कोलकाता: 22 सितंबर 2017 की सुबह 11 बजे लगभग एक हजार रेल यात्रियों की भीड़ ने बेलघरिया रेलवे स्टेशन पर इकट्ठा होकर आंदोलन करके गाड़ी का परिचालन बाधित कर दिया. यात्री उदघोषणा में ट्रेन के गलत प्लेटफार्म पर आने की सूचना को लेकर गुस्साये हुए थे. सूचना पाकर दमदम से उपनिरीक्षक एम.ए. न्वाहकार व स्टाफ और राजकीय रेल पुलिस व स्थानीय पुलिस थाने के लोग वहां पहुंच गये.
जब वे यात्रियों से बात कर रहे थे कि कुछ यात्री हिंसक हो गये और उन्होंने पुलिस बल पर पथराव शुरू कर दिया. उपनिरीक्षक व सहायक उपनिरीक्षक के सिर पर घातक चोटें आयीं. उन्हें स्थानीय अस्पताल और बाद में बी. आर. सिंह रेलवे चिकित्सालय ले जाया गया. अतिरिक्त पुलिस बल बैरकपुर से भेजा गया, तब जाकर दोपहर एक बजे हालात सामान्य हुए और ट्रेनों का परिचालन पुनः आरंभ हुआ.
उपनगरीय दैनिक यात्रियों को मिनट भर की भी असुविधा नहीं चाहिए. अगर किसी कारणवश यात्री उदघोषणा में ट्रेन प्लेटफार्म नंबर 1 पर आना बताया और वह प्लेटफार्म नं. 2 पर आ गयी और उद्घोषक ने गलती के लिए क्षमा भी मांग ली और गाड़ी भी रुकी रही. इसके बाद भी यात्री संतुष्ट नहीं हुए. गुस्साये यात्रियों ने और दूसरी यात्री गाड़ियों को भी रोक दिया और बेलघरिया स्टेशन पर हंगामा शुरू कर दिया. नतीजा यह हुआ कि दोनों ओर से आने जाने वाली गाड़ियों को आस पास के स्टेशनों पर ही कंट्रोल करना पड़ा. दिन शुक्रवार था. कार्यालय में आने वाले यात्री लोगों ने स्टेशन छोड़ दिया और बसों को पकड़ने लगे. रह गये वे लोग जिनका मकसद ही उपद्रव करना था और जिनके पास समय की कोई कमी नहीं थी. उन्हें यात्रियों के वेश में असामाजिक तत्व ही कहना चाहिए, क्योंकि उन्हें समझा कर लोकल ट्रेन के सामने से अवरोध हटाने के लिए रेलवे सुरक्षा बल के अधिकारी और जवान पहुंचे तो उन्होंने पथराव शुरू कर दिया. एक यात्री से यह उम्मीद नहीं की जाती है कि वह ड्यूटी पर तैनात पुलिस बल पर पत्थरबाजी करेगा.
रेलवे सुरक्षा बल, राजकीय रेल पुलिस के अधिकारी व जवानों पर पत्थरबाजी करनेवाले लोगों को रेल यात्री की जगह रेल यात्री के वेश में असामाजिक तत्व ही कहना उचित होगा.
दैनिक यात्रियों के उत्पात के कारण सुबह दस बजे से दोपहर लगभग एक बजे तक रेल खंड बंद रहा. लोकल ट्रेन जहां तहां खड़ी रही, 100-200 यात्रियों के हंगामे के कारण चालीस-पचास हजार यात्रियों को भीषण उमस में भारी असुविधा का सामना करना पड़ा. सैकड़ों लोग समय पर कार्यालय नहीं पहुंच पाये, जिनका पहले से ही अप्वाइंटमेंट था, उन्हें उसे निरस्त करना पड़ा. उनकी यात्रा का उद्देश्य ही समाप्त हो गया.
इन उपद्रवी रेल यात्रियों ने पूरे तीन घंटे तक बेलघरिया स्टेशन पर जम कर तांडव किया. उस समय उन्हें अपनी या दूसरे यात्रियों के समय नष्ट होने की कोई चिंता नहीं थी. ऐसे में वे समस्त रेल कर्मियों व पुलिस बलों को अपना दुश्मन समझते हैं और उनकी ओर निशाना ले लेकर नुकीले पत्थर जो बेलास्ट के रूप में ट्रैक पर पड़े रहते हैं, उन्हें फेंकते हैं. कई बार रेल अवरोध करने के लिए उपद्रवी रेल यात्री दूसरे रेल यात्रियों को भी उकसाते हैं और उन्हें अपने समूह में शामिल कर लेते हैं.
जिन्हें जरूरी कार्य होता है वे लोग तुरंत ही वैकल्पिक साधन ढूंढ़ कर स्टेशन से निकल जाते हैं. बाकी रह जाते हैं वे जिनकों कुछ खास काम नहीं होता है. फलतः वे उपद्रवी रेल यात्रियों के साथ स्थानीय लोग तमाशाबीन रूप में लग जाते हैं. कुछ बाहरी असामाजिक तत्व भी कई बार इस तरह के अवरोध में शामिल हो जाते हैं. फलतः भीड़ की संख्या बढ़ जाती है. भीड़ कमजोर व्यक्तियों का समूह होता है और ज्योहीं यह समूह बनता है वह स्वयं को ताकतवर मानकर हर बार कानून व्यवस्था हाथ में ले लेता है. ड्यूटी पर कार्यरत रेलवे सुरक्षा बल के अधिकारियों व जवानों को जो उत्तेजित रेल यात्रियों को समझाने बुझाने आये थे उन पर पत्थरबाजी करना नृृशंसता व अपराध है, जिसकी सजा कानून देता है. किसी भी व्यक्ति को कानून को हाथ में लेने का कोई हक नहीं है . उस सिलसिले में राजकीय पुलिस व रेलवे सुरक्षा बल ने तीन उपद्रवी यात्रियों सव्यसाथी दास (25 ), सुमन दास (24) प्रशांत साहा (24) को गिरफ्तार किया और केस रजिस्टर हुआ.
रेल यात्रियों से अनुरोध है कि ऐसी स्थिति में पत्थरबाजी व अवरोध की अपेक्षा शांतिपूर्ण ढंग से स्टेशन मास्टर के कक्ष में जाकर अपनी शिकायत दर्ज करवायें. उनकी शिकायत पर अविलंब कार्रवाई होगी. ट्रेनों का आवागमन बाधित करना कानूनी अपराध है और इसके लिए सजा व जुर्माना दोनों हो सकते हैं.
(डीआइजी सह अपर मुख्य सुरक्षा आयुक्त, आरपीएफ, पूर्व रेलवे)