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होली के रंग में गुझिया का स्वाद

इंिडयन स्वाद भारत के बड़े त्योहारों में से एक होली अब नजदीक है. होली का नाम सुनते ही रंग, गुलाल और अबीर के साथ हमारे जेहन में गुझिया की भी एक मीठी तस्वीर बनती है. उत्तर भारत में तो गुझिया के बिना होली के हुड़दंग की कल्पना करना भी ठीक नहीं होगा, क्योंकि रंग के […]

इंिडयन स्वाद

भारत के बड़े त्योहारों में से एक होली अब नजदीक है. होली का नाम सुनते ही रंग, गुलाल और अबीर के साथ हमारे जेहन में गुझिया की भी एक मीठी तस्वीर बनती है. उत्तर भारत में तो गुझिया के बिना होली के हुड़दंग की कल्पना करना भी ठीक नहीं होगा, क्योंकि रंग के साथ स्वाद का सामंजस्य इसी से बनता है. गुझिया के आकार-प्रकार और इसकी मिठास के तमाम तथ्यों के बारे में हम विस्तार से बता रहे हैं…
पुष्पेश पंत
अर्ध चंद्राकार गुझिया को कुछ लोग मीठा समोसा सरीखा मानते हैं, पर वास्तव में यह दक्षिण भारत में वर्षभर नजर आनेवाली चंद्रकला की सगी बहन लगती है.
होली का आनंद जितना रंगों के साथ जुड़ा है, लगभग उतना ही इस त्योहार के अवसर पर खायी-खिलायी जानेवाली गुझिया के साथ. होली के दिन अबीर-गुलाल की धूल फांकने के साथ हर ठौर पर गुझिया चखते-चखते ही पेट भर जाता है.
अर्ध चंद्राकार गुझिया को कुछ लोग मीठा समोसा सरीखा मानते हैं, पर वास्तव में यह दक्षिण भारत में वर्षभर नजर आनेवाली चंद्रकला की सगी बहन लगती है. जबकि, मावे का यह मीठा समोसा बिल्कुल
लवंग-लतिका के निकट लगता है. गुझिया की इस तरह की तुलना उन भरवां विदेशी पेस्ट्री से कर सकते हैं, जो तुर्की में बकलावा के नाम से बेहद लोकप्रिय हैं. बेकरी का काम करनेवाले हमारे मित्रों को देसी गुझिया बंद ‘टार्टलैट’ सरीखी लगती है. हमें यह बात दूर की कौड़ी जान पड़ती है. विदेशी पेस्ट्रियां बेक की जाती हैं, यानी खुश्क सेंकी जाती हैं, जबकि गुझिया तली जाती हैं. सूरत और सीरत दोनों में ही इसका असर पड़ता है. हम समोसे की रेशम राजमार्ग से भारत तक पहुंचने की कहानी से बेखबर नहीं हैं, लेकिन अब तक गुझिया का जन्म और विकास का इतिहास भी खोजा तथा लिखा जाना बाकी है.
बिहार में गुझिया को पेड़किया नाम से पुकारा जाता है, तो तमिलनाडु में कजिकई. गुजरात में गुझिया को घुगरा कहा जाता है, तो महाराष्ट्र में करंजकई. नाम साम्य से यह संकेत मिलता है कि मराठा नायकों के साथ इसने नर्मदा नदी और विंध्याचल पर्वतमाला को पार किया. पश्चिमी तटवर्ती गोवा में इसी तरह की मिठाई के दर्शन होते हैं, जिसका नाम न्यूरोमिओस है. ईसाई इसे क्रिसमस के दावत में पेश करते हैं, तो हिंदू इसे गणेश चतुर्थी के थाल में जगह देते हैं. दूसरे शब्दों में लड्डू और हलवे की तरह गुझिया भी अखिल भारतीय मिठाई होने का दावा कर सकती है.
गुझिया का गरिष्ठ अवतार खोये (मावे) वाला है, जिसे चिरौंजी, किशमिश, पिस्ता आदि से और भी समृद्ध बनाया जाता है. साधन-संपन्न ही इसका आनंद ले सकते हैं. आम आदमी की गुझिया में भरी रहती है भूनी सूजी, कसी नारियल की गिरी, सौंफ और इलायची के दाने. गुझिया का यह हल्का संस्करण स्वास्थ्य के लिए निरापद समझा जाता है और अक्सर मावे वाली गुझिया की पीठी में भी नारियल का पुट दिया जाने लगा है.
गुझिया को पसंद और सुविधानुसार घी या तेल में मंद आंच पर तला जाता है. कलाकारी की कसौटी यह है कि भली-भांति पकने के बाद भी गुझिया का रंग सांवला न पड़े! इन्हें आकर्षक बनाने के लिए इसके किनारे को कंगूरों से अलंकृत किया जाता है. कभी यह काम दस्तकारी का था, आज एक छोटे से उपकरण ने इसे आसान बना दिया है.
जिन लोगों का काम हल्की मिठास से नहीं चलता, उनके संतोष के लिए हलवाई तली गुझिया पर चीनी की चाशनी की पारदर्शी परत चढ़ा देते हैं. तली होने की वजह से और चीनी के कवच के कारण नाजुक मिठाइयों की तुलना में गुझिया अधिक टिकाऊ होती है. बेहतरीन गुझिया में बालूशाही और खाजे की खस्तगी का मजा भी होता है और बर्फी, पेड़ों, कलाकंद की दुधिया मलाईयत भी होती है.
रोचक तथ्य
विदेशी पेस्ट्रियां बेक की जाती हैं, यानी खुश्क सेंकी जाती हैं, जबकि गुझिया तली जाती हैं. सूरत और सीरत दोनों में ही इसका असर पड़ता है.
बिहार में गुझिया को पेड़किया नाम से पुकारा जाता है, तो तमिलनाडु में कजिकई.
गुजरात में गुझिया को घुगरा कहा जाता है, तो महाराष्ट्र में करंजकई.
पश्चिमी तटवर्ती गोवा में इसी तरह की मिठाई के दर्शन होते हैं, जिसका नाम न्यूरोमिओस है.
लड्डू की तरह गुझिया भी अखिल भारतीय मिठाई होने का दावा कर सकती है.

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