ष पद से सोनिया गांधी के संभावित रिटायरमेंट पर प्रतिष्ठित समाचार पत्रिका द वीक ने 22अक्तूबरकेअंकको विशेषांक के रूप में […]

नयी दिल्ली :राजनीतिकहलकों में यह चर्चा तेज है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के पुत्र राहुल गांधी इस महीने के अंत तक देश की सबसे पुरानी पार्टी के अध्यक्ष पद की जिम्मेवारी संभाल लेंगे. पार्टी अध्यक्ष पद से सोनिया गांधी के संभावित रिटायरमेंट पर प्रतिष्ठित समाचार पत्रिका द वीक ने 22अक्तूबरकेअंकको विशेषांक के रूप में प्रकाशित किया है, जिसमें कई प्रतिष्ठित हस्तियों ने सोनिया गांधी पर लेख लिखा है. पत्रिका के इस अंक में वरिष्ठ भाजपा नेता व पूर्व वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा ने भी एक लेख लिखा है, जिसमें उन्होंने सोनिया गांधी के राजनीतिक सफर की समीक्षात्मक ढंग से प्रशंसा की है. मालूम हो कि इससे पहले यशवंत सिन्हा ने 27 सितंबर को इंडियन एक्सप्रेस में लेख लिख कर अपनी ही पार्टी की सरकार की आर्थिक नीतियों व वित्तमंत्री अरुण जेटलीकीआलोचनाकीथी. यशवंत सिन्हा ने तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वाराजेटलीको चुनाव हार जाने पर भीमंत्रीबनाने पर सवाल उठाया था और इस संबंध मेंएनडीए- वन की सरकार का उदाहरण दिया था, जिसकी अगुवाई अटल बिहारी वाजपेयी ने की थी.

यशवंत सिन्हा ने वर्थी एडवर्सेरी यानी योग्य विरोधी शीर्षक से लेख लिखा है, जिसमें सोनिया गांधी के राजनीति में आने और उनके द्वारा कांग्रेस को नया जीवन देने की तारीफ की है. सिन्हा ने लिखा है कि सोनिया गांधी ने भारत में एक कठिन एवं चुनौतीपूर्ण जिंदगी जी है. एक विदेशी से विवाह किया और अपने पति के एक अनोखे देश में बसीं जिसे उन्होंने पहले देखा, सुना या जाना नहीं है. सिन्हा ने लिखा है कि प्रधानमंत्री के पुत्र से विवाह करना और यहां प्रधानमंत्री आवास में आकर रहना बिल्कुल अनूठा अनुभव था.

सिन्हा ने लिखा है कि राजनीति से उनकी घृणा जानी जाती रही है. उन्होंने आलेख में उन परिस्थितियों का उल्लेख किया है कि कैसे पहले देवर और बाद में सास की हत्या के कारण वे राजनीतिक के करीब आती गयीं और अंतत: प्रधानमंत्री की पत्नी बनने को मजबूर हुईं. यशवंत सिन्हा ने द वीक पत्रिका में लिखे आलेख में इस जिम्मेवारी के लिए सोनिया गांधी की तारीफ करते हुए लिखा है कि अचानक अपने ऊपर थोपी गयी इन जिम्मेवारियों को निभाने में उन्होंने कोई कटौती नहीं की. वे कठिनाई से हिंदी बोल पातीं. सिन्हा ने लिखा है कि वे एक ऐसे धर्म को मानती थीं, जो भारत की बहुसंख्यक आबादी द्वारा माने जाने वाले धर्म से अलग था.

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यशवंत सिन्हा ने अपने आलेख में लिखा है कि वे अलग दिखती थीं और उनकी भारत की अनभिज्ञता को लेकर कुछ जोक भी थे. जैसे – जब वे अपने पति के साथ एक गांव गयीं जहां झोपड़ियों वाले घर थे, तो वहां अफसरों से पूछा कि लोग अपने घर के बाहर यहां नेमप्लेट क्यों नहीं लगाते हैं? पूर्व वित्तमंत्री लिखते हैं कि निश्चित रूप से ये बनाये गये थे और उन्हें बड़े स्तर पर फैलाया गया था.

यशवंत सिन्हा ने सोनिया गांधी के पति राजीव गांधी के निधन के बाद की परिस्थितियों का उल्लेख किया है और लिखा है कि कैसे उन्होंने अपना संघर्ष जारी रखा और जल्द ही भारतीय राजनीतिक आकाश का अग्रणी प्रकाश बन गयीं. सिन्हा ने लिखा है कि जब वे चंद्रशेखर सरकार में वित्त मंत्री थे, तब वे सोनिया गांधी को निजी तौर पर नहीं जानते थे, जिस सरकार का उनके पति राजीव गांधी बाहर से सपोर्ट कर रहे थे. उन्होंने लिखा है कि 1998 में वाजपेयी सरकार में वे वित्तमंत्री बने और सोनिया गांधी लोकसभा में विपक्ष की नेता बनीं, तब उनसे न सिर्फ संसद व आधिकारिक बैठकों में मुलाकात होती थी, बल्कि सामाजिक तौर पर भी उनसे मुलाकात हुआ करती थी. राष्ट्रपति भवन में राजकीय भोज में उनसे भेंट होती थी.

पूर्व वित्तमंत्री सिन्हा लिखते हैं कि वे संसद व अन्य बैठकों में शांत एवं अलग रहती थीं. वे अपनी बात कह देतीं और बाकी बातें उनके सहयोगी पूरा करते थे. जबकि राष्ट्रपति भवन के कार्यक्रमों में एक प्रभावी वार्ताकार की तरह कई मुद्दों पर सहजता से बात करती थीं. उन्होंने लिखा है कि कैसे वे लोकसभा में विपक्ष के नेता के रूप में लिखित भाषण पढ़ती थीं और उनके आभामंडल के कारण कोई उसमें हस्तक्षेप नहीं करता था.

यशवंत सिन्हा लिखते हैं कि यद्यपि वह प्रधानमंत्री नहीं बनीं, लेकिन निश्चित रूप से वे यूपीए की सबसे बड़ी नेता थीं. वे नियमित रूप से संसद आती थीं और बहसों में शामिल होती थीं. मैं सरकार का तीखा आलोचक था. एक समय मैंने नोटिस किया कि उन्होंने अपने सदस्यों को मेरे भाषण में व्यवधान करने केलिए प्रेरित किया. यहां तक कि कार्यवाही को स्थगित करने के लिए भी. पर, उन्होंने कभी अपने सदस्यों को निजी हमले के लिए प्रेरित नहीं किया. अगर कभी किसी ने ऐसा किया तो अकेले में उन्होंने उसे फटकार लगायी, एेसी सूचना मुझे उनकी पार्टी में मेरे दोस्तों से मिलती थी.

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भारतीयजनता पार्टीके वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा ने लिखा है वे विपक्ष की नेता के रूप में सरकार की नीतियों की आलोचना करती थीं और मैं लोकसभा में उनके सामने बैठा होता था और उनके तर्क से सहमत नहीं होता था. सिन्हा 15वीं लोकसभा का जिक्र करते हैं कि उस समय उन्होंने श्रीलंका के मुद्दे पर यूपीए सरकार की आलोचना सदन में की, पूरी बहस में उन्होंने अपने सांसदों को हस्तक्षेप नहीं करने दिया और पूरी बहस के दौरान सदन में बैठी रहीं.

पूर्व वित्तमंत्री और भाजपा के दिग्गज नेता सिन्हा लिखते हैं कि भारतीय राजनीति में उन्होंने नहीं भूलने वाली भूमिका अदा की. वे सम्मान के योग्य विरोधी हैं. चाहे सरकार में रहें या विपक्ष में. उन्होंने हर भूमिका में गरिमा के साथ खुद को आगे बढ़ाया. उन्होंने भारतीय राजनीति में कठिन जिंदगी जी. भारतीय राजनीति की गौरवशाली परंपरा के अनुरूप, परस्पर विरोधी नेता होने पर भी यशवंत सिन्हा अपने आलेख में सोनिया गांधी को भारत की सालों सेवा के लिए शुभकामनाएं भी देते हैं.


(इस खबर को द वीक पत्रिका में यशवंत सिन्हा के आलेख के अंश के आधार पर साभार तैयार किया गया है.)

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