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प्रकृति और छठ : सूर्य से हमारा संबंध आपसदारी का है

विनय कुमार लेखक प्रसिद्ध मनोचिकित्सक और साहित्यकार हैं. आश्विन बीत गया है. उसका जाना उस गीले रूमाल का समय की अलगनी पर जाना है जिससे आकाश को पोंछा गया हो. अब वहां काले बादल नहीं हैं. आंखें उठाओ तो नीलिमा और उजास का खिलखिलाता रास सुख देता है. मगर देर रात और अलस्सुबह बदन पर […]

विनय कुमार
लेखक प्रसिद्ध मनोचिकित्सक और साहित्यकार हैं.
आश्विन बीत गया है. उसका जाना उस गीले रूमाल का समय की अलगनी पर जाना है जिससे आकाश को पोंछा गया हो. अब वहां काले बादल नहीं हैं. आंखें उठाओ तो नीलिमा और उजास का खिलखिलाता रास सुख देता है.
मगर देर रात और अलस्सुबह बदन पर सूत की कामना भी जगाती है. और धूप ? यह तो दोस्ती के बढ़े हुए हाथ की तरह तसल्लीबख्श! आभार मार्तंड महोदय! आपका यह रूप वैशाख और ज्येष्ठ के आग्नेय अवतार से कितना भिन्न है ! अब तो दो-चार निमिष निहार भी सकते आपको. अब आपको क्या बताना कि आप हमारे हैं कौन?
आप ही तो हमारी मां पृथ्वी के जनक, कहना चाहिए जननी भी. अपनी पुत्री की संतानों का क्या छिपा आपसे. मगर हमें तो यह जानने में बहुत समय लगा तात कि आपके होने से हम हैं.
याद आता है – शरद की शर्वरी, हिंस्र पशुओं से भरी. याद आती है ऊषा-प्रत्यूषा के पर्यंक से आपका रति-रतनार नैन मलते हुए उठना और गगन को सोना-सोना कर देना. और फिर देखते-देखते सारा परिदृश्य रजताभ. शीत तो गया अब कोमल ऊष्मा का साम्राज्य है. दिग्दिगंत आलोकित. सारे हिंस्र पशु आलोक के घेरे में. कोई भय नहीं. फूलों की पंखुड़ियों के रंग मुखर और डालों से लटके फल पीताभ. सब आपकी कृपा है तात. हम सब आभारी हैं आपके.
इतिहास और पुरातत्त्व को प्रमाण मानें तो दुनिया की लगभग सारी सभ्यताओं के बाशिंदों ने इस सत्य का साक्षात्कार किया. वैदिक ऋचाओं से ग्रीक कथाओं तक आपका जयगान.
अमेरिका और मेक्सिको के इलाके, मिस्र और मध्य एशिया – कहां नहीं पूज्य आप. कथा है कि कृष्ण के पौत्र शाम्ब को कुष्ठ हुआ और चिकित्सा हेतु आयातित किये गये शकद्वीप के ब्राह्मण जो सूर्य पूजन और वैद्यक के लिए विख्यात. कालांतर में वे मगध क्षेत्र में बसाए गये. धीरे-धीरे उनकी पूजा-परंपरा लोक जीवन में विसरित हुई और धर्म-पाखंड-भंजक प्रदेश ने शस्त्रीयता को कूट-पीसकर लोक जीवन का आडंबर विहीन पेय बना लिया.
यही कारण कि मगध में आपकी उपासना मंत्रों से नहीं लोकगीत की स्वर लहरियों से होती है. हर गीत इस सत्य का स्वीकार कि सूर्य के बिना जीवन नहीं, अन्न नहीं और स्वास्थ्य भी नहीं. सारे कष्टों से मुक्ति सूर्य की शरण में. अंग्रेजी में भी तो कहते ही हैं न – सनी डेज.
तो आइए इसी सूर्य को जो प्राणिमात्र का मित्र है उसे दावत देते हैं. थैंक्स गिविंग के नाम चार दिन. प्रकृति के प्रथम पुरुष का स्वागत शुद्ध प्राकृतिक. कोई आडंबर नहीं. निर्मल आंगन, निर्मल तन और निर्मल मन. पहला आहार – चावल, दाल, लौकी और आंवला. आह! मुंह में पानी भर आया.
आओ तात, जीमो. सुबह से शाम तक व्रत और सांझ ढले खंडन- गुड़ की खीर और गेहूं के आटे की सोंधी रोटी. जब तक चांद तब तक थोड़ा जल और अगली शाम तक फिर व्रत. और व्रत भी क्या, यह तो उत्सव तात, उत्सव. आप ही के प्रकाश से दीपित गुड और आटे के घी में पकने की अद्भुत गंध और गले से गीतों का अजस्र झरना.
अब आप अस्ताचल जा रहे और हम विह्वल हो रहे. पसरी हथेली पर जो भी जुटा सके रखकर जल में खड़े हैं. अग्नि और आलोक के अमेय पुंज के समक्ष जल धारे बगैर खड़ा हों भी तो कैसे. त्वदीयं वस्तु गोविंदं तुभ्यमेव समर्पये. है भी क्या प्रकृति-भोजी अकिंचन मानव के पास जो आपको अर्पित करे?
इसके बाद एक घूंट जल और विश्राम. ऊषा-प्रत्यूषा के बीच से आपको आते देखने का सुख पाने के लिए फिर से खड़े हैं हम कमर तक जल-वस्त्र धारे, फैली हथेली पर श्रद्धा से भरा सूप पसारे. आओ मित्र, जीमो. ग्रहण कर इस ऋतु का अंतिम आभार-अर्घ्य. आशीष दो अपनी पुत्री की संतानों को. श्रम की शक्ति दो. श्रम के अवसर दो. श्रम का फल दो.
अन्न दें हमारे खेत और आंगन में संततियों की किलकारियां गूंजें. आह! कितना आत्मीय है यह संबंध!! जो है, वही परम सत्य! जो साक्षात वही ईश्वर !! नहीं चाहिए कोई पंडित कोई ज्ञानी. नहीं चाहिए मंत्र और मंडल. नहीं चाहिए कोई साज-सामान. हम प्रकृति से हैं. हम प्रकृति के हैं. सूर्य और हमारा संबंध आपसदारी का है भाई. सूर्य हमें पिता की तरह पालते हैं. भौगोलिक ज्ञान को नृतत्वशास्त्र से जोड़ कर कहूं, तो वह पृथ्वी मां का पिता होने के नाता हमारे नाना हैं.

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