29.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

शी चिनफिंग की कलाबाजी में भारत के लिए छिपी है सीख

चीन के राष्ट्रपति शी जिनफिंग ने भारत यात्रा से लौटने के सप्ताह भर के अंदर ही अपने सैनिकों को कहा है कि वे क्षेत्रीय युद्ध के लिए तैयार रहें. इससे पहले उन्होंने नयी दिल्ली से लौटते समय भारत को भरोसा दिलाया था कि वे भारत की घुसपैठ की शिकायत को गंभीरता से देखेंगे. शी ने […]

चीन के राष्ट्रपति शी जिनफिंग ने भारत यात्रा से लौटने के सप्ताह भर के अंदर ही अपने सैनिकों को कहा है कि वे क्षेत्रीय युद्ध के लिए तैयार रहें. इससे पहले उन्होंने नयी दिल्ली से लौटते समय भारत को भरोसा दिलाया था कि वे भारत की घुसपैठ की शिकायत को गंभीरता से देखेंगे. शी ने अपने वादे के अनुरूप अपने अधिकारियों को इसे रोकने के भी निर्देश दिये थे. लेकिन जिस समय शी नयी दिल्ली में थे, ठीक उसी समय मीडिया में यह खबर आयी कि चीनी सैनिक फिर से भारतीय सीमा में घुस गयी है.

चीन के राष्ट्रपति के दो अलग-अलग बयान दो अलग-अलग परिस्थितियों की उपज हैं. किसी भी राष्ट्रनेता को घरेलू व बाहरी मोर्चो पर दो अलग-अलग स्तर की रणनीतियों के साथ काम करना होता है. वैश्विक सहयोग व समन्वय के साथ उसे घरेलू भावनाओं व कूटनीतिक मोर्चो पर हमेशा तीखा तेवर दिखाने वाले अपने देश के तत्वों का तुष्टीकरण भी करना होता है. यह मजबूरी लगभग सभी राष्ट्रप्रमुखों की होती है.
ध्यान रहे कि चीन ने नयी दिल्ली में कहा था कि भारत और चीन अगर एक साथ बोलेंगे तो पूरी दुनिया सुनेगी. शी ने अपनी प्रेस कान्फ्रेंस में ही नयी वैश्विक परिस्थितियों के मद्देनजर आपसी सहयोग व वाणिज्य व्यापार के साथ विश्वास बहाली के लिए सांस्कृतिक आदान-प्रदान बढ़ाने की बात कही थी. चीन जानता है कि भारत ही उसका एकमात्र पड़ोसी है, जो उसका प्रतिद्वंद्वी भी है और उसे चुनौती देने की भी हैसियत भी रखता है. इसलिए वह नहीं चाहता कि भारत पूरी तरह से जापान या अमेरिका के साथ चला जाये. इसलिए शी भारत के साथ अपने रिश्ते को बढ़ाना और सुधारना चाहते हैं. दो समर्थ पड़ोसी राष्ट्र कभी भी स्वाभाविक व सहज मित्र नहीं होते. वे अपने-अपने राष्ट्रहित में प्रतिद्वंद्विता पूर्ण मित्रता का ही निर्वाह कर सकते हैं. इसलिए शी ने घरेलू मोर्चे पर वहां की सेना पीएलए (पिपुल्स लिबरेशन आर्मी) को क्षेत्रीय युद्ध के लिए तैयार रहने को कहा. इस बयान को भारत से जोड़ कर देखा जा रहा है. शी को पता है कि भारत आज 1962 वाली स्थिति में नहीं है, जब उसने बहुत आसानी से भारत का हाथ मरोड़ दिया था. लेकिन उन्हें कम्युनिस्ट पार्टी के उग्र तत्वों को भी संतुष्ट करना है और अपनी सेना का मनोबल भी ऊंचा रखना है.
घरेलू व कूटनीतिक मोर्चे के बीच संतुलन बनाने के लिए शी की यह कलाबाजी भारत के लिए एक सीख भी है. भारत को भी उसे व्यापारिक व विकास के लिए साङोदार ही मानना चाहिए. नेहरू युगीन अंध कूटनीतिक मित्रता के भरोस नहीं रहना चाहिए. चीन के तेवर अगर भारत के प्रति नम्र हैं, तो वे इसके विकास संभावनाओं के कारण ही हैं और भविष्य में उसके तेवर तभी और नम्र होंगे, जब भारत घरेलू, कूटनीतिक व आर्थिक मोर्चे पर तेजी से आगे बढ़ेगा.
शी के बयान की पृष्ठभूमि में मोदी का ठोस लहजा भी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन के राष्ट्रपति शी चिनपिंग से बातचीत में जिस एक चीज पर सबसे ज्यादा जोर दिया था, वह था दोनों देशों के सीमा विवाद और दोनों देशों की बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा को चिह्न्ति करने के रूके काम को फिर से शुरू करना. उन्होंने शांति व विकास के लिए भी इसको आवश्यक बताया था. इसके मायने बेहद स्पष्ट हैं कि भारत चीन के साथ हर तरह के रिश्ते को आगे बढ़ाने के लिए घुसपैठ रोकने को सबसे अहम मानता है.मोदी-शी के साझा प्रेस-कान्फ्रेंस में मोदी ने अपने जिस ठोस लहजे में शी के सामने से इस बात पर जोर दिया, उसका दोहरे निहितार्थ थे – एक तो पड़ोसी चीन को यह अहसास कराना कि वह यह न समझे कि भारत में लुंजपुंज शासन है और उसकी घुसपैठ की हिमाकत को भारत लंबे समय तक बरदाश्त करने के लिए तैयार है.
दूसरा अपने देश के नागरिकों को भी मोदी ने यह संदेश दिया कि वह चीन के बढ़ते वर्चस्व व घुसपैठ की समस्या को लेकर चिंतित हैं और अपनी मजबूत नेता वाली छवि के अनुरूप जन भावनाओं को ध्यान में रख कर वे पड़ोसी चीन की आंखों में आंखें बात करने के लिए तैयार हैं. शी के भारत दौरे के समय ही चीनी मीडिया ने अपनी सरकार को सलाह दी थी कि वह अब भारत को गरीब व कमजोर मानने की भूल नहीं करे. शी ने मोदी के सामने उस समय साझा प्रेस कान्फ्रेंस में कहा था कि हमारे आपसी रिश्ते को सीमा पर के छोटे-बड़े विवाद प्रभावित नहीं कर सकते. संभव है कि मोदी का यह ठोस तेवर भी शी के बयान की पृष्ठभूमि में हो.
शी की पृष्ठभूमि भी है वजह
राष्ट्रपति शी जिनफिंग मुश्किल परिस्थितियों में चीन के नेता बन कर उभरे. जब चीन की अर्थव्यवस्था ढलान पर जा रही थी, चीन के प्रमुख राजनेता व नौकरशाह भ्रष्टाचार में संलिप्तता के आरोप का सामना कर रहे थे, तब दो वर्ष पूर्व शी वहां के राष्ट्रनेता बन कर उभरे. भारत में मोदी का उभार भी ऐसी ही परिस्थितियों में हुआ. दोनों नेता अपने-अपने देश में पूर्ववर्तियों से अधिक ताकतवर स्थिति में हैं. शी के पास कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना, चीनी सेना व चीनी सरकार तीनों के सर्वेसर्वा हैं, उनके पूर्ववर्ती हू जिन्ताओ को यह हैसियत हासिल नहीं थी. पर, कम्युनिस्ट शासन में राष्ट्रपति की भी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना व सेना के प्रति जिम्मेवारी होती है. ध्यान रहे कि पीएलए के प्रमुख फेंग फेंगुई ने हाल में कहा था कि नये लक्ष्य व और मिशन को पाने के लिए अभियानों में सुधार किया जाना चाहिए. संभव है कि शी का बयान इन्हीं परिस्थितियों की उपज हो.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें