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भाईचारा का प्रतीक है जावा फूल

शकुंतला उरांव शोधार्थी, जनजातीय भाषा विभाग कुडुख, रांची विश्वविद्यालय प्रकृति के अनन्य भक्त और पुजारी आदिवासियों को यदि गलती से भी कहीं से करमा का गीत सुनाई पड़ जाए, तो वे अंतर्मन से पुलकित तो होते ही हैं, स्वतः उनके हाथ पैर भी थिरकने लगते हैं. उनके आंखों के सामने करमा का एक-एक परिदृश्य चलचित्र […]

शकुंतला उरांव

शोधार्थी, जनजातीय भाषा विभाग कुडुख, रांची विश्वविद्यालय

प्रकृति के अनन्य भक्त और पुजारी आदिवासियों को यदि गलती से भी कहीं से करमा का गीत सुनाई पड़ जाए, तो वे अंतर्मन से पुलकित तो होते ही हैं, स्वतः उनके हाथ पैर भी थिरकने लगते हैं. उनके आंखों के सामने करमा का एक-एक परिदृश्य चलचित्र की तरह घूमने लगता है और न जाने उनका मन कितने उमंग और उत्साह से भर उठता है.

प्रकृति पुत्र आदिवासियों का ऐतिहासिक काल से ही जावा फूल के साथ अटूट संबंध है. आदिवासी समाज के बीच सुनहला रंग लिए जावा फूल पवित्रता, शुद्धता और भाईचारा का प्रतीक है, इसलिए करमा पूजा में सिर्फ जावा फूल ही चढ़ाया जाता है.

जावा उगाने वाली बालाओं को कुछ नियमों का पालन करना होता है. अमावस्या तृतीया या तीज के दूसरे दिन सुबह लड़कियां उपवास रखती हैं. सुबह जल्दी नहा-धोकर बालू लाने जाती है. बालू उठाते समय ध्यान रहे, उसकी अपनी प्रतिछाया बालू पर ना पडे, और ना ही उन्हें कोई रास्ता में देखे. लाया गया बालू को नया तावा में रखा जाता है.

बालू में जौ, मकई, गेहूं, धान, लहसुन, गंगई आदि बीजों को अपनी पसंद अनुसार बोया जाता है. तथा उसे सींच कर उपर से नया तावा से ढंक दिया जाता है. फिर उसको किसी अंधेरी कोठरी या हवा ना लगे वैसे जगह में रखा जाता है. अब प्रतिदिन लडकियां नहा-धोकर जावा में हल्दी पानी का छिड़काव और सिंचाई करती है. ऐसा नौ दिनों तक, यानी करमा परना दिन तक करना पड़ता है. ये बालाएं पूरे तन-मन से जावा फूल की सेवा करती हैं.

हल्दी पवित्रता का प्रतीक है. इसलिए विवाह से पूर्व लड़के-लड़कियों को दो दिन पहले से हल्दी लगाया जाता है. उसी तरह जावा फूल में भी हल्दी पानी का छिड़काव कर पवित्र किया जाता है. जावा उठाने वाली बालाओं को करमा तक हल्दी, मांस-मछली आदि खाने से परहेज करना पड़ता है.

कोई युवती जो थोड़ी अल्हड़ व आलसी किस्म की है. वह जावा फूल की अच्छी तरह देखभाल नहीं कर पाती और उसका जावा थोड़ा कुरच जाता है. किसी के द्वारा उस ओर युवती का ध्यान आकृष्ट कराया जाता है. जो इस गीत से पता चलता हैः-

जावा निंग्हय सेवा ननय कोय

जावा निंग्हय कुरजू मंजा रे

करम जितिया गे सेवा नन कोय

जावा निंग्हय कुरजू मंजा रे

आखिर…. वो पल आ ही जाता है, जावा फूल से अपनी जूड़ सजाने का. लड़कियां पूजा से पहले जावा फूल उखाड़ती है. अपनी डलिया को पूजा सामग्रियों और जावा फूल से खूब सजाती है. और खुद को भर-भर खोपा जावा फूल लगाती है. अपने माता-पिता, भाई-बहन, आये मेहमानों और बड़े-छोटे सभी लोगों को जावा फूल सप्रेम बांटती है. महिलाओं को खोपा में खोंसती और पुरुषों को कान में. इस तरह अपने भाई को

जावा फूल देते हुए प्रश्नोत्तर रूप में गीत गाती हैः-

साल भईर नू जावा पूंप बरचा

ओंदा ददा झोकोय का मला रे

मया लगो झोकोय ददा

मल मया लगो मला झोकोय रे

यहां गीत में बहन अपने भाई को जावा फूल देते हुए कहती है- साल भर में एक बार जावा फूल आया है, लो भईया स्वीकार करोगे या नहीं. यदि मेरे प्रति तुम्हें प्रेम है, तो स्वीकार जरूर करोगे और प्रेम नहीं है तो स्वीकार नहीं करोगे.

हिंदू समाज के बीच रक्षा बंधन में बहन अपने भाई को राखी बांध कर रक्षा का वचन मांगती है, लेकिन आदिवासी समाज में इसके विपरीत होता है. बहन अपने भाई को जावा फूल देकर करमदेव से इसकी लंबी आयु और खुशहाल जिंदगी की कामना करती है. हमारा जावा फूल भाईचारा का प्रतीक है.

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