सैकड़ों या हजारों किलोमीटर की उड़ान भरने के बाद कई बार पायलटों को अपनी मंजिल नजर ही नहीं आती. कोहरे की वजह से उन्हें शहर या रनवे का कोई पता नहीं चलता. कुछ साल पहले तक नयी दिल्ली जैसे एयरपोर्ट पर भी कई बार पायलटों को लैंडिंग टालनी पड़ती थी. लेकिन आधुनिक तकनीक की मदद से अब पायलट आसानी से घने कोहरे में भी विमान उतार पाते हैं.
आधुनिक विमान और एयरपोर्टों पर एलएएस सिस्टम लगा होता है. कुछ नजर न आने पर भी यह सिस्टम रडार और सैटेलाइट डाटा की मदद से विमान को उड़ान के रूट पर बनाये रखता है. विमान का ऑटो पायलट और ऑटो लैंडिंग सिस्टम रनवे से मिलनेवाले सिगनल्स को कैच करता है और विमान को मंजिल की तरफ गाइड करता है. सामने भले ही कुछ न दिखे, लेकिन पायलटों को पता रहता है कि उनका विमान सही रास्ते पर है. ऑटो पायलट जमीन से विमान की ऊंचाई भी बताता रहता है. हालांकि, इस तकनीक के बावजूद यदि रनवे पर दृश्यता 50 मीटर से भी कम हो, तो लैंडिंग टालना ज्यादा बेहतर माना जाता है.
फिलहाल दुनियाभर में ऐसे हजारों एयरपोर्ट हैं, जहां आम तौर पर कोहरे की समस्या नहीं होती. लेकिन, जिन एयरपोर्टों पर घना कोहरा लगता है, वहां अगर एलएएस या कैट सिस्टम न हो तो पायलट विमान उतारने से बचते हैं. ऐसे में विमान को निकटतम एयरपोर्ट की ओर भेज कर वहां लैंड कराया जाता है.