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2018 तक शुरू होगा परिचालन

सहरसा-फारबिसगंज रेल लाइन. पुल निर्माण पूरा नहीं होने से परिचालन में देरी सहरसा-फारबिसगंज रेल लाइन पर सुपौल के गढ़-बरुआरी तक 15 मार्च तक रेल परिचालन आरंभ होना था, जिसे बाद में बढ़ा कर 31 मार्च किया गया और फिर दो माह बाद रेल परिचालन का दावा हुआ. रेलवे की दो मियाद बीत चुकी है और […]

सहरसा-फारबिसगंज रेल लाइन. पुल निर्माण पूरा नहीं होने से परिचालन में देरी

सहरसा-फारबिसगंज रेल लाइन पर सुपौल के गढ़-बरुआरी तक 15 मार्च तक रेल परिचालन आरंभ होना था, जिसे बाद में बढ़ा कर 31 मार्च किया गया और फिर दो माह बाद रेल परिचालन का दावा हुआ. रेलवे की दो मियाद बीत चुकी है और तीसरी मियाद भी लगभग खत्म होने के कगार पर है, लेकिन बिजलपुर के पास बड़ी नहर पर पुल का निर्माण कार्य लंबित रहने के कारण समयसीमा बढ़ायी गयी.
सुपौल : देश को ललित नारायण मिश्र जैसे रेलमंत्री व नेता देने वाला सुपौल आज रेलवे के मानचित्र से गायब है और रेल परिचालन के लिए लोगों का इंतजार लंबा खिंचता जा रहा है. मिश्र के निधन के साथ ही कोसीवासियों के अरमान का जो गला घोंटा गया, लोग अभी भी उससे उबर नहीं पाये हैं. खास तौर पर सुपौल लगातार हाशिये पर रहा है. शायद यही वजह है कि सुपौल में रेल परिचालन आरंभ कराने पर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है.
रेलवे का हाल के दिनों में पहला दावा सहरसा-फॉरबिसगंज रेल लाइन पर सुपौल के गढ़-बरुआरी तक 15 मार्च तक रेल परिचालन आरंभ कराने का था. जिसे बाद में बढ़ा कर 31 मार्च किया गया और फिर दो माह बाद रेल परिचालन का दावा हुआ. रेलवे की दो मियाद बीत चुकी है और तीसरी मियाद भी लगभग खत्म होने के कगार पर है, लेकिन उदासीनता का आलम यह है कि बिजलपुर के पास बड़ी नहर पर जिस पुल निर्माण कार्य लंबित रहने के कारण समयसीमा बढ़ायी गयी,
उसका निर्माण अभी भी पूरा नहीं हो सका है. जाहिर है पुल निर्माण संपन्न होने के बाद भी ट्रैक बिछाने के लिए इंतजार किया जायेगा और ट्रैक पूरी तरह तैयार होने के बाद ही रेल परिचालन आरंभ होगा, लेकिन पुल का निर्माण कब पूरा होगा, इसका जवाब शायद किसी के पास नहीं है. रेलवे का दावा है कि मार्च 2018 तक सुपौल स्टेशन तक रेल परिचालन आरंभ कर दिया जायेगा. लेकिन रेलवे की हालिया कार्यशैली के मद्देनजर दावे हकीकत से कोसों दूर दिख रहे हैं. यही कारण है कि लोगों में अब निराशा छाने लगी है और लोग पूछने लगे हैं कि आखिर रेल परिचालन कब आरंभ होगा.
संवेदकों की संवेदनहीनता की खुलने लगी पोल
सहरसा-गढ़ बरुआरी के बीच रेल परिचालन आरंभ कराने का लक्ष्य 15 मार्च रखा गया था. जिसे अबतक दो बार बढ़ाया भी गया है, लेकिन ट्रेन परिचालन अभी आरंभ नहीं हुआ है. इस बीच रेलवे के निर्माण कार्य में संवेदकों की संवेदनहीनता की पोल भी खुलने लगी है. दरअसल, गढ़ बरुआरी स्टेशन पर तीन लेन का ट्रैक बिछाया गया है. जिसमें एक अप, दूसरा डाउन व तीसरा संटिंग लाइन है. इन ट्रैक के बीच नाले का निर्माण भी किया गया है,
जो ट्रैक की गंदगी को खाली करने में सहायक होगी. लोगों का आरोप है कि नाले के निर्माण में घटिया ईंट व अन्य निर्माण सामग्री का प्रयोग किया गया है. इसके कारण नाले में जगह-जगह दरार पड़ चुकी है. कई ईंट खिसक कर नाले के लिए बने गड्ढे में हैं. वही ईंट को जोड़ने के लिए प्रयोग में लाया गया मसाला इतना घटिया है कि हाथ लगाने मात्र से अलग हो जाता है. निर्माण कार्य को देखने रेलवे का कोई भी अधिकारी नहीं आते हैं.
ट्रैक पर जोर-शोर से चल रहा है कार्य
गढ़-बरुआरी तक ट्रैक बिछाने का कार्य लगभग पूरा कर लिया गया है और अब केवल इसे अंतिम रूप दिया जा रहा है. संवेदक जीएस कंस्ट्रक्शन के प्रबंधक बाबुराम बोसुमातारी ने बताया कि रेलवे द्वारा गढ़ बरुआरी तक बिछाने के लिए ट्रैक उपलब्ध कराया गया है, जो लगभग पूरा कर लिया गया है. केवल पंचगछिया से बरुआरी के बीच एक नहर पर पुल का निर्माण नहीं हुआ है, जो दूसरे संवेदक कंपनी की जिम्मेवारी है.
पुल निर्माण का कार्य संपन्न होते ही ट्रैक बिछा लिया जायेगा. बताया कि ट्रैक के कार्य में सहरसा से बरुआरी के बीच करीब 150 मजदूर लगाये गये हैं. जो कार्य में तेजी लाने में जुटे हुए हैं बरुआरी से आगे ट्रैक बिछाने के लिए अभी केवल मिट्टी भरायी का कार्य चल रहा है. बहुत ही जल्द निर्माण कार्य करा लिया जायेगा और लोगों का सपना भी पूरा हो जायेगा. सुपौल तक ट्रैक बिछाने के लिए रेलवे की ओर से मार्च 2018 तक का लक्ष्य निर्धारित किया गया है.
वाष्प इंजन से लेकर मीटर गेज सेवा तक, सुपौल में रेलवे का इतिहास 110 साल पुराना है, लेकिन बीते 110 वर्षों में वर्ष 2017 पहला अवसर है, जब जिले के किसी भी हिस्से में एक गज तक ट्रेन का परिचालन नहीं हो रहा है. हालांकि फरवरी 2017 में आम बजट में सुपौल सहित कोसी इलाके को 250 करोड़ का तोहफा रेलवे ने दिया, लेकिन राशि आवंटन के बावजूद रेलवे का कार्य मंथर गति से चल रहा है. ट्रैक बिछाने तथा उससे संबंधित कार्य के लिए रेलवे ने बेगुसराय के जीएस कंस्ट्रक्शन को जिम्मेवारी सौंपी है.
वही पुल-पुलिया, प्लेटफॉर्म, नाला आदि का निर्माण कार्य किसी अन्य संवेदक कंपनी को सौंपा गया है, लेकिन दोनों संवेदक कंपनी के बीच बेहतर समन्वय नहीं है, जिसका असर निर्माण कार्य पर भी पर रहा है. गौरतलब है कि वर्ष 1854 में ही इस्ट इंडिया कंपनी द्वारा सुपौल में रेल सेवा आरंभ कर दी गयी थी. लेकिन कोसी का इलाका वर्ष 1909 से सेल सेवा से जुड़ सका. वर्ष 1902 में सुपौल सहित प्रमंडल क्षेत्र में रेलवे के लिए जमीन अधिप्राप्ति की प्रक्रिया आरंभ की गयी.
जबकि मीटर गेज सेवा के लिए वर्ष 1907 में सहरसा-निर्मली-फॉरबिसगंज के बीच कार्य आरंभ किया गया. वर्ष 1909 में निर्माण कार्य संपन्न होने के बाद यहां रेल परिचालन आरंभ भी कर दी गयी. खास बात यह है कि तब ट्रेन कोयला व पानी से चलने वाली वाष्प इंजन के सहारे चलती थी, लेकिन वर्ष 1934 में आयी प्रलंयकारी भूकंप ने कोसी नदी पर बने रेल पुल को ध्वस्त कर दिया और इसके साथ ही सुपौल-फॉरबिसगंज ट्रैक पर रेल परिचालन ठप हो गया.
बाद में इसी साल सरायगढ़ से फारबिसगंज के बीच रेल सेवा आरंभ हुई. जबकि वर्ष 1975 में सुपौल से सरायगढ़ के बीच रेल सेवा तत्कालीन रेलमंत्री ललित नारायण मिश्र के प्रयास से आरंभ हुआ. फिलहाल सहरसा-फॉरबिसगंज के बीच 206 किमी लंबे रेल ट्रैक में तीन चरणों में आमान परिवर्तन का कार्य हो रहा है. जिसमें 20 जनवरी 2012 को राघोपुर-फॉरबिसगंज तथा 30 नवंबर 2015 को थरबिटिया-राघोपुर के बीच ट्रैक बंद किया गया. 24 दिसंबर 2016 को सहरसा-थरबिटिया के बीच भी मीटर गेज सेवा बंद होने के बाद से लोग ट्रेन परिचालन की ओर टकटकी लगाये हुए हैं.

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