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महिलाओं के खतने से परेशान ब्रिटेन

वॉशिंगटन : महिलाओं का खतना या उनके जननांगों को काटने की इस कुप्रथा को कई बार ब्रिटेन में भी अंजाम दिया जाता है. ब्रिटेन अपने यहां रह रही पूर्वी अफ्रीकी देशों के मूल की महिलाओं के खतने की प्रथा से बेहद परेशान है. एक अनुमान है की ब्रिटेन में करीब 66,000 महिलाएं इस कुप्रथा से […]

वॉशिंगटन : महिलाओं का खतना या उनके जननांगों को काटने की इस कुप्रथा को कई बार ब्रिटेन में भी अंजाम दिया जाता है. ब्रिटेन अपने यहां रह रही पूर्वी अफ्रीकी देशों के मूल की महिलाओं के खतने की प्रथा से बेहद परेशान है. एक अनुमान है की ब्रिटेन में करीब 66,000 महिलाएं इस कुप्रथा से प्रभावित हैं.

कई बार पूर्वी अफ्रीकी मूल की ब्रितानी लड़कियों को अपने पूर्वजों के देश में ले जा कर उनका खतना कर दिया जाता है.

कोई कानून नहीं

ब्रिटेन में इस बात पर अभी तक कोई सजायें नहीं हुई हैं, लेकिन देश की सरकार का कहना है कि वो महिलाओं के जननांगों को काटे जाने की प्रथा के अंत के लिए किटबद्ध है. इस तरह की हिंसा से प्रभावित महिलाओं की मदद लंदन, ब्रिस्टल, बर्मिघम में कई अस्पताल और क्लीनिक कर रहे हैं.

जागरूकता अभियान

फिल्सन कहती हैं, ब्रिटेन में लोग धीरे-धीरे समझ रहे हैं कि यह कोई अच्छी प्रथा नहीं है. अफ्रीका में इसके खिलाफ लोगों को जागरूक करने की जरूरत है. ब्रिटेन में सोमाली भाषा के टीवी चैनलों पर इसके खिलाफविज्ञापन दिखाये जा रहे हैं और प्रभावित महिलाओं की सर्जरी भी की जा रही है.

ब्रिटेन की सरकार ने हाल ही में साढ़े तीन करोड़ पाउंड या करीब 292 करोड़ रु पयों के बराबर के कार्यक्र म की घोषणा की है, जिसके तहत महिलाओं के खतने की प्रथा के खिलाफ न केवल ब्रिटेन में बल्कि उन देशों में भी अभियान चलाया जायेगा जहां इस कुप्रथा का पालन होता है.
(बीबीसी से साभार)

महिलाओं की कर रहीं मदद

35 वर्ष की उम्र की महिला फिल्सन उन्हीं महिलाओं में से एक हैं, जिनके जननांग सामाजिक मान्यताओं के कारण सिल दिये गये थे. फिल्सन के तीन बच्चे हैं और वो ब्रिटेन में रहती हैं. उस दिन को याद करते हुए वो बताती हैं कि सात साल की उम्र में सोमालिया में उनके खतने के पहले उन्हें नये कपड़े दिये गये.

वो बेहद दर्दनाक था. हालांकि मुङो दर्द निवारक इंजेक्शन दिया गया था, लेकिन जब उसका असर खत्म हुआ तो खड़ी भी नहीं हो पाती थी. आज ़फिल्सन अपने जैसी महिलाओं की मदद के लिए काम करती हैं. सोमाली मूल के लोगों के बीच उनका काम धीरे-धीरे रंग ला रहा है.

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