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विकासशील देशों पर बोझ डालना गलत : पीएम मोदी

पेरिस: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज विकसित देशों को चेतावनी दी कि अगर वे भारत जैसे विकासशील देशों पर उत्सर्जन कम करने का बोझ डालते हैं तो यह नैतिक रुप से गलत होगा और विकासशील देशों को अपनी अर्थव्यवस्थाओं की प्रगति के लिए कार्बन जलाने का अधिकार है. प्रधानमंत्री मोदी ने आज के ‘फाइनेंशियल टाइम्स’ […]

पेरिस: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज विकसित देशों को चेतावनी दी कि अगर वे भारत जैसे विकासशील देशों पर उत्सर्जन कम करने का बोझ डालते हैं तो यह नैतिक रुप से गलत होगा और विकासशील देशों को अपनी अर्थव्यवस्थाओं की प्रगति के लिए कार्बन जलाने का अधिकार है.

प्रधानमंत्री मोदी ने आज के ‘फाइनेंशियल टाइम्स’ के विचार वाले हिस्से में लिखा, ‘‘कुछ की जीवनशैली से उन कई देशों के लिए अवसर समाप्त नहीं होने चाहिए जो अब भी विकास की सीढी पर पहले पाय दान पर हैं.” 150 देशों के नेताओं ने यहां जलवायु पर संयुक्त राष्ट्र के 12 दिवसीय सम्मेलन का उद्घाटन किया जिसका उद्देश्य वैश्विक गर्मी बढने के लिए जिम्मेदार गैसों के उत्सर्जन में कमी लाना है.
इस मौके पर मोदी ने कहा, ‘‘हमारे सामूहिक उपक्रम की आधारशिला समान लेकिन अलग-अलग जिम्मेदारियों के सिद्धांत पर होनी चाहिए. और कुछ भी अन्य नैतिक रुप से गलत होगा.” जीवाश्म ईंधन के जरिए समृद्धि की दिशा में आगे बढने वाले विकसित देशों से उन्होंने कहा कि वे उत्सर्जन कम करने का बोझ उठाने में अपनी जिम्मेदारी पूरी करें.अमेरिका के नेतृत्व में विकसित देश इस बात पर जोर देते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग को दो डिग्री सेल्सियस से कम सीमित करने के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए पडने वाले बोझ को और अधिक समान तरीके से साझा किया जाना चाहिए.यह मुद्दा पृथ्वी पर गर्मी को नियंत्रित करने के लिए एक वैश्विक करार में बडी बाधा है.
ब्रिटेन के जानेमाने आर्थिक अखबार में लिखे लेख में मोदी ने कहा, ‘‘कुछ का कहना है कि आधुनिक देशों ने समृद्धि की दिशा में अपना मार्ग जीवाश्म ईंधन के जरिए एक ऐसे समय पर तय किया, जबकि मानवता को इसके असर की जानकारी भी नहीं थी.
मोदी ने लिखा, ‘‘चूंकि विज्ञान आगे बढ गया है और उर्जा के वैकल्पिक स्रोत उपलब्ध हैं… ऐसे में वे दलील देते हैं कि अपनी विकास यात्रा की शुरुआत भर करने वालों पर उन देशों की तुलना में कोई कम जिम्मेदारी नहीं है, जो तरक्की के चरम पर पहुंच चुके हैं. हालांकि नई जागरुकता के जरिए आधुनिक देशों को ज्यादा जिम्मेदारी उठानी चाहिए.
तकनीक मौजूद है, सिर्फ इसका यह अर्थ नहीं कि वह किफायती और प्राप्य है.” प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ‘‘न्याय की मांग है कि, जितना थोडा बहुत कार्बन हम सुरक्षित तौर पर उत्सर्जित कर सकते हैं, उसके तहत विकासशील देशों को विकास की अनुमति होनी चाहिए. मोदी ने उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में 121 सौर-समृद्ध देशों का एक गठबंधन शुरु करने की अपनी योजना को दोहराया, जिसका मकसद इसकी जद के बाहर के क्षेत्रों को किफायती सौर उर्जा उपलब्ध कराना है.
उन्होंने कहा, ‘‘जलवायु परिवर्तन के संबंध में दुनिया से भी हमें यही उम्मीद है.” दुनिया के करीब 150 नेताओं के साथ मोदी भी पेरिस में शुरु हुए जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने आए हैं. इस नए समझौते का मूल ध्येय ग्लोबल वार्मिंग को औद्योगिक क्रांति से पहले के तापमान यानी दो डिग्री सेल्सियस से नीचे तक बनाए रखना है.
मोदी ने महात्मा गांधी का उल्लेख करते हुए कहा, ‘‘महात्मा गांधी ने जिस कर्तव्यपरायणता की भावना का आह्वान किया था, उसे ध्यान में रखते हुए हम पेरिस सम्मेलन को लेकर बहुत आशान्वित हैं : हमें ट्रस्टी के तौर पर काम करना चाहिए और प्राकृतिक संसाधनों का बुद्धिमता से इस्तेमाल करना चाहिए क्योंकि यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि हम भावी पीढी के लिए एक उन्नत और समृद्ध ग्रह छोडकर जाएं। भारत पेरिस में सफलता हासिल करने के लिए अपनी जिम्मेदारी निभाएगा।” उनका यह बयान अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी के उस बयान की पृष्ठभूमि में आया है जिसमें उन्होंने कहा था कि पेरिस में होने वाली जलवायु परिवर्तन वार्ता में भारत एक ‘‘चुनौती” हो सकता है क्योंकि नए परिप्रेक्ष्य में अब यह अधिक चौकस और कुछ अधिक संयमित हो गया है

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