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बिहार : रेलवे की ग्रुप डी भर्ती को लेकर आरा में बवाल, ट्रेन पर भी पथराव, जानें क्या कहना है छात्रों का
जंक्शन परिसर बना रणक्षेत्र, इन्क्वायरी को ले िलया कब्जे में आरा : रेलवे के ग्रुप डी पदों की भर्ती में आईटीआई की अनिवार्यता खत्म करने और उम्र सीमा में कटौती की मांग को लेकर शुक्रवार की सुबह छात्रों ने आरा जंक्शन पर पांच घंटे तक बवाल किया. स्थिति नियंत्रित करने गयी पुलिस पर छात्रों ने […]
जंक्शन परिसर बना रणक्षेत्र, इन्क्वायरी को ले िलया कब्जे में
आरा : रेलवे के ग्रुप डी पदों की भर्ती में आईटीआई की अनिवार्यता खत्म करने और उम्र सीमा में कटौती की मांग को लेकर शुक्रवार की सुबह छात्रों ने आरा जंक्शन पर पांच घंटे तक बवाल किया.
स्थिति नियंत्रित करने गयी पुलिस पर छात्रों ने पथराव किया. इससे दो पुलिसकर्मी समेत चार लोग घायल हो गये. स्थिति को काबू में करने के लिए पुलिस को तीन से चार राउंड आंसू गैस के गोले दागने पर पड़े. हंगामा कर रहे लोगों ने आरा-सासाराम पैसेंजर ट्रेन पर भी पथराव किया, जिससे इंजन का शीशा फूट गया. उपद्रवियों ने रेलवे इन्क्वायरी को कब्जे में लेकर ट्रेनों के एनाउंसमेंट सिस्टम से भाषण देना शुरू कर दिया. हंगामे की वजह से मुगलसराय-पटना रेलखंड पर करीब 40 ट्रेनों का परिचालन ठप हो गया. पूरा जंक्शन परिसर रणक्षेत्र में तब्दील हो गया. इस मामले में पुलिस ने 18 युवकों को गिरफ्तार कर जेल भेजा है. वहीं, 21 नामजद व 500 अज्ञात पर प्राथमिकी दर्ज की गयी है.
रेल सेवा ठप होने की सूचना मिलते ही आरपीएफ इंस्पेक्टर एसएन राम व जीआरपी इंचार्ज अशोक कुमार सिंह समझाने-बुझाने में लग गये, लेकिन युवक नहीं माने. युवकों का कहना था कि लगभग चार साल के बाद भर्ती आयी है और उसमें उम्र सीमा 18-30 की जगह 18-28 वर्ष कर दी गयी. सामान्य वर्ग के अलावा ओबीसी, एससी और एसटी वर्ग में भी उम्र सीमा पहले 18-35 की जगह 18-33 कर दी गयी. इसके अलावा 2014 में रेलवे की जो आखिरी बहाली आयी थी, उसमें अभ्यर्थियों से 40 रुपये का पोस्टल आॅर्डर लिया जाता था. अब उसे बढ़ाकर 500 रुपये कर दिया गया है. इससे युवाओं में आक्रोश है.स्थिति बिगड़ती देख स्थानीय पुलिस व प्रशासन को सूचना दी गयी.
बल प्रयोग कर स्थिति की गयी नियंत्रित
मौके पर पहुंचे प्रशासन के अधिकारियों ने भी स्थिति को नियंत्रित करने की कोशिश की, लेकिन स्थिति सामान्य नहीं हुई तो बल प्रयोग करना पड़ा. इस दौरान एसडीओ अरुण प्रकाश, डीएसपी संजय कुमार, अवर निर्वाचन पदाधिकारी विकास कुमार सहित कई थानों की पुलिस पहुंची थी.
ट्रेन पर भी पथराव, पुलिस ने दागे आंसू गैस के गोले
क्या कहना है छात्रों का
हंगामा कर रहे युवकों का कहना है कि लगभग चार साल के बाद भर्ती आयी है और उसमें उम्र सीमा 18-30 की जगह 18-28 वर्ष कर दी गयी. यही नहीं, सामान्य वर्ग के अलावा ओबीसी, एससी और एसटी वर्ग में भी उम्र सीमा पहले 18-35 की जगह 18-33 कर दी गयी. इसके अलावा 2014 में रेलवे की जो आखिरी बहाली आयी थी, उसमें अभ्यर्थियों से 40 रुपये का पोस्टल आॅर्डर लिया जाता था. अब उसे बढ़ाकर 500 रुपये कर दिया गया है.
फुलवारी और आरा मे आरपीएफ ने करीब आठ उपद्रवियों को गिरफ्तार भी किया है. जिसमें एक कोचिंग संचालक भी शामिल है. हम सख्त कार्रवाई करने जा रहे हैं. चूंकि इन सभी मामलों में आम लोग शामिल होते हैं, इसलिए असली सूत्रधार की पहचान मुश्किल होती है. हालांकि इस तरह का घटनाक्रम गलत ट्रेंड है. फिलहाल हम कार्रवाई कर रहे हैं.
चन्द्रमोहन मिश्र, सीनियर कमांडेंट,आरपीएफ
अब नौजवान निराश हो रहे हैं. दरअसल वे इन दिनों कई दिक्कतों से दो चार हो रहे हैं. आज के लीडर इन नौजवानों को बरगला रहे हैं. नेताओं का मकसद महज प्रसिद्धि पाना है. चक्काजाम और इस तरह के दूसरे आंदोलन पूरी तरह गलत हैं. गैर कानूनी है. आम आदमी को नुकसान पहुंचाने को किसी भी तरह जायज नहीं ठहराया जा सकता है.
सरकारी एजेंसियों को चाहिए कि वे ऐसे अराजक आंदोलनों को चलाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करें. दरअसल एजेंसियां ऐसे लोगों को सजा नहीं दिला पातीं. सरकारी एजेंसियों को इस मामले में अपना रवैया बेहद सख्त रखना चाहिए.
प्रभात कुमार सिन्हा, जस्टिस
एक्सीडेंट जैसी घटनाओं से शुरू हुई ये प्रवृत्ति अब ट्रेंड बन गई है. ये दुर्भाग्यपूर्ण है. लोगों को यात्रियों के अधिकारों का भी सम्मान करना चाहिए. अगर शुरुआती दौर में ही इस तरह की प्रवृत्ति को हतोत्साहित किया जाता तो ऐसी नौबत नहीं आती. हालांकि अब ये समस्या बड़ी हो गई है. सरकारी एजेंसियों को इस मामले में पूरी सतर्कता बरतते हुए इसके जिम्मेदार लोगों पर नजर रखनी होगी.
पीके शाही, पूर्व महाधिवक्ता, बिहार एवं पूर्व शिक्षा मंत्री
बेलगाम और अराजक चक्का जाम की पीड़ा भोगते हैं यात्री
पटना : बिहार में एक बार फिर अपनी मांग मनवाने ट्रैन रूट बाधित करने का अराजक रिवाज पिछले 48 घंटों से जारी है. गुरुवार को फुलवारी और शुक्रवार की सुबह आरा में ट्रेन रूट बाधित करके हजारों यात्रियों को सकते में डाल दिया. दो से तीन घंटे तक पुलिस और अन्य सरकारी एजेंसियां लाचार दिखाई दे रही हैं.
गजब की बात ये है कि ये सभी आंदोलन स्कूली लड़के कर रह हैं. जिनकी परीक्षा अभी हाल ही में निपटी है. ट्रैनों में बैठे हजारों यात्रियों की पीड़ा संभवत: इन लोगों को पता नहीं है.
जहां तक सरकारी एजेंसियों की लाचारी का सवाल है,वे सुप्रीम कोर्ट की दी गई व्यवस्था को प्रभावी नहीं कर पा रहे. सुप्रीम कोर्ट ने 28 जुलाई 1997 को पीपुल काउंसिल फॉर सोशल विरुद्ध स्टेट ऑफ केरला एवं अन्य के एक केस में साफ कर दिया था कि संविधान में लोगों को अपनी बात रखने के लिए शांतिपूर्ण प्रदर्शन या दूसरी शांतिपूर्ण गतिविधियों को करने का अधिकार है,लेकिन ऐसा कोई अधिकार नहीं है जिससे दूसरों को असुविधा हो. इसके अलावा सभी तरह के चक्का जाम और हिंसक प्रदर्शन को गैर कानूनी ठहरा दिया था.
बिहार का भी था एक अहम केस : इसी तरह का एक केस बिहार से भी जुड़ा था. कामेश्वर विरुद्ध स्टेट ऑफ बिहार मामले में चक्का जाम और हिंसक घटनाक्रमों को अराजक बताया गया था. बतादें कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने सभी फैसलों में राज्य और केन्द्र की सभी एजेंसियों को इस तरह के प्रदर्शन रुकवाने के अधिकार दे रखे हैं.
आरपीएफ को हैं कुछ खास कानूनी शक्तियां : ट्रेन रूट बाधित करने एवं दूसरी अराजक गतिविधियों को रोकने के लिए भारतीय रेलवे सुरक्षा अधिनियम के तहत खास कानूनी ताकत है. जिसका इस्तेमाल कभी कभार ही किया जाता है.
रेलवे एक्ट की धारा 153 : इसके तहत यात्रियों के जानमाल की सुरक्षा की जाती है. इसमें जेल की सजा का प्रावधान है.धारा 174 : इस एक्ट के तहत अराजक और हिंसक आंदोलनकारियों पर लगाया जाता है. इसमें पांच साल की सजा का प्रावधान है. इसमें जमानत नहीं मिलती.
स्पेशल पॉवर : अगर रेलवे संपत्ति को नुकसान पहुंचता है तो रेलवे अपनी विशेष धाराओं के तहत संपत्ति का आकलन कराता है. संपत्ति के आर्थिक आकलन में जितने मूल्य का नुकसान होता है, उतनी राशि उपद्रवियों से वसूल की जाती है.
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