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जंगलों में सूखे जल स्रोत, गांव-सड़क में गजराज

चार दिन पहले हाथियों के झुंड ने लापुंग और कर्रा में चार लोगों को कुचल कर मार डाला था. घटना के बाद से हाथी प्रभावित क्षेत्रों में दहशत है. हालांकि, हाथी प्रभावित क्षेत्रों में यह पहली घटना नहीं है. रांची जिले के बेड़ो, लापुंग, इटकी, मांडर, चान्हो, बुंडू, तमाड़, सोनाहातू, सिल्ली व खूंटी जिला के […]

चार दिन पहले हाथियों के झुंड ने लापुंग और कर्रा में चार लोगों को कुचल कर मार डाला था. घटना के बाद से हाथी प्रभावित क्षेत्रों में दहशत है. हालांकि, हाथी प्रभावित क्षेत्रों में यह पहली घटना नहीं है. रांची जिले के बेड़ो, लापुंग, इटकी, मांडर, चान्हो, बुंडू, तमाड़, सोनाहातू, सिल्ली व खूंटी जिला के तोरपा, रनिया व कर्रा प्रखंड में अक्सर हाथियों के उत्पात मचाने की खबरें मिल रही है.

जंगल में रहने वाले गजराज सड़क पर आ गये हैं. गांवों में घुस जा रहे हैं. इससे जानमाल को नुकसान हो रहा है. ऐसा जंगलों में जल स्रोत को सूख जाने के कारण हुआ है. हाथी पानी की तलाश में गांव में आ जा रहे हैं. सामने पड़ने वाले लोगों को हताहत कर दे रहे हैं. इसी गंभीर समस्या पर प्रस्तुत है ‘प्रभात खबर टोली’ की यह विशेष रिपोर्ट.

राजधानी में पिछले छह माह में हाथी कई लोगों की जान ले चुके हैं. कई ग्रामीणों पर हमला कर उन्हें घायल कर चुके हैं. यही नहीं अनाज की लालच में हाथी दर्जनों घरों को भी क्षतिग्रस्त कर चुके हैं. हाथी वन क्षेत्र से सटे गांवों में घुस कर घरों को निशाना बनाते हैं.
अनाज चट कर जाते हैं. खेतों में लगी फसलें बर्बाद कर देते हैं. भगाने के क्रम में उग्र होकर ग्रामीणों की जान भी ले लेते हैं. राज्य में पिछले 10 साल में करीब 550 लोगों की मौत हाथियों से हो चुकी है. करीब 1300 लोगों को हाथी इसी अवधि में घायल कर चुके हैं. लोगों के बीच करीब 80 करोड़ रुपये मुआवजे के रूप में बंट चुका है.
घरों को क्षतिग्रस्त कर चुके हैं हाथी
पिछले दिनों झुंड से बिछड़े एक हाथी ने इटकी व बेड़ो में काफी उत्पात मचाया था. यह हाथी इटकी क्षेत्र में चार व बेड़ो में करीब दर्जन भर घरों को क्षतिग्रस्त कर चुका था. इस हाथी के उत्पात से वन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की नींद उड़ गयी थी. बेड़ो के वन क्षेत्र पदाधिकारी रामजनम सिंह ने कहते हैं कि यह हाथी अपने झुंड से बिछड़ गया था. ग्रामीणों के छेड़छाड़ के बाद यह उग्र हो गया था. अब हाथी को कर्रा बीट क्षेत्र से आगे भेज दिया गया है.
मांडर व चान्हो प्रखंड हाथियों के लिए ग्रीन कॉरीडोर बना हुआ है. यहां साल में कम से कम चार बार चान्हो के चारा जंगल व मांडर के हातमा जंगल हाथी पहुंचते हैं. एक निर्धारित मार्ग से रास्ते में पड़ने वाले गांव में खेती, मकान व कभी कभार सामने आ गये मनुष्य को भी नुकसान पहुंचाते हुए बेड़ो की ओर निकल जाते हैं. 29 जनवरी 2019 को हाथियों का झुंड चान्हो के पाटुक गांव होते हुए गुजरा था.
तब हाथियों ने फसलों व कई घरों को नुकसान पहुंचाया था. 27 मई को मांडर प्रखंड में एक जंगली हाथी ने हमला कर लोयो के कटईटोली निवासी भीखू महली व सकरपदा के भेलो उरांव को गंभीर रूप से घायल कर दिया था. हाल के दिनों में तीन जून की रात हाथियों ने सिल्ली के बड़ाचांगड़ू में उत्पात मचाया था. हाथी दो ग्रामीणों का घर व स्कूल की दीवार तोड़ कर अनाज खा गये थे. वहीं, तोरपा में पांच जून की रात एक हाथी अम्मा लेटया टोली में एक ग्रामीण का घर क्षतिग्रस्त कर अनाज खा गया व सामान रौंद कर बर्बाद कर दिया.
तोरपा में छह माह में कई घर तोड़े
तोरपा में इस वर्ष अबतक हाथी 50 से भी अधिक घरों को क्षतिग्रस्त कर चुके हैं. वैसे तो पूरा प्रखंड हाथी प्रभावित है, लेकिन हुसीर, जरीया, उकड़ीमाड़ी, कमड़ा, तपकारा, फटका, अम्मा, उड़ीकेल, बारकुली पंचायत ज्यादा प्रभावित हैं. हाथियों से निबटने के लिए प्रत्येक गांव में वन समिति बनायी गयी है. फोरेस्टर केदार राम ने बताया कि तोरपा में लगभग 50 वन समिति सक्रिय है. वन समिति के खाते में सरकार द्वारा राशि भेजी जाती है, जिसका उपयोग हाथी भगाने के लिए पटाखा खरीदने व मशाल बनाने में किया जाता है.
तमाड़ में 12 पंचायत हाथी से प्रभावित
तमाड़ के 12 पंचायत हाथी प्रभावित हैं. इनमें रगड़ाबाडांग, जारगो, मारधान, रड़गांव, मल्हान भुइयांडीह, परासी, कुरकुटा, पुंडीदिरी, हड़ालोहर, उलीडीह आदि शामिल हैं. इन इलाकों में शाम ढलते ही हाथी जंगल से सटे गांव में घुस कर घरों को ध्वस्त कर अनाज खा जाते हैं. खेत में खड़ी फसलों को नष्ट कर देते हैं. पिछले छह माह में हाथी यहां भी दर्जनों घरों को ध्वस्त कर चुके हैं. इस दौरान गांव के बाहर किसी आदमी को देखते हैं, तो दौड़ा कर उसे कुचल देते हैं.
मिड डे मील का अनाज खा गये थे हाथी
कर्रा प्रखंड भी हाथी प्रभावित क्षेत्र है. यहां 17 फरवरी को हाथी उत्क्रमित मध्य विद्यालय मुरुचकेल की दीवार तोड़कर मध्याह्न भोजन का चावल-दाल चट कर गये थे. बेड़ों प्रक्षेत्र के रेंजर रामाशीष सिंह बताते हैं कि हाथियों से ग्रामीणों को बचाने की जिम्मेदारी वन विभाग की है. इसके लिए वन विभाग तत्पर है. अधिकारी और कर्मचारी रात में भी सूचना मिलने पर कहीं जाते हैं. इसके लिए क्यूआरटी (क्विक रेस्क्यू टीम) बनायी है. हाथियों से बचने के लिए रात में घरों से नहीं निकलें.
मौत पर है चार लाख मुआवजे का प्रावधान
वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग ने झारखंड में जंगली जानवरों (हाथी सहित) से जान, माल, फसल, पालतू जानवर एवं मकान की क्षति होने पर मुआवजा किया है. इसके अनुसार मौत होने पर चार लाख रुपये मुआवजा का प्रावधान किया गया है. गंभीर रूप से घायल होने पर एक लाख रुपये दिया जाता है. 2016 में विभाग ने इसे अधिसूचित किया था. स्कीम का यही लाभ मौजूदा समय में प्रभावित लोगों को दिया जाता है.
विगत छह माह में हाथी के हमले में इन्होंने गंवायी जान
  • 02 जनवरी 2019 को नावाडीह, तमाड़ में हीरालाल महतो की पत्नी प्रमीला देवी की मौत.
  • 14 फरवरी 2019 को लापुंग के चंपाडीह रामरेखा टोंगरी घुंगा बगीचा में तुरिया उरांव की मौत.
  • 21 मई 2019 को तमाड़ के गांगों कोइजानीगुड़ा निवासी मंगल सिंह मुंडा की पत्नी सुनिया देवी की मौत.
  • 01 जून 2019 को लापुंग में सुषमा खलखो, उसका ढाई वर्षीय पुत्र अभिरन खलखो व फगुआ फरांव तथा कर्रा की चांगो उरांइन की मौत.
  • तोरपा प्रखंड के बुदु गांव के समीप हाथी ने बंदा पाहन को कुचल कर मार डाला था.
पिछले 10 साल में हाथियों से हुई मौत
वर्ष मारे गये
2009- 10 54
2010- 11 69
2011- 12 62
2012- 13 60
2013- 14 56
2014- 15 53
2015- 16 66
2016- 17 59
2017- 18 78
2018- 19 66
क्षति का प्रकार मुआवजा
  • मनुष्य के मृत्यु होने पर चार लाख
  • गंभीर रूप से घायल होने पर एक लाख
  • साधारण घायल होने पर 15 हजार
  • मनुष्य के स्थायी रूप से अपंग होने पर दो लाख
  • पूर्ण रूप से क्षति ग्रस्त मकान (पक्का) 40 हजार
  • पूर्ण रूप से क्षति ग्रस्त मकान (कच्चा) 20 हजार
  • साधारण रूप से क्षतिग्रस्त मकान 10 हजार
  • भंडारित अनाज 1600 रुपये प्रति क्विंटल
  • भैंस, गाय, बैल की मौत पर (स्टॉल फिडिंग) 30 हजार
  • भैंस, गाय, बैल की मौत पर (खुले में चरने वाले) 15 हजार
  • बछड़ा, बाछी की मौत पर पांच हजार
  • भेड़, बकरा, बकरी की मौत पर तीन हार
  • फसल की क्षति पर 20 हजार प्रति हेक्टयर
अनाज की लालच में गांवों में घुसता है हाथियों का झुंड, घरों को बनाते हैं निशाना
भगाने के दौरान उग्र हाथी लेते हैं ग्रामीणों की जान, फसलों को भी पहुंचाते हैं नुकसान
क्या कहते हैं अधिकारी
अभी गर्मी के कारण जंगलों में पानी की कमी हो गयी है. इस कारण हाथी पानी की तलाश में गांव की ओर आ जा रहे हैं. हाथियों से ग्रामीणों की रक्षा के लिए हाथी भगाओ टीम बनायी गयी है. कोशिश होती है कि हाथियों को जंगलों में रखा जाये. गांववालों की कमेटी बनायी गयी है. उनको टॉर्च, सोलर लैम्प, मशाल आदि दी गयी है. आग से हाथी घबराता है.
आगे नहीं बढ़ता है. वन विभाग कोशिश कर रहा है कि जंलगों में अधिक से अधिक बांस लगाये जायें. इससे उनको वहीं खाना मिल जायेगा. पानी जमा रखने के लिए जंगलों में चेकडैम बनाये जा रहे हैं. वाटर हॉल विकसित करने की कोशिश हो रही है. जनता को जागरूक किया जा रहा है. उनको कहा जा रहा है कि हाथियों को परेशान नहीं करें. विभाग वॉच टावर बनाने की योजना पर भी काम कर रहा है.
यह गांव के आसपास ही होगा. इससे हाथियों पर दूर से नजर रखा जा सकेगा. ग्रामीणों को ड्रैगेन टॉर्च दिया जा रहा है. यह रोशनी के साथ-साथ हाथियों को भगाने का काम भी करता है. प्रभावित गांवों में सोलर स्ट्रीट लाइट लगायी जा रही है. ग्रामीणों और वन प्रबंधन समिति के सदस्यों को मोबाइल भी दिया गया है. एक व्हाट्सऐप ग्रुप बनाया गया है. इससे हाथियों के मूवमेंट की सूचना मिलती रहती है.
-एसए अंसारी, वन प्रमंडल पदाधिकारी, रांची

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