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अमेरिकी अखबार ‘वाशिंगटन पोस्ट’ ने दी मोदी को नसीहत

वाशिंगटन:देश में हो रहे आम चुनाव पर विदेशी मीडिया की भी पैनी नजर है. प्रतिष्ठित पत्रिका ‘इकोनॉमिस्ट’ के बाद अमेरिकी अखबार ‘द वाशिंगटन पोस्ट’ ने भाजपा के पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को नसीहत दी है कि भारत को (बेशक) उनकी नीति पर चलने की जरूरत है, पर उन्हें पूर्वाग्रहवाले बड़बोलेपन की बजाय अपनी सफलता पर […]

वाशिंगटन:देश में हो रहे आम चुनाव पर विदेशी मीडिया की भी पैनी नजर है. प्रतिष्ठित पत्रिका ‘इकोनॉमिस्ट’ के बाद अमेरिकी अखबार ‘द वाशिंगटन पोस्ट’ ने भाजपा के पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को नसीहत दी है कि भारत को (बेशक) उनकी नीति पर चलने की जरूरत है, पर उन्हें पूर्वाग्रहवाले बड़बोलेपन की बजाय अपनी सफलता पर ध्यान केंद्रित करना होगा.

अखबार ने मंगलवार को अपने संपादकीय में मोदी और भाजपा को लेकर तथा कथित धर्मनिरपेक्षतावादी आलोचकों की आपत्तियों को नजरअंदाज करते हुए कहा कि उन्होंने (मुसलिम विरोधी) बड़बोलापन छोड़ दिया है. मोदी के सरकार बनाने पर लोकतांत्रिक संस्थाओं के क्षरण और धार्मिक उन्माद बढ़ने की आशंकाओं से इनकार करते हुए अखबार ने कहा कि भारत की राजनीतिक संस्कृति ऐसे उग्रतावाद को हावी होने से रोकने में सक्षम है.
आशंकाएं नयी नहीं
अखबार ने लिखा है कि मोदी को लेकर आशंकाएं नयी नहीं हैं. वर्ष 1998 में जब भाजपा ने पहली बार सरकार संभाली थी, तब भी ऐसी ही आशंकाएं व्यक्त की गयी थीं. अखबार ने अमेरिका के ओबामा प्रशासन द्वारा मोदी की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाने पर प्रशंसा की है और कहा है कि यह सोचना सही है कि मोदी सांप्रदायिक भेदभाव को बढ़ाने की बजाय अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के वायदे पर काम करेंगे.

कमियों के साथ तारीफ भी की
‘द वाशिंगटन’ पोस्ट ने मोदी को करिश्माई और कठोर परिश्रमी बताते हुए कहा कि उनके वादे भारत में बहुत बड़े बदलाव के सूचक हैं, जबकि पिछले दशक में कांग्रेस की मनमोहन सिंह सरकार के अप्रभावी नेतृत्व के कारण भारत की हालत खस्ता हो गयी है. अखबार ने मोदी की तमाम कमियों को भी गिनाया है, लेकिन कहा है कि उनके सकारात्मक पहलू ज्यादा हैं. अखबार ने कहा है कि पत्रकारों से मोदी रवैया प्रतिकूल होता है और वह कभी-कभार ही इंटरव्यू देते हैं. इससे भी बुरी बात यह है कि उन्होंने प्रशासन का तानाशाही तरीका तैयार कर लिया है और व्यवस्थित तरीके से वह अपने आलोचकों और संभावित विरोधियों का सफाया कर रहे हैं.
बाजार में नयी जान
अखबार कहता है कि मोदी के पीएम बनने की संभावना ने ही दश के स्टॉक मार्केट और खस्ता हाल रु पये में नयी जान फूंक दी है, इससे विदेशी निवेश की भी लहर आयी है. बेशक देश को उस दवा की जरूरत, जिसकी मोदी पेशकश कर रहे हैं. छोटे स्तर पर ही सही, मोदी ने दिखा दिया है कि वह जरूरत से ज्यादा नियम-कानूनों, रुकावटों और रोड़ा बनते भ्रष्टाचार से निपट सकते हैं. व्यवसायी बिरादरी मोदी को जितना पसंद करती है, देश के मुसलमान और सेक्युलर लोगों को वह उतने ही नापसंद हैं.

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