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ऊंची सड़कें व जमींदोज होते मकान बने गले की फांस

सासाराम नगर : शहर में गलत नीतियों के कारण पुराने मकान जमींदोज होते जा रहें हैं. यह समस्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है. यह कहना गलत नहीं होगा कि नगर पर्षद ने अगर तत्काल इस समस्या पर ध्यान नहीं दिया, तो आनेवाले समय में यह शहर की एक बड़ी समस्या बन जायेगी. अगर देखा […]

सासाराम नगर : शहर में गलत नीतियों के कारण पुराने मकान जमींदोज होते जा रहें हैं. यह समस्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है. यह कहना गलत नहीं होगा कि नगर पर्षद ने अगर तत्काल इस समस्या पर ध्यान नहीं दिया, तो आनेवाले समय में यह शहर की एक बड़ी समस्या बन जायेगी. अगर देखा जाये जो यह समस्या नगर पर्षद कि देन है, जो विकराल बनती जा रही है. शहर में यह चलन हो गया है. पहले जो मकान बना है. उस मकान से सटे जब कोई मकान बनता है, तो उस मकान कि ऊंचाई बढ़ा दी जाती है,

जिससे पहले का बना मकान नीचे हो जाता है. इसी प्रकार जब शहर के गलियों में सड़क का निमार्ण होता है, तो पूर्व की बनी सड़क को बिना उखाड़े उसी पर नयी सड़क का निमार्ण हो जाता है. इससे उस गली में बने मकान नीचे पड़ जाते हैं और सड़क कि ऊंचाई बढ़ती जाती है. यह सिलसिला दो तीन वर्षों पर होता रहता है. नालियों कि भी यही स्थिति है. गौरतलब है कि शहर में कई ऐसे क्षेत्र हैं जहां लोग सड़क से तीन से पांच फिट नीचे उतर अपने घर में प्रवेश करते है.

नगर पर्षद की लापरवाही की देन है यह समस्या : नगर पर्षद टैक्स लेना जानती है. शहर में क्या हो रहा है, कौन सी समस्या आनेवाले दिनो में शहर कि स्थति को प्रभावित करेगी, इससे नगर पर्षद को कोई मतलब नहीं है. शहर में पुराने मकान तोड़ कर नये मकान बन रहे है़ं. जो नये बन रहे हैं उसे लोग पड़ोस के दूसरे मकानों से ऊंचाई बढ़ा देते है. सभी के पास पैसा तो है नहीं जो पुराने मकानों को तोड़ कर नया मकान बना दें. दूसरी बात यह है कि पड़ोसी संबंध खराब न हो इसलिए निमार्ण का बिरोध नहीं करते हैं. इसे रोकना नगर पर्षद का काम है, जिसे इसकी पारवाह नहीं है. वार्ड पार्षद इस झमेले में पड़ना नहीं चाहते. क्योंकि इन्हें अपना वोट बैंक प्रभावित होने का डर रहता है. शहर में सड़क निमार्ण नगर पर्षद की देखरेख में होता है. चाहें वह फंड किसी मद से हो. सड़क पर सड़क का निमार्ण होता जा रहा है. सड़क कि ऊंचाई बढ़ती जा रही है. और मकान जमींदोज होते जा रहे है.
नयी बस्तियों पर भी नहीं है नगर पर्षद की नजर : शहर में जहां नयी बस्तियां बस रही हैं. उस पर भी प्रशासन का ध्यान नहीं है. लोग बेतरतीब ढंग से मकान बनाते जा रहे हैं. एक दूसरे से ऊंचा मकान बनाने की होड़ मची है. मकान निमार्ण में नगर पर्षद के नियमों की धज्जियां उड़ायी जा रही हैं. पूरी जमीन में मकान का निमार्ण करा कर गली में छज्जा निकालना, सिढ़ी बनाना, अपने पड़ोस में बने मकानों में रहने रहने वालों लोगों की सुविधा को नजर अंदाज करना जैसी समस्याएं अधिक हैं. पुराने शहर में जो समस्या है, उससे बड़ी समस्या नयी बस्तियों में बढ़ रही है. अभी तो लोग परेशान हैं. आनेवाले दिनों में यह प्रशासन के लिए सिरदर्द बन जायेगी. तब शायद इस समस्या से उबरने में प्रशासन को काफी जद्दोजहद करनी पड़ेगी.
कहते हैं जानकार : यह केवल इसी शहर की समस्या नहीं है. सभी छोटे-बड़े शहरों में यह समस्या बनी हुयी है. इससे निबटने के लिए प्रशासन को सख्त रवैया अपनाना होगा. एक मानक तय करनी होगी की इससे ज्यादा मकान का फाउंड नहीं होना चाहिए. तीन चार वर्षों में एक बार सड़क कि मरम्मत होती. बिना पुराने को उखाड़े उसी पर नयी सड़क का निमार्ण कराया जाता है, जिससे यह समस्या बढ़ती जा रही है.
सुशील कुमार, सिविल इंजीनियर.

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